नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक के रूप में ऋषि कुमार शुक्ला की नियुक्ति को लेकर कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की आपत्ति पर रविवार को नाराजगी जताई।
जेटली ने उनके आपत्ति के औजार का इस्तेमाल निष्पक्ष रूप से नहीं, बल्कि अतिरेक के साथ इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।
उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा, कॉलेजियम में नियुक्ति पर आपत्ति विरले होता है। मैं मानता हूं कि खड़गे को आपत्ति का अधिकार है। आपत्तिकर्ता का अपना एक पक्ष होता है। वह अपने मत को महत्व देता है। वह वैकल्पिक विचार का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन कभी राजनीतिक औजार नहीं होना चाहिए। आपत्ति का अधिकार पवित्र है और इसका इस्तेमाल संयम से होना चाहिए। अगर आपत्तिकर्ता हर विचारणीय मौके पर आपत्ति करता है तो वह या तो आनुषंगिक कारणों से प्रेरित व्यक्ति है, या उसमें निष्पक्षता का अभाव है।
उन्होंने कहा कि अगर खड़गे हर विचारणीय अवसर पर आपत्ति करते हैं, तो इससे उनकी सोच की बानगी जाहिर होती है। उन्होंने सीबीआई निदेशक के संबंध में आलोक वर्मा की नियुक्ति व तबादला और शुक्ला की नियुक्ति का जिक्र करते हुए यह बात कही।
जेटली ने कहा, वह आपत्ति के हथियार का अतिरेक के साथ इस्तेमाल करते हैं, न कि निष्पक्ष रूप से। लापरवाही से विरोध के औजार का इस्तेमाल किए जाने से इसका महत्व निष्प्रभावी हो जाता है। कॉलेजियम जैसे प्रशासनिक निकायों में बार-बार आपत्ति का इस्तेमाल किए जाने से स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को विरोध को गंभीरता से नहीं लेने को बाध्य होना पड़ता है।
उन्होंने कहा, नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम में लगातार विरोधकर्ता यह संदेश देता है कि उनको विपक्ष का नेता होने की हैसियत से एक सदस्य के रूप में शामिल किया गया, लेकिन वह विपक्ष के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभाने में समर्थ नहीं रहे हैं, जबकि वह सरकार की समिति का हिस्सा हैं। उनके विरोध से इसकी अहमियत और विश्वसनीयता घट गई है।
उन्होंने कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में खड़गे का पद उनको समिति में बैठने के लिए अधिकृत करता है, लेकिन उन्हें पद के राजनीतिक रंग को बाहर रखना चाहिए।