भोपाल : कहा जाता है कि संत पुरुष का एक वाक्य जीवन को बदल देता है। ऐसे ही संत पुरुष नानाजी देशमुख रहे हैं। उनके संपर्क में जो आया, बदल गया। ऐसी ही एक हैं डॉ. नंदिता पाठक। वह पढ़ाई कर अमेरिका जाकर खूब धन-दौलत कमाना चाहती थीं, मगर नानाजी के संपर्क ने उन्हें गांव, गरीब की जिंदगी बदलने के अभियान में लगा दिया।
नानाजी देशमुख को भारत सरकार ने देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की है। इसके बाद से चित्रकूट में उत्सव और उल्लास का माहौल है। यह वही स्थान है, जहां नानाजी ने चित्रकूट ग्रामोद्योग प्रकल्प चलाया। यहीं पर उन्होंने ग्रामोद्योग विश्वविद्यालय की स्थापना की।
डॉ. पाठक को लगभग डेढ़ दशक तक नानाजी का सानिध्य मिला। डॉ. पाठक ने आईएएनएस से कहा, “मेरा जन्म आंध्रप्रदेश में हुआ है। मैं जबलपुर में खाद्य और पोषण की पढ़ाई कर रही थी। मेरा सपना अमेरिका में जाकर काम करने और खूब धन-दौलत कमाने का था। मैं अपने लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास में जुटी थी, उसी दौरान चित्रकूट जाना हुआ। यह भगवान राम की कर्मभूमि है। यहां पर नानाजी से मुलाकात हुई।”
डॉ. पाठक ने कहा, “नानाजी के बारे में जबलपुर में बहुत सुन रखा था। उस दौरान चित्रकूट ग्रामोद्योग विश्वविद्यालय की भी चर्चा जोरों पर थी। उसी दौरान वर्ष 1994 में चित्रकूट में नानाजी से मुलाकात का मौका मिला। इस दौरान नानाजी ने सवाल किया, ‘व्हाट डू यू मीन बाय होम।’ उनके इस सवाल ने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया और मेरे जीवन का रास्ता ही बदल गया।”
उन्होंने बताया, “नानाजी के इस सवाल से जहां मुझे यह आभास हुआ कि जो पढ़ाई की है, वह प्रायोगिक नहीं है, वह नवाचार वाली नहीं है। साथ ही नानाजी ने नौकरी के बजाय समाज के लिए काम करने का परामर्श दिया। उनके सवाल और परामर्श ने जीवन का रास्ता ही बदल दिया।”
नानाजी के साथा बिताए वक्त के बारे में डॉ. पाठक कहती हैं, “वह हमेशा लोगों के मंचीय भाषणों को ज्यादा महत्व नहीं देते थे। वह कहते थे कि मंच पर भाषण देना बहुत आसान है, मगर काम से मिले अनुभव के आधार पर भाषण देना बहुत कठिन है। यही कारण था कि दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट में एक दशक तक काम करने के बाद भी मंच पर खड़े होकर बोलने का मौका नहीं मिला।”
डॉ. पाठक और उनके पति भरत पाठक, जो वर्तमान में दीन दयाल शोध संस्थान के उपाध्यक्ष हैं, ने लगभग डेढ़ दशक तक नानाजी के साथ रहकर यहां के लगभग 500 गांवों में उद्यमिता के माध्यम से युवाओं, बेरोजगारों, महिलाओं के बीच काम किया। यहां नानाजी की मौजूदगी में एक दफा 20 हजार महिलाओं का संगम आयोजित किया गया था। तब नंदिता को पहली बार बोलने का मौका मिला था।
नानाजी के अंतिम दिनों को याद करते हुए पाठक दंपति ने कहा, “25 फरवरी, 2010 को उनके द्वारा कहे गए वाक्य अहसास कराते हैं कि उन्हें दुनिया को त्यागने का अहसास हो गया था। तब उनके कुछ पत्रों को अंग्रेजी में लिखा जाना था। व्यस्तता के चलते वे पत्र नहीं लिखे जा सके थे। 25 फरवरी को नानाजी ने कहा कि हमारे पास समय कम है, काम करके दे दो। उसके बाद उनके पत्रों को तैयार किया गया और उनके डिजिटल हस्ताक्षर कर उन्हें पोस्ट कर दिया गया। तब नानाजी ने कहा था कि तुम लोगों ने हमारा काम पूरा कर दिया। अब कोई काम नहीं बचा।”
डॉ. भरत पाठक का कहना है कि भारत सरकार ने नानाजी देशमुख को भारत रत्न देकर देश के ग्रामवासियों को अनुपम उपहार दिया है, क्योंकि उनका जीवन गांव और ग्रामवासियों के लिए समर्पित रहा है।
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