नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद अयोध्या विवाद मामले को बातचीत के जरिए सुलझाने के लिए तीन सदस्यीय समिति से मध्यस्थता कराए जाने का आदेश दिया।
इस समिति के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ.एम.आई. कलीफुल्ला होंगे और उनके साथ आर्ट ऑफ लीविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर व वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू इसके सदस्य होंगे। मध्यस्थता की प्रक्रिया फैजाबाद में होगी और यह एक सप्ताह में शुरू होगी।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपने आदेश में कहा, हमने विवाद की प्रकृति पर विचार किया है। इस मामले में पक्षकारों के बीच सर्वसम्मति की कमी के बावजूद, हमारा विचार है कि मध्यस्थता के जरिए विवाद को सुलझाने का एक प्रयास किया जाना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के अध्यक्ष हैं।
इस पीठ के दूसरे सदस्यों में न्यायमूर्ति ए.ए.बोबडे, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण व न्यायमूर्ति एस.अब्दुल नजीर हैं।
मुस्लिम वादकारियों ने मध्यस्थता पर सहमति जताई, लेकिन हिंदू वादकारियों ने इसका विरोध किया। हिंदू पक्ष ने कहा कि उनके लिए भगवान राम का जन्मस्थान निष्ठा व मान्यता का विषय है और वे इस मध्यस्थता में विपरीत स्थिति में नहीं जा सकते।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने 2010 के फैसले में विवादित स्थल को तीन समान भागों में बांटा है, जिसमें निर्मोही अखाड़ा, रामलला व सुन्नी वक्फ बोर्ड प्रत्येक को एक-एक भाग दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को प्रिंट व विजुअल मीडिया दोनों को मध्यस्थता की कार्यवाही की रिपोर्टिग करने से वर्जित कर दिया।
अदालत ने मध्यस्थता प्रक्रिया में भाग ले रहे लोगों के मीडिया से बात करने पर भी रोक लगा दी।
अदालत ने कहा, हमारी राय है कि जब तक मध्यस्थता की प्रक्रिया चलेगी तो तो प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इस प्रक्रिया की कोई रिपोर्टिग नहीं होनी चाहिए।
हालांकि, अदालत ने कोई विशेष दिशा निर्देश नहीं पारित किया।
अदालत ने मध्यस्थता प्रक्रिया की प्रगति पर इसके शुरू होने के चार हफ्तों के बीच रिपोर्ट मांगी है।
अदालत ने 26 फरवरी के अपने आदेश में सभी पक्षों को मामले पर अदालत की नियमित सुनवाई की तैयारी के लिए आठ हफ्ते का समय दिया है।