प्रदीप शर्मा
दिल्ली हाई कोर्ट ने भड़काऊ या नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर जानकारी देने के लिए गुरुवार को केंद्र सरकार को एक महीने समय दिया है. आरोपों में कहा जा रहा है कि इन्हीं भाषणों की वजह से दिल्ली में हिंसा भड़की है. हिंसा में कम से कम 35 लोगों की मौत होने और 200 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है. एक दिन पहले, न्यायमूर्ति एस मुरलीधर की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने दिल्ली पुलिस से कहा था कि हेट स्पीच के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में देरी नहीं होनी चाहिए. पीठ ने चारों बीजेपी नेताओं कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, अभय वर्मा और प्रवेश वर्मा के भाषण के वीडियो भी कोर्ट में चलवाए थे. कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर उसे फटकार लगाते हुए कहा था कि हम 1984 जैसे हालात फिर से बनने की अनुमति नहीं देंगे।
आज सुनवाई के दौरान, दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में एफआईआर दर्ज करने के लिए और समय मांगते हुए कहा कि याचिकाकर्ता “सिर्फ कुछ चुनिंदा भाषणों को नहीं चुन सकता है.” उन्होंने कोर्ट को बताया, “याचिकाकर्ता ने सिर्फ तीन चुनिंदा वीडियो का हवाला दिया है. मैं ध्यान दिलाना चाहता हूं कि याचिकाकर्ता याचिका में भाषणों का चयन नहीं कर सकता है. हमें इन भाषणों के अलावा भी कई और भाषण मिले हैं. भाषणों के मामले में हम सिलेक्टिव नहीं हो सकते हैं.”
तुषार मेहता ने कहा, “मौजूदा परिस्थितियों में, अभी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है. सही वक्ता पर पुलिस कार्रवाई करेगी. अभी ये समय इस तरह की कार्रवाई के लिए नहीं है.” याचिकाकर्ता हर्ष मंदर ने अपनी याचिका में कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने वाले बीजेपी नेताओं की गिरफ्तारी की मांग की थी. उनके वकील ने आज कोर्ट से बिना किसी देरी के इन लोगों की गिरफ्तार सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।
हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायाधीश सी हरिशंकर की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद केंद्र को भड़काऊ भाषणों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर जानकारी देने के लिए एक महीने का समय दिया गया है. मामले की अगली सुनवाई 13 अप्रैल होगी. दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली हिंसा मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय को पक्ष बनाया है।
और उधर दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर के तबादले पर केंद्र सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है. बुधवार को हुई हिंसा के मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एस मुरलीधर ने बीजेपी नेताओं की भड़काऊ बयानबाजी पर कार्रवाई न करने पर पुलिस को फटकार लगाई थी. जारी हुए नोटिफिकेशन के मुताबिक उनका दिल्ली से बाहर पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट तबादला कर दिया गया. हालांकि कॉलेजियम ने दो हफ़्ते पहले ही 12 फ़रवरी को उनके तबादले की सिफ़ारिश की थी. लेकिन सरकार ने कल जब इस पर मुहर लगाई तो टाइमिंग पर सवाल उठने लगे. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि क्या न्याय करने वालों को भी बख्शा नहीं जाएगा?
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, ‘पूरा देश अचंभित है, लेकिन मोदी शाह सरकार की दुर्भावना, कुत्सित सोच व निरंकुशता किसी से छिपी नहीं, जिसके चलते वो उन लोगों को बचाने का हर संभव प्रयास करेंगे, जिन्होंने भड़काऊ भाषण दे नफरत के बीज बोए और हिंसा फैलाई’. सुरजेवाला ने कांग्रेस की ओर से पीएम मोदी और अमित शाह से तीन सवाल भी पूछे हैं।
- क्या आपको यह डर था कि यदि आपकी पार्टी के नेताओं की स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच की जाएगी, तो दिल्ली की हिंसा, आतंक व अफरा-तफरी में आपकी खुद की मिलीभगत का पर्दाफाश हो जाएगा?
- निष्पक्ष व प्रभावशाली न्याय सुनिश्चित किए जाने से रोकने के लिए आप कितने जजों का ट्रांसफर करेंगे?
- क्या आपके पास अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा दिए गए विषैले बयानों को उचित ठहराने का कोई रास्ता नहीं था, इसलिए आपने उस जज का ही ट्रांसफर कर दिया, जिसने पुलिस को आपकी पार्टी के नेताओं की जांच करने का आदेश दिया था?