हैदराबाद : दिसंबर 2018 विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत को पीछे छोड़ते हुए तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) आगामी लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार में तेजी लाकर अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफी आगे है।
मुख्य राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है, हालांकि सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव बीते चार दिनों में संसदीय क्षेत्रों में सिलसिलेवार तैयारी बैठकों को संबोधित कर एक कदम आगे बढ़ा चुके हैं।
केटीआर नाम से प्रसिद्ध राव ने सात निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं की बैठकों को संबोधित किया। प्रत्येक क्षेत्र में उन्होंने 15 हजार से ज्यादा कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और पार्टी नेताओं के साथ चुनावी रणनीति पर चर्चा के लिए कुछ जगह पर रात में रुके भी।
अपने पिता और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव द्वारा जिम्मेदारियां दिए जाने पर केटीआर 17 में से 16 लोकसभा सीटों के अपने लक्ष्य को हासिल करने को लेकर निश्चित नजर आ रहे हैं। टीआरएस ने हैदराबाद सीट अपने सहयोगी मजलिस-ए -इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) को दी है।
प्रत्येक बैठक में केटीआर कह रहे हैं कि तेलंगाना और टीआरएस के लिए 16 सीटों का क्या मतलब होगा। उन्होंने अनुमान लगाया कि राजग और कांग्रेस दोनों ही केंद्र में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होंगी, इसलिए उन्होंने लोगों से सभी टीआरएस उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने का आग्रह किया, ताकि पार्टी केंद्र में अगली सरकार के गठन में अहम भूमिका मिभा सके।
केटीआर आश्वस्त हैं कि चंद्रशेखर राव तय करेंगे कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा, क्योंकि वह टीआरएस व अन्य क्षेत्रीय दलों वाले संघीय मोर्चे के नेता हैं। वह वादा कर रहे हैं कि मोर्चा राष्ट्रीय राजनीति में गुणात्मक परिवर्तन लाएगा, क्योंकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अपने वादे पूरे करने में विफल रही हैं।
अपनी कल्याणकारी और विकास परियोजनाओं के साथ पूरे देश के लिए एक मॉडल के रूप में उभरे तेलंगाना का जिक्र करते हुए केटीआर ने उम्मीद जताई कि समान योजनाएं देश भर में लागू की जाएंगी।
केटीआर लोगों को बता रहे हैं कि अगर टीआरएस दिल्ली में शासन करने की स्थिति में हुई तो राज्य के लिए वह कैसे फायदेमंद साबित होगी। उन्होंने कहा, राज्य को जरूरी फंड और परियोजनाएं मिलेंगी।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अभी तक एक-एक जनसभा को संबोधित किया है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात्र एक सीट मिली थी, जबकि कांग्रेस ने 18 सीटों पर कब्जा जमाया था। हालांकि पिछले सप्ताह उसके तीन विधायक सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हो गए हैं।
दोनों राष्ट्रीय दल हालांकि उम्मीद कर रहे हैं कि लोकसभा के नतीजे अलग होंगे, क्योंकि यह चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा जाएगा।
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