शिमला : बेटी और वन संरक्षण की अहमियत के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से हिमाचल प्रदेश में सरकार एक नई योजना शुरू करने जा रही है।
इसके अलावा, प्रचुर परिमाण में जंगलों में पाई जाने वाली देवदार की नुकीली पत्तियों का अधिकतम उपयोग के मकसद से सरकार ने इससे संबंधित उद्योगों का संर्वधन करने की योजना बनाई है।
मालूम हो कि गर्मी के मौसम में जंगल में आग लगने की घटनाओं की मुख्य वजह देवदार की यही नुकीली पत्तियां होती हैं।
परिवार में बेटियों का मान बढ़ाने और उनकी अहमियत बताने के मकसद से सरकार आगामी वित्त वर्ष में एक बुटा बेटी के नाम योजना शुरू करने जा रही है।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शनिवार को अपने बजट भाषण में कहा कि हरे-भरे जंगल, स्वच्छ पर्यावरण और बेटियों व महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल स्वस्थ समाज की निशानी है।
देवदार की नुकीली पत्तियों से अब ग्रामीणों को कमाई होगी। ज्वलनशील पत्तियों में पाए जाने वाले रेजिन का उपयोग जैव ईंधन तैयार करने में किया जाएगा, जिसका इस्तेमाल सीमेंट संयंत्रों में किया जा सकता है। स्थानीय लोग इन पत्तों को चुनकर प्रदेश में लगाई जाने वाली औद्योगिक इकाइयों के हाथ बेच सकते हैं।
ठाकुर ने कहा कि सरकार भारतीय वन सर्वेक्षण के उपग्रह आधारित संक्षिप्त संदेश सेवा का प्रयोग कर जंगल में लगने वाली आग को रोक सकेंगे। इसके लिए सरकार जनांदोलन शुरू करेगी।
लोग इस सेवा के माध्यम से त्वरित वन अग्निशामक दस्ते संपर्क कर सकते हैं ताकि जंगल में लगने वाली आग से संबंधित सूचना तुरंत अधिकारियों को मिल सके और कम वक्त में आग पर काबू पाया जा सके।
उन्होंने कहा, हमारी सरकार ने 2018-19 में देवदार की नुकीली पत्तियों पर आधारित उद्योगों को 50 फीसदी सब्सिडी के प्रावधान के साथ एक योजना की घोषणा की थी। अब हमने 2019-20 में देवदार की पत्तियों पर आधारित 25 इकाइयां स्थापित करने के लिए सहयोग करने का प्रस्ताव किया है।
ठाकुर ने कहा, इससे न सिर्फ देवदार के जंगलों की आग को रोकने में मदद मिलेगी, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।
राज्य में हरे पेड़ काटने पर 23 मार्च, 1994 को रोक लगा दी गई थी, जो आज भी जारी है।
विशेषज्ञों ने आईएएनएस को बताया, हरे पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध से पुनरुत्पादन बाधित हुआ है। वन-वर्धन कटाई के माध्यम से कायाकल्प किया जा सकता है।
ठाकुर ने कहा, हमारी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी के बाद शुरुआती चरण में तीन वन क्षेत्रों में वन संसाधनों की निकासी के आधार पर वन-वर्धन शुरू किया है। 2019-20 के दौरान, 1,730 हेक्टेयर जंगल की जमीन पर वन-वर्धन आधारित वन संपदा की कटाई की जाएगी। इससे न केवल वनों की गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि राज्य की आय में भी वृद्धि होगी।