नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व अंतरिम निदेशक एम. नागेश्वर राव को अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया। शीर्ष अदालत ने नागेश्वर राव व एजेंसी के कानूनी सलाहकार को अदालत की कार्यवाही चलने तक दिन भर अदालत में ही रहने की सजा सुनाई।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एल.नागेश्वर राव व न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने उन पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि एक न्यायाधीश के तौर पर अपने बीते 20 सालों में उन्होंने कभी अदालत की गरिमा व सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं किया।
शीर्ष अदालत की बिना मंजूरी लिए सीबीआई से पूर्व अतिरिक्त निदेशक ए.के.शर्मा को रिलीव करने को लेकर नागेश्वर राव व सीबीआई के कानूनी सलाहकार को अदालत की नाराजगी का सामना करना पड़ा।
नागेश्वर राव को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराते हुए न्यायाधीशों ने उल्लेख किया कि 18 जनवरी 2019 को जब ए.के.शर्मा को रिलीव किया गया तो नागेश्वर राव अदालत के दोनों आदेशों से अवगत थे और उन्होंने संबंधित लोगों से अदालत से संपर्क करने को कहा था।
हालांकि, उसी दिन नागेश्वर राव ने ए.के.शर्मा को सीबीआई से रिलीव करने के डीओपीटी द्वारा भेजे गए एक मसौदा आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया। ऐसा नागेश्वर राव ने शीर्ष अदालत को विश्वास में लिए बिना ही कर दिया।
ए.के.शर्मा ने कहा था कि उन्हें सीबीआई से बाहर नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसके लिए सीबीआई को अदालत की इजाजत लेनी होगी। गौरतलब है कि ए.के.शर्मा मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामले की जांच कर रहे दल की अगुवाई कर रहे थे।