नई दिल्ली : क्या राजनीतिक संरक्षण ने आईएलएंडएफएस की सीक्रेट सोसाइटी को सालों तक सत्ता के अपमानजक और शर्मनाक दुरुपयोग में लिप्त होने दिया। अब इस सवाल का जवाब कुछ-कुछ मिलने लगा है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा 29 मई, 2019 को एसएफआईओ में दाखिल की गई रिपोर्ट से खुलासा होता है कि कंपनी चलाने के तौर-तरीकों में इतनी अधिक खामियां पाई गई हैं, जोकि आईएएनएस की जांच सीरीज में दी गई रिपोर्ट से कई गुणा अधिक है, जिसमें बताया गया था कि कंपनी में सत्ता का बेतरह दुरुपयोग किया गया और उसे किसी जागीर की तरह चलाया गया।
रिपोर्ट में बताया गया है कि रवि पार्थसारथी और हरि शंकरन की अगुवाई में प्रबंधन ने निजी बैंक की तरह एक शैडो बैंक चलाया।
रिपोर्ट में कहा गया है, यह खुलासा हुआ है कि रवि पार्थसारथी और हरि शंकरन ने व्यवसायी और स्टर्लिग समूह के मालिक सी. शिवशंकरन का आतिथ्य स्वीकार किया और आईएलएंडएफएस समूह का इस्तेमाल निजी जागीर की तरह करते हुए आरबीआई और कंपनी के सभी मानदंडों का उल्लंघन करते हुए उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाया।
जांच से यह भी खुलासा हुआ कि आईएफआईएन (आईएसएंडएफएस फाइनेंशियल) एक एनबीएफसी होने के नाते आरबीआई के दिशानिर्देशों और निर्देशों द्वारा नियंत्रित है।
जांच से पता चला कि वित्त वर्ष 2012-13 के बाद समूह की कंपनियों ने मनमाने कर्ज बांटने शुरू कर दिए और कुल कर्ज का 15 फीसदी हो गया। बाद के वर्षों में, यह लगातार बढ़ता रहा और दोगुना होकर लगभग 5,200 करोड़ रुपये हो गया, यानी वित्त वर्ष 2017-18 में कुल कर्ज और अग्रिमों का 37 फीसदी तक पहुंच गया।
इसके अलावा जांच से यह भी खुलासा हुआ कि ऋणों को आईएफआईएन (ए2-ए9) के प्रबंधन ने शिवा ग्रुप ऑफ कंपनीज के लिए मंजूरी दी थी। यह भी पता चला कि उक्त शिवा समूह को धोखाधड़ी से कर्ज दिया गया, जो कि समूह के नियंत्रक सी. शिवशंकरन के रवि पार्थसारथी और हरि संकरन के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण प्रदान किए गए।
जांच से खुलासा हुआ कि आईएफआईएन के प्रबंधन ने शिवा ग्रुप ऑफ कंपनीज को कर्ज देकर अपनी अधिकारों का दुरुपयोग किया, क्योंकि शिवा समूह की कुछ कंपनियों ने पहले लिए कर्ज का भी पुर्नभुगतान नहीं किया था। साथ ही शिवा समूह को दिए गए कर्ज की वसूली नहीं हो पाई, जिससे सी. शिवशंकरन को निजी फायदा हुआ।