फ्रैंक एफ. इस्लाम, नई दिल्ली : भारत के लिए वर्ष 2018 सामान्यत: कोई बुरा साल नहीं रहा। क्योंकि जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की रफ्तार अपेक्षाकृत अच्छी रही, मोदी सरकार ने कई नई पहलें शुरू कीं, और दुनिया में भारत की स्थिति और छवि मजबूत हुई है। समस्या यह है कि ये सभी शीर्ष स्तर के आंकड़े हैं और इससे यह पता नहीं चलता है कि भारतीय लोग क्या महसूस करते हैं।
इस बारे में किए गए हालिया शोधों से दुर्भाग्य से यह संकेत मिलता है कि वे खुश महसूस नहीं करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की 2018 वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट में 156 देशों के सूचकांक में भारत का स्थान 133 वां है, जोकि साल 2017 की रैकिंग की तुलना में 11 स्थान और नीचे है। 2018 में भारत की निराशाजनक रैंकिंग इसे दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों से नीचे और सबसे निचला स्थान पाने वाले दक्षिण एशियाई देशों के बीच रखता है।
समाज विज्ञान के शोधार्थियों द्वारा साल 2018 के अंत में जारी खुशी को लेकर किए गए अध्ययन से पता चलता है कि भारत में लोगों का जीवन को लेकर संतुष्टि का स्तर 2006-17 की तुलना में 10 फीसदी कम हुआ है। इन आकलन पर भारत के खराब प्रदर्शन का कारण क्या है?
इसका व्याख्या करना सरल नहीं है। हालांकि उन कारकों पर विचार किया जा सकता है, जो इस सूचकांक में अच्छे स्कोर प्राप्त करने में सहायक हो सकते हैं।
जैसा कि हैप्पिनेस रिपोर्ट के विशेष सारांश में कहा गया है, सभी शीर्ष देशों में इन छह प्रमुख कारकों पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिससे वहां के नागरिक अच्छा महसूस करते हैं। इनमें आय, स्वास्थ्यकारी जीवन की प्रत्याशा, सामाजिक समर्थन, स्वतंत्रता, विश्वास और उदारता शामिल है। खुशी के अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया भर में लोगों की जीवन संतुष्टि आय, स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा के साथ-साथ सकारात्मक मनोदशा, स्वतंत्रता और काम करने से मिलने वाले फायदों को लेकर मन में भरोसा के भाव पर निर्भर करती है।
जाहिर है कि भारत इनमें से कई कारकों पर बेहतर स्थिति में नहीं है। कई अध्ययन किए गए हैं, जिनमें आय, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में प्रमुख कमियां उजागर हुई हैं। यहां तक कि भारत के नागरिकों की खुशी का अध्ययन का आकलन करने के लिए भी कोई व्यवस्थित तरीका नहीं है।
अन्य कई देशों की तरह भारत भी जीडीपी और अन्य आर्थिक संकेतकों को नियमित रूप से नापने पर जोर देता है। धारणा यह है कि इन मानकों पर बेहतर प्रदर्शन करने से देश के नागरिकों को लाभ होगा।
लेकिन यह धारणा सही नहीं है। नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जोसेफ स्टिग्लिट्ज विस्तार से बताते हैं, कोई भी इकलौता पैमाना यह नहीं जांच सकता कि आधुनिक समाज में क्या चल रहा है, लेकिन जीडीपी मापक यह मापने में पूरी तरह से असफल है कि व्यक्ति के स्तर पर क्या चल रहा है (आय के अंतर को मापना औसत आय को मापने से बेहतर तरीका हो सकता है)।
दो पुरानी कहावतें हैं। पहली क्या मापा जाता है वह मायने रखता है और दूसरा जो मापा जाता है, वह व्यवस्थित हो जाता है। एक सुव्यवस्थित मापक प्रणाली अपना कर भारत यह प्रदर्शित करेगा कि उसके नागरिकों की खुशी मायने रखती है और यह उनकी जीवन संतुष्टि को बढ़ाने के लिए नीतियों के विकास और कार्यान्वयन के लिए एक मंच प्रदान कर सकेगा।
यह देखते हुए, मैं खुशी को मापने के मासिक सूचकांक की सिफारिश करता हूं। इस तरह का सूचकांक भारतीय नागरिकों की बेहतरी की जानकारी हासिल करने के मुकम्मल स्रोत हो सकते हैं।
सामाजिक वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों की मदद से यह तय किया जा सकता है कि इस सूचकांक में क्या-क्या कारक रखे जाएं। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सूचकांक को विकसित कर जितनी जल्दी संभव हो उतनी जल्दी लागू किया जाए। इसका कारण यह है कि उपलब्ध डेटा और सबूत बताते हैं कि भारत अपने लोगों की खुशी और जीवन की संतुष्टि को बढ़ाने के मामले में आगे बढ़ने के बजाय पीछे की ओर जा रहा है।
इस सूचकांक के नतीजे और जीडीपी की रिपोर्ट को एक ही समय में जारी करना चाहिए, ताकि सभी संबंधित व्यक्ति और संस्थान यह सुनिश्चित कर सकें कि देश की आर्थिक वृद्धि और प्रगति से देश के नागरिकों को संतुष्टि हासिल हो सके। इस तरह की जानकारी उपलब्ध रहने से नीति निर्माता यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकते हैं कि जब भारत बेहतर करता है तो सभी भारतीय के लिए भी बेहतर होता है।
महात्मा गांधी की प्रसिद्ध उक्ति है, खुशी तभी मिलती है, जब जो आप सोचते हैं, जो आप कहते हैं, और जो आप करते हैं, इन सभी में सामंज्यस्य होता है। और गांधी जी सही थे।
शोध से पता चलता है कि आय में असमानता और अपर्याप्त शिक्षा जैसे बाहरी कारक किसी व्यक्ति की खुशी प्राप्त करने की क्षमता को कम कर सकते हैं। इसलिए इन परिस्थितियों को सुधारने से लोगों को खुशियां मिलेंगी।
महात्मा गांधी की प्रसिद्ध उक्ति है, आप दुनिया में जो बदलाव देखना चाहते हैं, पहले वह आप खुद बनें। मुझे भरोसा है कि सभी एक अधिक खुशहाल भारत देखना चाहते हैं।
खुशी का सूचकांक एक खुशहाल भारत पर ध्यान केंद्रित करने और भारतीयों को एक साथ लाने के लिए एक प्रारंभिक बिंदु होगा।
( वाशिंगटन डीसी में रहनेवाले एक उद्यमी, नागरिक और विचारक हैं। यहां व्यक्त किए विचार उनके व्यक्तिगत हैं।)