नई दिल्ली : राहुल गांधी ने कहा है कि वह सत्ता में आने पर न्यूनतम आमदनी गारंटी योजना लागू करेंगे, जिसकी काट में प्रधानमंत्री नरेंद मोदी बजट में सर्वाधिक गरीबों के लिए सार्वभौमिक मूलभूत आय योजना (यूबीआई) लांच कर सकते हैं।
आगामी चुनाव को लेकर दोनों ही पक्ष तैयारी में जुटे हुए हैं और सरकार ने बजट के माध्यम से यूबीआई की पायलट योजना लांच करने की तैयारी कर ली है। हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि इसके वास्तविक लाभार्थी कौन होंगे और इसके लिए सीमा रेखा क्या तय की गई है। लेकिन यह स्पष्ट है कि सरकार इसे लागू करने के लिए वित्तीय जोड़-घटाव में जुटी है।
वित्त वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में स्पष्ट संकेत दिया गया है कि प्रस्तावित आय समर्थन नीचे की 75 फीसदी आबादी के लिए होगी। लेकिन सवाल यह है कि इसे लागू करने के बाद सरकार राजकोषीय घाटे को कैसे नियंत्रण में रख पाएगी। क्योंकि पहले ही खाद्य सब्सिडी पर 1,70,000 करोड़ रुपये और मनरेगा पर अतिरिक्त 55,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
अगर सरकार यूबीआई योजना लागू करती है तो 6,540 करोड़-7,620 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी। संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) सरकार ने यूबीआई को पायलट परियोजना के तहत वित्त वर्ष 2011-12 में मध्य प्रदेश के गांवों में लांच किया था। अब बड़ा सवाल यह है कि अगर इसकी पायलट परियोजना को दोबारा लागू किया जाता है, तो इसके दायरे में कितने जिले आएंगे।
क्या यह परियोजना उन लोगों के लिए होगी, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं, या फिर लाभार्थियों का चयन लोगों के आधार पर किया जाएगा या घरों के आधार पर? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह कि क्या खाद्य सब्सिडी और यूबीआई को एक साथ लागू किया जाएगा या एक-दूसरे के पूरक के रूप में लागू किया जाएगा।