लोकराज डेस्क
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन के बीच सीएए या एनपीआर जैसे नियमों एवं कानूनों के विरोध में हिंसा, तोड़फोड़ का रास्ता छोड़कर विचार-विमर्श का विकल्प अपनाने की सलाह दी है। नायडू ने कहा कि प्रदर्शनों में हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए बल्कि ऐसे मुद्दों पर उच्चस्तरीय रचनात्मक विमर्श की जरूरत है। इतना ही नहीं, उपराष्ट्रपति ने केंद्र सरकार को भी विरोधियों की आशंकाओं को दूर करने की नसीहत दी।
उन्होंने कहा, ‘सीएए हो या एनपीआर, देश के लोगों को संवैधानिक सदनों विधानमंडलों एवं संसद, बैठकों और मीडिया में इस बात पर प्रबुद्ध, सार्थक और रचनात्मक बहस करनी चाहिए कि यह कब आया, क्यों आया और इसका क्या असर हो रहा है, क्या इसमें सुधार की जरूरत है, अगर है तो क्या सुझाव हैं। अगर हम इसपर चर्चा करेंगे तो हमारा सिस्टम मजबूत होगा और लोगों की समझ भी बढ़ेगी।’ नायडू ने संयुक्त आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री एम. चन्ना रेड्डी की जयंती पर आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए यह विचार रखा।
उन्होंने आगे कहा, ‘असहमति रखने की आजादी देना लोकतंत्र का एक मौलिक सिद्धांत है। हम चाहे इसे पसंद करें या नापसंद, किसी भी मुद्दे के दूसरे पहलू को भी जरूर सुनना चाहिए और उसके मुताबिक उचित कदम भी उठाना चाहिए।’ माना जा रहा है कि उपराष्ट्रपति की यह नसीहत केंद्र सरकार के लिए है। हालांकि, उन्होंने सीएए और एनपीआर के आलोचकों और प्रदर्शनों में हिंसा फैलाने वालों को भी स्पष्ट संदेश दिया। नायडू ने कहा, ‘प्रदर्शनों के दौरान हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।’ उन्होंने रचनात्मक, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध अथवा असहमति प्रकट करने की सलाह देते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने हिंसा के किसी भी स्वरूप को नकारा, यहां तक कि अत्यंत चुनौतीपूर्ण वक्त में भी।