चित्रकूट : मिनी चंबल घाटी के नाम से चर्चित बुंदेलखंड के पाठा के जंगलों में अब बन्दूकों की धांय-धांय नहीं, क से कबूतर की आवाज गूंज रही है। यहां के पुलिस अधीक्षक बंदूक नहीं, अपने हाथ में चाक और डस्टर लेकर वनवासियों के बच्चों को पाठा की पाठशाला अभियान के तहत ककहरा सिखा रहे हैं।
जी हां, जब सूबे की पुलिस बदमाशों के खिलाफ एनकाउंटर अभियान चला रही है, ठीक उसी समय चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक मनोज झा बुंदेलखंड में मिनी चंबल के नाम से चर्चित रहे पाठा के जंगलों के बीच बसे वनवासियों के बच्चों को अपने हाथ में चाक और डस्टर लेकर पाठा की पाठशाला अभियान चला रहे हैं। वह गांव में चौपाल लगाकर बच्चों को अक्षर ज्ञान करा रहे हैं।
पुलिस अधीक्षक झा ने सोमवार को दस्यु प्रभावित मारकुंडी थाना क्षेत्र के गांव किहनिया कोलान में जब ब्लैक बोर्ड पर बच्चों को क से कबूतर पढ़ाया तो एक बच्चे ने कहा मास्साहब.. मास्साहब! क से कमल भी तो होता है।
अपने इस अभियान पर एसपी झा कहते हैं, पाठा की पाठशाला कार्यक्रम से बच्चों के मन में पुलिस के प्रति जो डर और गलत मानसिकता समाई हुई है, उसे खत्म कर ही दस्यु समस्या का हल निकाला जा सकता है। ये बच्चे जब स्कूल जाएंगे और शिक्षित होंगे, तब खुद-ब-खुद अपनी तकदीर लिखेंगे।
एसपी के इस अभियान से पुलिस को देख कर भागने वाले वनवासी भी खुश हैं। उन्हें भी लगने लगा है कि वर्दी में भी नेक इंसान छिपा होता है, जो उनकी पीढ़ी को खौफ और दहशत से उबारना चाहता है।