संजय कपूर :: दुनिया भर की विकसित अर्थव्यवस्थाएं जहां गति खो रही हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था उफान पर है जिसकी पुष्टि निम्न तथ्यों से होती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए विकास दर 7.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है।
विश्व बैंक द्वारा जारी वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट के मुताबिक, देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की दर वित्त वर्ष 2018-19 में 7.3 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है और इसके अगले साल यह 7.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने देश की विकास दर 2019 में 7.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, जबकि चीन का 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है। ये वर्तमान वैश्विक, राजनीकि, और आर्थिक परिदृश्य के तथ्य हैं। अंतरिम बजट होने के नाते, सभी पहलुओं से काफी अधिक उम्मीदें लगाई जा रही हैं।
वित्त वर्ष 2017-18 में सुधारों के मद्देनजर ब्रांड इंडिया में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई। तेल कीमतों में बढ़ोतरी, कमजोर होते रुपये, और वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाओं के बावजूद देश का सॉवरिन क्रेडिट रेटिंग बीएए2 रहा और ईज ऑफ डुइंग बिजनेस पैरामीटर पर भारत 190 देशों में से 100 वें नंबर पर रहा।
देश की अर्थव्यवस्था को गति देने की जरूरत है, खासकर वाहन क्षेत्र को, क्योंकि यह जीडीपी में 7 फीसदी से अधिक का योगदान करता है और यह गेम चेंजर साबित हो सकता है।
नोटबंदी और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) को लागू करने को ध्यान में रखते हुए हाल के विकास दर के आंकड़े सम्मानजनक हैं। और हमें अपनी इस स्थिति को बरकरार रखने के लिए विकास दर की गति को बनाए रखनी पड़ेगी, इसके लिए अवसंरचना में निवेश को बढ़ावा देना होगा और बड़े पैमाने पर सुधारों को जारी रखना होगा।
जीएसटी को युक्तिसंगत बनाना :
भारत कीमत को लेकर संवेदनशील अर्थव्यवस्था है, जहां दोहरे अंकों में विकास दर की जरूरत है। हम उम्मीद करते हैं कि एक समान जीएसटी दर के साथ वाहन क्षेत्र नियमित होगा, जहां अतिरिक्त सेस केवल लक्जरी वाहनों पर लगाया जाएगा। वर्तमान में वाहन क्षेत्र पर 28 फीसदी की अधिकतम जीएसटी दर लागू होगी है तथा अतिरिक्त सेस 1 फीसदी से लेकर 15 फीसदी तक का लगाया जाता है, जो कि गाड़ियों के मॉडल और स्पेसिफिकेशन पर निर्भर होता है।
इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देना
देश में ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देने से ई-वाहनों की बिक्री में आमूल-चूल बदलाव देखा जा सकता है। भविष्य की परिकल्पना को देखते हुए स्मार्ट या ऑटोमेटिक वाहनों को भी कर राहत का लाभ दिया जा सकता है।
इलेक्ट्रिक वाहनों पर कम कर लगाए जाएंगे, संभवत: 5 फीसदी। इसके अतिरिक्त इन्हें व्यवहार्य बनाने के लिए सड़क कर से पूरी तरह तरह से छूट दी जा सकती है।
अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) को बढ़ावा देने की जरूरत :
कहने की जरूरत नहीं है कि यह अन्वेषण का एक क्षेत्र है, जो भविष्य में आगे बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण है। आरएंडडी पर खर्च में साल 2017 में 150 फीसदी की कटौती की गई, जबकि इसे बढ़ावा देने की जरूरत है।
वाहनों की स्क्रैपिंग
सुझाव दिया गया है कि देश में साल 2000 से पहले के पंजीकृत वाहनों को स्क्रैप कर देना चाहिए। क्योंकि करीब 80 फीसदी प्रदूषण और सड़क दुर्घटनाएं पुराने वाहनों के कारण ही होती है, जो 15 साल से अधिक पुरानी होती है।
उद्योग ने प्रस्ताव दिया है कि वाहन मालिकों को अपने वाहनों को स्क्रैप करने के लिए एक बार प्रोत्साहन देना चाहिए, जो कि नए वाहनों पर कम जीएसटी, कार ऋण पर कम ब्याज दर या नए वाहन खरीदने पर सड़क कर में छूट के रूप में हो सकती है।
इसके साथ ही, एंड ऑफ लाइफ (ईएलवी) वाहनों की रिसाइकलिंग भी देश के लिए अनिवार्य है। केंद्र को प्रदूषण नियंत्रण लक्ष्यों के लिए एक मजबूत विधायी ढांचा लागू करना चाहिए।
विशेषज्ञ वी. रविचंदर के मुताबिक, वाहन उद्योग को अपनी विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (ईपीआर) का स्वेच्छा से निर्वहन करके एक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
इसके सही ढंग से लागू होने पर नौकरियों का निर्माण होगा, संसाधनों का संरक्षण होगा, ऊर्जा की बचत होगी, प्रदूषण में कमी आएगी, और जलवायु परिवर्तन को कम करेगा। रिसाइकिल्ड एल्युमिनियम में 5 फीसदी ऊर्जा की खपत होती है, जबकि रिसाइकिल्ड स्टील में 20 फीसदी ऊर्जा की खपत होती है। इसके अलावा इससे विदेशी मुद्रा की भी बचत होती है, क्योंकि इस धातुओं का आयात कम होता है।
एक चीज निश्चित है, जीएसटी के सुव्यवस्थित क्रियान्वयन, और लगातार सकारात्मक सुधार नीतियों से जीडीपी की मजबूत वृद्धि सुनिश्चित होगी। वहीं, सामान्य भावना बड़े वेतनभोगी वर्गो और किसानों को संतुष्ट करने वाले लोकलुभावन बजट की है।
( सोना समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं और सोना बीएलडब्ल्यू प्रेसिजन फोर्जिग लि. के प्रबंध निदेशक हैं।)