शिमला : इन दिनों लंबे समय तक शुष्क मौसम और असामान्य उच्च तापमान ने हिमाचल प्रदेश में वनों के लिए खतरा बन गया है, यानी वन विभाग के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है।
जंगल में आग लगने के कारण हर साल वनस्पतियों और पशुवर्ग को भारी नुकसान पहुंचता है।
हालांकि प्रदेश के जंगलों में अब तक कोई बड़ी आग नहीं लगी है, लेकिन इन दिनों राज्य की राजधानी के आसमान में धुंध छाने लगी है। इसके अलावा कसौली, चैल, धरमपुर, बिलासपुर, कांगड़ा, हमीरपुर, धर्मशाला और पालमपुर कस्बों के आसपास की पहाड़ियों में भी धुंध देखी जा सकती है।
प्रधान प्रमुख वन संरक्षक अजय शर्मा ने आईएएनएस से कहा, हमने राज्यभर में 23 अग्नि-संवेदनशील वन प्रभागों की पहचान की है, जहां 30 जून तक जंगल की आग की निगरानी और नियंत्रण के लिए कम से कम चार होमगार्ड के जवानों की एक टीम तैनात की गई है।
उन्होंने कहा कि होमगार्ड के जवानों को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें विशेष वर्दी सहित अग्नि-प्रतिरोध किट प्रदान किए जाते हैं।
शर्मा ने कहा कि वन कर्मचारियों के अलावा जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए होमगार्ड के जवानों की एक समर्पित क्विक रिस्पांस टीम (कार्य बल) बनाई जाती है।
प्रत्येक टीम को पानी की टंकियों से सुसज्जित वाहन और पाइप उठाने की सुविधा प्रदान की गई है जो आपातस्थिति में कार्य कर सकते हैं।
वन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, 22 प्रतिशत, या कुल वनक्षेत्र के 8,267 वर्ग किलोमीटर के अंदर विशेष रूप से मध्य और निम्न पहाड़ियों में आग लगने के संकेत है।
गर्मियों के दौरान, चीड़ के जंगलों से अधिकांश आग लगने की सूचना मिली थी। चीड़ के पेड़ों से गिरने वाले सूखे पत्ते अत्यधिक ज्वलनशील होते हैं। चीड़ के जंगल 5,500 फीट की ऊंचाई में पाए जाते हैं।