नई दिल्ली : सरकार के खर्च को कम करने के मकसद से वित्त मंत्रालय केंद्र प्रायोजित कुछ योजनाओं का विलय करने और कुछ पर विराम लगाने पर विचार कर रहा है, क्योंकि खर्च को युक्तिसंगत बनाना सरकार की प्राथमिकता है। यह बात एक शीर्ष अधिकारी ने कही।
अधिकारी ने बताया कि स्वास्थ्य, आवास और पेयजल से जुड़ी नई योजनाओं के लिए 20,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
व्यय सचिव गिरीश चंद्र मुर्मू ने आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में कहा, हमें राजस्व, राजकोषीय घाटा और व्यय की प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बनाना है। हमने 32 मंत्रालयों को प्राथमिकता के आधार पर रखा है और हमने थोड़ी वृद्धि के साथ उसी खर्च को फिर से बनाए रखा है। इनके साथ-साथ हमने स्वास्थ्य, पेयजल और आवास की नई योजनाओं के लिए 20,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।
मुर्मू ने कहा, हम युक्ति संगत (खर्च को) बनाएंगे, न कि इसमें कमी करेंगे। हमारे पास अनेक सीएसएस (केंद्र प्रायोजित योजनाएं) हैं। छोटी योजनाओं में जहां विलय की जरूरत है वहीं कुछ में बदलाव किया जाएगा।
उन्होंने उन सीएसएस का नाम नहीं बताया जिन्हें युक्तिसंगत बनाई जा सकती है। मुर्मू ने बताया कि सरकार को प्रस्तावित सॉवरेन बांड से ब्याज दर की लागत में बचत की उम्मीद है।
व्यय सचिव ने कहा, ब्याज पर खर्च छह लाख करोड़ रुपये है। हमें यह देखना है कि इसे कैसे युक्तिसंगत बनाया जा सकता है। सॉवरेन बांड से इसमें मदद मिल सकती है क्योंकि विदेशी पूंजी की लागत कम है और भारत में मुद्रा का वास्तविक मूल्य काफी अधिक है। लेकिन इस साल बजट में सॉवरेन बांड की रकम का लेखा-जोखा नहीं किया गया है। यह एक एक बोनस होगा।
बजट में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा करते हुए कहा कि सरकार विदेशी मुद्रा में सॉवरेन बांड के जरिए उधारी के हिस्से को पूरा करने की कोशिश करेगी।
व्यय विभाग की माने तो कुछ मदों के सिवा व्यय में कम से कम अक्टूबर में आने वाले संशोधित अनुमान तक कोई बड़ी वृद्धि नहीं होने वाली है।
मुर्मू ने कहा, पूंजीगत और राजस्व दोनों पक्षों के सभी बड़े खर्चो को ध्यान में रखते हुए पर्याप्त आवंटन प्रदान किया गया है। पीएम-किसान (योजना) के लिए हमने पहले ही 75,000 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की है और अक्टूबर-नवंबर में आरई (संशोधित अनुमान) चरण में फिर मूल्यांकन करेंगे।
उन्होंने कहा, 87,000 करोड़ रुपये का अनुमान है लेकिन लेकिन उसके लिए हमारे आरई चरण में पर्याप्त प्रावधान है। हमें कोई दबाव नहीं लग रहा है। हम पीएम-किसान (आवंटन) में जरूरत पड़ने पर वृद्धि करेंगे। यह बड़ी रकम नहीं है और ईपीएफओ स्किम में नियोक्ता का योगदान 12 फीसदी के साथ विस्तार के कारण श्रम और रोजगार में कुछ खर्च हो सकता है। इस पर सालाना 10,000-12,000 करोड़ रुपये खर्च होगा।
उन्होंने कहा, अभी 5,000 करोड़ रुपये दिया जा चुका है और आरई चरण में हम अधिक आवश्यकताओं की समीक्षा करेंगे। हम जलापूर्ति योजना पर कुछ (खर्च) बढ़ाएंगे। व्यय सचिव ने राजस्व व्यय में किसी प्रकार की कमी की बात से इनकार किया।
उन्होंने कहा, मौजूदा स्तर पर राजस्व व्यय में किसी प्रकार की कमी संभव नहीं है क्योंकि सारा कुछ प्रतिबद्ध दायित्व है। राजस्व व्यय में रक्षा, ब्याज अदायगी, पेंशन, अनुदान शामिल हैं। इसमें कटौती की कोई संभावना नहीं है। केंद्रीय योजनाएं और अन्य ऐसी योजनाएं भी राजस्व खर्च के तहत आती हैं इसलिए उनमें कोई कटौती नहीं हो सकती है क्योंकि ये कल्याणकारी योजनाएं हैं। वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में कुल व्यय 27.84 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।