रचना प्रियदर्शनी : पिछले कुछ दिनों से अब तक अखबार, टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर कई लोगों को इस घटना के प्रति रोष प्रकट करते देख रही हूं. कोई कह रहा है- ”उन्होंने 40 मारे हैं, हम 80 को मारेंगे”. कोई सरकार से यह अपील कर रहा है कि देश के हर नागरिक को बंदूकें थमा दी जाये, ताकि वे चुन-चुन कर दुश्मनों से अपने वीर सपूतों की शहादत का बदला ले सकें.
ये सारी प्रतिक्रिया स्वत: और स्वभाविक भी है, क्योंकि मातृभूमि के जिन वीर सपूतों की वजह से हम अपने घरों में सुख-चैन की नींद लेते हैं, उनके सीने पर अगर गोली लगेगी, तो उसका दर्द उस देश के नागरिकों को तो होगा ही, लेकिन किसी भी सामान्य नागरिक के लिए ऐसा कहना या सोचना काफी आसान होता है, पर अफसोस तो इस बात का है कि जनभावना का सैलाब देश में तभी उमड़ता है, जब इस तरह की कोई बड़ी घटना या दुर्घटना हो जाती है. बाकी समय तो हम या हमारी सरकार तो जैसे आंख-कान मूंदे बैठे रहती हैं.
अगर ऐसा नहीं होता, तो खुफिया ऐजेंसियों द्वारा काफी पहले ऐसी किसी आतंकवादी घटना की आशंका जताये जाने के बावजूद उस संबंध में कोई कार्यवाही क्यों नही की गयी? आखिर 350 किलो आरडीएक्स जैसे खतरनाक एक्सप्लोसिव लेकर एक आदमी सेना के सीमा क्षेत्र में प्रवेश कर गया और किसी ने उसे रोका तक नहीं, जबकि अन्य राज्यों या क्षेत्रों से कोई आम नागरिक अगर एक छोटा-सा मोबाइल फोन भी लेकर घुसता है, तो उसकी सघन चेकिंग की जाती है.
बड़ा आश्चर्य होता है इस बारे में सोच कर! इसका मतलब है कि कहीं-न-कहीं कोई तो लूपहोल जरूर है हमारी सुरक्षा व्यवस्था में, जो कभी उड़ी हमले के रूप में सामने आता है, तो पुलवामा हमले के रूप में दहशत फैलाता है. कभी पठानकोट का दिल दहलता है, तो कभी अमरनाथ जानेवाले यात्रियों पर हमला होता है. उस पर ध्यान दिया जाना ज्यादा जरूरी है, बजाय भड़काऊ बयान देकर या नारेबाजी करके जनभावनाओं को भड़काने के.
हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां हर बात पर राजनीति हावी है. ऐसा नहीं है कि हमारी सेना के बहादुर जवान ऐसी घटनाओं पर विजयी पाने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उन्हें इसकी खुली छूट दी जाये. प्रधानमंत्री मोदी पिछले दिनों अपने एक जनभाषण में इस बात का आश्वासन भी दे चुके हैं. अगर इस पर अमल भी करें, तो मुझे पूरा यकीन है कि इस समस्या का समुचित समाधान बहुत जल्दी ही निकलेगा.
जहां तक बात है आम जनता की, तो इस मुश्किल की घड़ी में धैर्य बनाये रखना बहुत जरूरी है. कुछ उपद्रवी तत्व देश के हर हिस्से में इसी बहाने से अपनी मजहबी दुश्मनी निकालने का मौका तलाश रहे हैं. हमें उनके इस नापाक इरादे को समझने की जरूरत है. ये सीमा पार से हमला करनेवाले आतंकवादियों से कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हो सकते हैं.
ये अपनी मजहबी मतलबपरस्ती के लिए देश की कौमी एकता को घुन की तरह चाट कर खोखला करने पर तुले हैं और अगर ऐसे समय में हम भी उनके बहकावे में आ गये, तो ‘अनेकता में एकता’ वाली भारत की जो अखंड पहचान है, उसका अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा. जो लोग ऐसा कर रहे हैं या करने की सोच रहे हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि जिन सैनिकों की शहादत का बदला वे चाह रहे हैं, वे खुद हर जात-धर्म से ऊपर थे. उनका बस एक ही धर्म था- देश…. एक ही मजहब था- देश के प्रति वफादारी और एक ही फर्ज था- हर हाल में अपने तिरंगे का आन-बान और शान को बनाये रखना. मां भारती के ये सपूत हिंदू-मुस्लिम, कश्मीरी या बिहारी नहीं थे, बल्कि सिर्फ और सिर्फ हिंदुस्तानी थे.
अपनी कोख से जन्म देनेवाली मां से पहले भारत मां के बेटे… अपने घर-परिवार के लिए सोचने से पहले अपनी मातृभूमि के लिए सोचनेवाले सपूत… इसलिए उनकी शहादत के नाम पर देश की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना या फिर जाति-धर्म के नाम पर आपस में लड़ना निहायत ही शर्मनाक है. मेरा मानना है कि ऐसी ओछी हरकतें करके वे अपने वीर सैनिकों की शहादत का अपमान कर रहे हैं.