नई दिल्ली : लोकसभा में मंगलवार को कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 पारित हो गया।
यह विधेयक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के छह गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों के पात्र आव्रजकों को भारतीय नागरिकता हासिल करने में आ रही बाधाओं को दूर करने का प्रावधान करता है।
जैसे ही सरकार ने कांग्रेस और तृणमूल की विधेयक को फिर से संसदीय समिति के पास भेजने की मांग को खारिज किया, दोनों दलों के सदस्य सदन से बाहर चले गए।
विधेयक पर चर्चा के जवाब में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया कि विधेयक केवल असम के लिए सीमित नहीं है बल्कि यह सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए भी लागू होगा।
उन्होंने कहा, इन सताए हुए आव्रजकों का बोझ पूरे देश द्वारा उठाया जाएगा। असम अकेले इस पूरे भार को नहीं उठा सकता और सरकार असम की सरकार और लोगों को सभी प्रकार की मदद मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम के बारे में गलतफहमी दूर करते हुए उन्होंने इन देशों में अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा सामना किए जा रहे भेदभाव और धार्मिक अत्याचार को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, उनके पास सिवाए भारत के और कहीं जाने की कोई जगह नहीं है। विधेयक देश की पश्चिमी सीमा के जरिए गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में आने वाले सताए आव्रजकों को राहत मुहैया कराएगा।
जैसी ही विधेयक को पटल पर रखा गया, सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि उनकी पार्टी की विधेयक पर कई आपत्तियां हैं।
उन्होंने कहा, इसमें कई खामियां हैं। यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। इसमें असम समझौते के लिए कोई सम्मान नहीं है। यह एक संवैधानिक मामला भी है, इसलिए इसे प्रवर समिति के पास फिर से भेजा जाना चाहिए।
खड़गे ने कहा, अगर आप ऐसा नहीं करते तो हमारे पास सदन से बाहर जाने के सिवाए और कोई विकल्प नहीं है। इसके बाद पार्टी के सदस्य वॉक आउट कर गए।
यह विधेयक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भाग कर आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों या हाल ही जिनके वैध दस्तावेजों की समयावधि समाप्त हुई है, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा।
तृणमूल कांग्रेस के सदस्य सौगत रॉय ने विधेयक को विभाजनकारी करार देते हुए इस पर निशाना साधा।
उन्होंने कहा, अगर यह पारित हो जाता है तो यह असम सहित पूर्वोत्तर में आग का कारण बनेगा..इस विधेयक को वापस लिया जाए। अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो समिति को फिर से गठित कीजिए।
उन्होंने सरकार के इस कृत्य को वोटबैंक की राजनीति का सबसे खराब उदाहरण बताया।
रॉय ने कहा कि विधेयक को जांचने वाली संसद की संयुक्त समिति में सहमति बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।
उन्होंने कहा, समिति सभी जगहों पर नहीं जा सकती, इसलिए यह विधेयक अधूरा है। उन्होंने कहा कि समिति में उनकी पार्टी के सदस्यों की संख्या कम थी, लेकिन इसने अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से रखा।
उन्होंने यह भी कहा कि विधेयक के प्रावधानों के तहत आने वाले अल्पसंख्यकों में से मुसलमानों को बाहर छोड़ दिया गया है।
उन्होंने कहा, इसे एक धर्मनिरपेक्ष विधेयक बनाएं। कोई भी, जो यहां आता है और धार्मिक अत्याचार का सामना करता है, उसे यहां जगह दी जाए। उन्होंने कहा कि नेपाल और श्रीलंका के अल्पसंख्यकों को भी विधेयक में शामिल किया जाए।
रॉय और तृणमूल कांग्रेस के अन्य सदस्यों ने इसके बाद सदन से वॉक आउट कर दिया।
इससे पहले विधेयक को पारित करने के लिए पेश करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि यह तीन देशों में धार्मिक अत्याचार का सामना कर रहे आव्रजकों को देश की नागरिकता प्राप्त करने में मदद करेगा।
उन्होंने कहा, पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को लगातार भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में वर्तमान सरकारें अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन यहां भी उन्हें अतीत में इन समस्याओं का सामना करना पड़ा था।
उन्होंने कहा कि सिवाए भारत के कोई भी अन्य देश अपने पड़ोसी देश में कठिनाइयों का सामना करने वाले अल्पसंख्यकों को दंडात्मक कानूनी कार्रवाई से अंतरिम सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता।
सिंह ने कहा कि भाजपानीत सरकार ने 2015-16 में ऐसे आव्रजकों के लिए वीजा मानदंडों में ढील दी थी लेकिन वे भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्हें अवैध आव्रजक माना जाता था।
उन्होंने कहा, ऐसे आव्रजक अब नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। केंद्र आवश्यक जानकारी हासिल करने के बाद उन्हें नागरिकता देने के बारे में फैसला कर सकता है।
उन्होंने कहा कि विधेयक केवल असम के लिए लागू नहीं होगा बल्कि यह पूरे देश के लिए है। ऐसे आव्रजक कई अन्य राज्यों में रह रहे हैं।
उन्होंने कहा, यह जिम्मेदारी पूरे देश की है। असम का बोझ पूरे देश का बोझ है।
सिंह ने कहा कि मोदी सरकार ने असम समझौते के प्रावधानों को ठीक से लागू करने के लिए कदम उठाए हैं और सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को प्रभावी रूप से लागू कर रही है।
उन्होंने कहा, हम इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जैसा कि मैंने पहले कहा था, किसी भी भारतीय नागरिक को बाहर नहीं किया जाएगा।
मंत्री ने कहा कि पिछले 35 वर्षों में असम समझौते के खंड छह को लागू करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया गया, जो राज्य की सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने की वकालत करता है।
उन्होंने कहा, लेकिन, हमारी सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है।