रंजन : बिहार में पांच अप्रैल 2016 को लागू हुए शराबबंदी को आज तीन साल 26 दिन हो गए। शराबबंदी के शुरुआती महीने में अगस्त 2016 में ही गोपालगंज में ज़हरीली शराब पीने से 18 लोगों की मौत हो गई थी। वर्तमान में हर जिले से हर दिन सैकड़ों लीटर शराब जब्त हो रही है और दर्जन भर शराबी पकड़ा रहे हैं। यही कारण है बिहार के विभिन्न जिलों में क्षमता से कहीं अधिक करीब डेढ़ लाख लोग बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम के उल्लंखन मामले में जेल में बंद हैं। सूबे की सरकार और उनके नुमाइंदे आए दिन शराबबंदी को सफल बताते फिरते हैं। जबकि जदयू के कई वरीय नेता समेत जिला महामंत्री तक शराब बेचने और रखने के आरोप में फंस चुके हैं।
ताजा मामला मधेपुरा का है। इसी अप्रैल माह के दूसरे हफ्ते में जदयू जिला महासचिव अरविंद सिंह के घर से भारी मात्रा में शराब बरामद हुई। चूंकि सरकार जदयू की है, इसलिए नेताजी पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई। पार्टी ने बस उन्हें निलंबित कर दिया। कुछ सरकारी अफसरों ने यहां तक कह दिया कि शराबबंदी के कारण अपराध का ग्राफ गिरा है। जबकि पिछले तीन साल में करीब तीन दर्जन से अधिक पुलिस कर्मी ही शराबबंदी कानून तोड़ने के मामले में फंस चुके हैं।
शराबबंदी गरीबों के लिए दोहरी मार बनी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर अपना सीना चौड़ा कर लेते हैं। कहते हैं शराबबंदी से खुशियां आईं, जबकि हकीकत देखी जाए तो इस कानून ने गरीबों की परेशानी और बढ़ा दी है। शराबंदी के बाद गरीब, मजदूर का रोजगार छिन गया। कई लोग बेरोजगार हो गए। शराब के एकाएक बंद से कई गरीब बीमार पड़ गए या फिर बेमौत मर गए। मनोरोग चिकित्सकों का कहना है कि शराब अचानक छोड़ देने से कई तरह की मानसिक बीमारियों का खतरा रहता है, इसलिए शराबियों को जेल में डालने की जगह उनकी काउंसलिंग की जानी चाहिए।
नशामुक्ति व पुनर्वास केंद्र में उन्हें रखकर नशे की लत छुड़ाई जानी चाहिए। कुछ माह पहले शराब पीने के आरोप में पूर्वी चम्पारण जिले के पिपराकोठी थाना क्षेत्र के सूर्यपुर से सुरेंद्र शाह नाम के शख्स को गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के बाद उसे शराब नहीं मिल रही थी, जिस कारण वह बुरी तरह बीमार पड़ गया। हालत नाजुक होने पर उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया था, जहां उसकी मौत हो गई।
सूबे में पर्यटकों की संख्या घटी, राजस्व को भी हानी
पर्यटन निदेशालय के मुताबिक 2016 के जून और जुलाई में पर्यटकों की संख्या में 21 लाख की कमी हुई। साल 2015 में इन दो महीनों में पर्यटकों की संख्या करीब 35 लाख थी, जो घटकर 14 लाख रह गई थी। पर्यटकों की संख्या में कमी आने की वजह से ना केवल राज्य सरकार को राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है, बल्कि पर्यटकों पर निर्भर रहने वाले होटल व्यवसायी और छोटे-मोटे रोजगार करने वाले भी प्रभावित हुए हैं।
राज्य में पर्यटकों की संख्या में कमी के साथ- साथ राजधानी पटना में होने वाली कॉरपोरेट मीटिंग में भी भारी कमी आई है। राज्य में पिछले चार महीनों में होटल व्यवसाय को 25 से 30 फीसदी तक नुकसान उठाना पड़ा है। कारोबारी अपने सम्मेलनों के लिए पड़ोसी राज्यों के बड़े शहरों जैसे रांची, कोलकाता, सिलिगुड़ी की ओर देख रहे हैं।
पड़ोसी राज्यों का बढ़ा राजस्व
बिहार में शराबबंदी लागू होने से उत्तरप्रदेश, झारखंड और बंगाल में शराब की खपत गई गुना बढ़ गई है। बिहार से लगी सीमाओं पर कई वैध-अवैध शराब की दुकानें खुली हैं। इन पड़ोसी राज्यों और नेपाल में शराब की बिक्री वैध होने से शराब की तस्करी भी बिहार में शुरू हो गई है। शराबबंदी लागू होने की वजह से सरकार को प्रति वर्ष करीब चार हजार करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
पटना के समाजविज्ञानी डीएम दिवाकर का कहना है कि शराब पीना कोई अपराध नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बुराई है। उन्होंने कहा, ’शराब पीते वक्त गिरफ्तार व्यक्तियों को 50 हजार रुपये लेकर छोड़ देने की जगह सरकार को चाहिए था कि उन्हें जेल की जगह नशामुक्ति केंद्र में कुछ महीने रखती और नशा छुड़ाकर उन्हें रिहा करती और साथ ही ज्यादा से ज्यादा नशामुक्ति व पुनर्वास केंद्र स्थापित करती, ताकि उनका इलाज किया जा सके।