नई दिल्ली : हाल के जी घटनाक्रम के बाद खतरे को भांपते हुए सेबी नए नियम तैयार कर रही है, जिससे एमएफ (म्यूचुअल फंड) प्रमोटर्स को प्रतिभूति के बदले ऋण नहीं दे पाएंगे। नौ एमएफ ने प्रतिभूतियों के बदले जी समूह के प्रमोटरों को 7,000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था, लेकिन जब उन प्रतिभूतियों को भुनाने की जरूरत पड़ी तो इस डर से नहीं भुनाया जा सका कि इससे कर्ज की पूरी रकम की वसूली नहीं हो पाएगी।
इसके अलावा बाजार नियामक यह योजना भी बना रहा है कि एमएफ को निर्देश दिया जाए कि वह सभी नए प्रतिभूति ढांचे को शेयरों के प्रत्यक्ष रेहन में तब्दील कर दे, ताकि एमएफ को कम से कम नियंत्रण के कुछ उपाय तो मिले।
हाल ही में, प्रमोटरों और एमएफ ने मिलकर इसी तरह के कई लेन-देन किए हैं, जिसमें ऐसी ही स्थिति रही है। इसमें एमडीयू (गैर-निपटान बचनबद्धता), एनईयू (गैर-ऋणभार बचनबद्धता) और शेयरों के हस्तांतरण को सीमित करनेवाली पारस्परिक संविदाएं शामिल हैं। यह सभी शेयरों को सीधे गिरवी रखने के लिए नाकाफी है।
जी के घटनाक्रम से यह जाहिर हो गया है कि गिरवी रखे शेयरों की सुरक्षा कितनी भ्रामक है। इसे देखते हुए सेबी ने यह महसूस किया है कि प्रमोटरों और एमएफ के द्वारा बनाए गए इस तरह के सभी ढांचे निवेशकों को स्पष्ट रूप से कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं, और इसलिए इन सबको तुरंत शेयरों की प्रत्यक्ष गिरवी में तब्दील करने की जरूरत है।
इससे यह भी सुनिश्चित हो सकेगा कि कंपनियां गिरवी रखे गए शेयरों के परिमाण को निवेशकों के समक्ष प्रकट करें, क्योंकि प्रमोटर्स गैर-गिरवी संरचनाओं का उपयोग कर रहे हैं, जिसमें प्रकटीकरण की सीमित जरूरत होती है, और प्रमोटर्स निवेशकों को पूरी जानकारी मुहैया नहीं कराकर उनके साथ लुका-छिपी का खेल खेल रहे हैं।
एमएफ उद्योग ने वर्तमान में सूचीबद्ध कंपनियों को उनके शेयरों के बदले 50,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज दिया है, और इसमें शामिल सार्वजनिक धन के भारी मात्रा को देखते हुए, सेबी अव्यवस्था को ठीक करने के लिए दोगुनी तेजी से आगे बढ़ रहा है, जैसे कि ऐसे ही एक मामले में जी समूह भी शामिल है।