संयुक्त राष्ट्र : प्रतिष्ठित अकादमिक व केरल सरकार की पूर्व आर्थिक सलाहकार गीता गोपीनाथ ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री का पदभार संभाल लिया है। वे ऐसे समय में इस पद पर नियुक्त की गई हैं, जब दुनिया वित्तीय अनिश्चितता से गुजर रही है।
महिला सशक्तिकरण को समृद्ध करते हुए वह चार महिलाओं के एक ऐसे चुनिंदा समूह में शामिल हो गई हैं, जिनका वैश्विक आर्थिक क्षेत्र में विशिष्ट महत्व है। इनमें उनकी बॉस और आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीन लेगार्ड, विश्व बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री पाइनलोपी कौजियानो गोल्डबर्ग और विश्व बैंक की मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्रिस्टालिना जॉर्जीवा शामिल हैं, जो अगले महीने इसकी अंतरिम अध्यक्ष बनेंगी।
इन महिलाओं को अपने पद की जिम्मेदारियों में विभिन्न देशों द्वारा वैश्वीकरण से पीछे हटने की चुनौतियों से निपटना होगा, जिसमें चीन और अमेरिका के बीच का व्यापार युद्ध, ब्रेक्सिट पर यूरोप में अनिश्चितता, डॉलर के मुकाबले कई मुद्राओं के कमजोर पड़ने और देशों के भीतर और देशों के बीच बढ़ती असमानता जैसे मुद्दे शामिल हैं।
जब लैगार्ड ने अक्टूबर में गीता गोपीनाथ की आर्थिक सलाहकार व अनुसंधान विभाग के निदेशक के पद पर औपचारिक नियुक्ति की घोषणा की थी, तो उन्होंने गीता को दुनिया के उत्कृष्ट अर्थशास्त्रियों में से एक करार दिया था और कहा था कि त्रुटिहीन अकादमिक साख के साथ उनका बौद्धिक नेतृत्व का एक सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड है, साथ ही उनके पास व्यापक अंतरराष्ट्रीय अनुभव है।
आईएमएफ में आने से पहले गोपीनाथ हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन और अर्थशास्त्र की प्रोफेसर थीं। वे आईएमएफ में मौरिस ओस्फेल्ड की जगह पर नियुक्त की गई हैं।
उन्हें 2016 में केरल के मुख्यमंत्री के आर्थिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था और उनका रैंक मुख्य सचिव का था।
उन्होंने भारतीय वित्त मंत्रालय के लिए जी-20 मामलों पर जाने-माने लोगों के सलाहकार समूह के सदस्य के रूप में भी काम किया है।
आईएमएफ के लिए नीतियों को तैयार करने और रणनीतियों को निर्धारित करने और विभिन्न देशों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में मदद करने के अलावा, वह विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट का काम भी देखेंगी, जिसे वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख सर्वेक्षण माना जाता है।
नई दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से स्नातक गीता गोपीनाथ ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमए की डिग्री प्राप्त की है।
इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए प्रिंसटन यूनिवर्सिटी चली गईं, जहां से उन्होंने 2001 में अंतर्राष्ट्रीय मैक्रो इकॉनॉमिक्स एवं व्यापार में अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की।
2005 में हार्वर्ड जाने से पहले गीता शिकागो विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर थीं। उन्हें 2003 और 2004 में जर्नल ऑफ इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स में प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ पेपर के लिए भगवती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
साल 2014 में आईएमएफ ने उन्हें 45 साल से कम उम्र के शीर्ष 25 अर्थशास्त्रियों में से एक नामित किया था और 2011 में उन्हें विश्व आर्थिक मंच यंग ग्लोबल लीडर करार दिया गया।
उनके व्यापक शोध और लेखन में साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई नोटबंदी की समीक्षा भी शामिल है।
नोटबंदी के कुछ ही दिन बाद एक पेपर में उन्होंने लिखा था कि सरकार के इस (नोटबंदी) कदम से भारतीय अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचती दिख रही है।