अयोध्या मामले में 18वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि बाबरी मस्जिद में भगवान की मूर्ति स्थापित करना “छल से किया हुआ हमला है.” राजीव धवन ने कहा कि हिन्दू महासभा ने कहा कि वो सरकार के पास इस मसले को लेकर जाएगी, इसका मतलब है कि कोर्ट का ये अधिकार क्षेत्र नहीं है, इस तरह के शो पर रोक लगनी चाहिये “नो मोर रथयात्रा”. राजीव धवन ने कहा कि हिन्दू पक्ष की दलील है कि मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन के कब्ज़े के अधिकार नहीं हैं, न ही मुस्लिम पक्ष वहां नमाज अदा करते हैं. उसके पीछे वजह ये है कि 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने गलत तरीके से अवैध कब्जा किया. हमें नमाज पढ़ने नहीं दी गई. हिंदुओं ने मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से रोक दिया था।
जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या जब किसी मुस्लिम ने इस बात की शिकायत की कि उसे नमाज नहीं पढ़ने दी जा रही है तो उस पर कोई कार्रवाई हुई थी? इस पर राजीव धवन ने कहा मस्जिद में मूर्ति का होना कोई चमत्कार नहीं बल्कि सोचा समझा “हमला था.” उन्होंने कहा, ‘मेहराब के अंदर “अल्लाह” शब्द के शिलालेख हैं।
धवन ने पुरानी तस्वीरें कोर्ट में पेश कर दावा किया कि विवादित इमारत में मध्य वाले मेहराब के ऊपर अरबी लिपि में बाबर और अल्लाह उत्कीर्ण था. इसके अलावा कलमा भी लिखा था. उत्तरी मेहराब में भी कैलीग्राफी यानी कलात्मक लिखाई में तीन बार अल्लाह लिखा था. पास में ही फिर राम राम भी लिख दिया गया।
जस्टिस भूषण और जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि क्या किसी खंभे की तस्वीर भी आप पेश करेंगे? धवन ने इस पर कोई साफ साफ जवाब नहीं दिया लेकिन कहा कि दशकों तक वहां ताला पड़ा रहा. हर शुक्रवार को ताला खुलता रहा और हम नमाज़ पढ़ते रहे, फिर भी ये कह रहे हैं कि वो मस्जिद नहीं थी।
1947 में दिल्ली में तोड़ी गई 30 मस्जिदों को PM नेहरू ने बनाने का आदेश दिया. उधर एक फैज़ाबाद के DM के के नायर थे, जो कह रहे थे कि फैज़ाबाद में मंदिर था, जिसे तोड़ा गया. बाद में नायर की फोटो इमारत में लगाई गई. साफ है कि वो हिंदुओं के पक्ष में भेदभाव कर रहे थे।
हम कह सकते हैं कि दोनों ही पक्ष वहां उपासना करते रहे. लेकिन ये कैसे कह सकते हैं कि वहां मस्जिद नहीं थी. धवन ने एक तस्वीरनुमा नक्शा दिखाकर कहा कि 1480 गज का भूरे रंग का हिस्सा देवता और निर्मोही अखाड़े को दिया है. 740 वर्गगज का हिस्सा मुस्लिम पक्षकारों को दिया गया।
धवन ने कहा कि हिंदुओ का दावा है कि बीच वाले गुम्बद के नीचे ही रामजी का जन्म हुआ था. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि आप कैसे कह सकते हैं कि राम वहीं पैदा हुए थे. इतना बड़ा स्ट्रक्चर है, आप का दावा ठोस तथ्यों पर आधारित नहीं है. अगर थोड़ी देर को मान भी लें कि जन्म वहां हुआ तो परिक्रमा के दावे करने का क्या मतलब है?
23 अगस्त 1989 को सुन्नी वक्फ बोर्ड इस मुकदमे में पार्टी बना. जन्मस्थान को रामजन्म भूमि कहते हुए हिंदुओ ने दावा किया कि वो हमेशा से उनके कब्जे में रहा. अब जन्मस्थान और जन्मभूमि के अर्थ में काफी अंतर और कन्फ्यूजन भी है।
मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा कि 22-23 दिसम्बर 1949 की रात से पहले तो रामलला राम चबूतरे पर ही थे. चबूतरा जन्मस्थान के बाहरी अहाते में स्थित था. यह जगह का बदलाव भी स्वयंभू की दलील के उलट है. बाहरी अहाते में राम चबूतरा, सीता रसोई और भंडार थे. जिन पर निर्मोही अखाड़े का कब्ज़ा था. अंदर रामलला के गर्भगृह पर हिन्दू-मुस्लिम दोनों का. लेकिन 22-23 दिसम्बर की रात निर्मोही अखाड़े के साधुओं ने जबरन घुसकर मस्जिद की इमारत में रामलला की मूर्ति रख दी. इसकी एफआईआर भी है. घटना के बाद अखाड़े वालों ने वहां गैर हिंदुओं के वहां प्रवेश पर पाबंदी लगा दी।
धवन ने कहा कि रामलला को नाबालिग बताते हुए उनके अंतरंग सखा अचानक कब्जे की आस में अदालत पहुंच गए. अब कानून की निगाह में स्थापित विधि के मुताबिक रामलला की मूर्ति को कानूनी व्यक्ति की मान्यता तो हो सकती है पर वो मुकदमा नहीं कर सकते. निर्मोही अखाड़ा की भी इस दलील से हम पूरी तरह सहमत हैं. सुनवाई गुरुवार को जारी रहेगी।