नई दिल्ली : किसानों को संकट से उबारने के लिए सरकार जल्द ही एक बड़ी राहत पैकेज की घोषणा कर सकती है, मगर उसमें देश के गन्ना उत्पादकों के लिए कुछ नहीं होगा, जिनका बकाया चीनी मिलों पर करीब 19,000 करोड़ रुपये हो गया है।
ताजा घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी के अनुसार, चीनी उद्योग को साफतौर पर बता दिया गया है कि अब गन्ना उत्पादकों के लिए किसी भी प्रकार के पैकेज की उम्मीद नहीं की जा सकती है, क्योंकि पिछले साल सितंबर में ही चीनी उद्योग क्षेत्र की मदद के लिए 5,500 करोड़ रुपये का पैकेज प्रदान किया गया है। इस पैकेज में गóो के दाम के भुगतान में मदद के साथ-साथ चीनी निर्यात को सुगम बनाने के प्रावधान किए गए हैं।
अधिकारी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, सरकार ने इस क्षेत्र को हरसंभव सहायता प्रदान की है। हम किसानों के बकाए का भुगतान करने में आगे फिर ऐसे कदम नहीं उठा सकते हैं जिससे उद्योग को लाभ हो। किसानों के बकाये का भुगतान करने में उद्योग की मदद को लेकर हमारे लक्ष्य की भी एक सीमा है।
अधिकारी ने बताया कि खाद्य मंत्रालय की ओर से ऐसे किसी पैकेज का प्रस्ताव नहीं है, हालांकि आगामी आम चुनाव को लेकर इस समले पर पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) का अलग नजरिया हो सकता है।
महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की राजनीति में गन्ना किसान काफी अहमियत रखते हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख गन्ना उत्पादक इलाके में स्थित कैराना लोकसक्षा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार के बाद मोदी सरकार ने पिछले साल जून में चीनी उद्योग के लिए राहत पैकेज की घोषणा की थी।
पिछले दो महीनों के दौरान मिल मालिकों ने नकदी की स्थिति में सुधार लाने और किसानों के बकाये के भुगतान में मदद के लिए सरकार के सामने कई मांगे रखी हैं, जिनमें ब्रिज लोन में मदद और चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य में वृद्धि शामिल है।
पिछले महीने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख और असल में महाराष्ट्र में चीनी उद्योग के नेता शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर निर्यात बढ़ाने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा अतिरिक्त चीनी रिलीज करने में हस्तक्षेप करने की मांग की, जोकि सब्सिडी भुगतान के कारण अटका हुआ है।
पवार ने पत्र में लिखा, मेरा मानना है कि बैंक लिखित आश्वासन चाहते हैं कि सरकारी सब्सिडी की राशि का आखिरकार उनके खाते में जमा होनी चाहिए।
किसान नेता और सांसद राजू शेट्टी ने सवाल उठाया कि सरकार ने एमएसपी क्यों नहीं बढ़ाया जबकि चालू गन्ना पेराई सत्र के लिए गóो का लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 20 रुपये बढ़ाकर 275 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया।
शेट्टी ने कहा, सरकार गंभीर नहीं है। मैं खुद एक किसान हूं। किसान संकट में हैं। लेकिन, मैं देख रहा हूं कि सरकार किस प्रकार मिल मालिकों और किसानों के बीच खाई पैदा कर रही है।
खाद्य मंत्रालय के अधिकारी इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) के तहत चीनीद का निर्यात करने में मिलें क्यों विफल साबित हो रही है, सरकार आंतरिक परिवहन, मालभाड़ा व अन्य खर्च की भरपाई कर रही है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) और नेशनल फेडरेशन ऑफ कॉपरेटिव शुगर फैक्टरीज (एनएफसीएसएफ) का दावा है कि चीनी का एक्स-मिल रेट 34 रुपये प्रति किलो हैं, लेकिन एमएसपी 29 रुपये प्रति किलो है। वे चीनी के एमएसपी को बढ़ाकर 34 रुपये प्रति किलो करने की मांग कर रहे हैं।
इस्मा के हालिया आंकड़ों के अनुसार, 31 दिसंबर तक गन्ना उत्पादकों की मिलों पर बकाया रकम 19,000 करोड़ रुपये हो गई है।
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