इंद्र वशिष्ठ
उत्तर प्रदेश पुलिस ने आठ पुलिस वालों की हत्या का प्रतिशोध खुद ले कर कानून और न्याय व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दी। यह एनकाउंटर न्याय व्यवस्था पर तमाचा है। पुलिस की इस करतूत से उन लोगों का न्याय व्यवस्था पर से भरोसा ख़त्म हो जाएगा। जो इंसाफ़ के लिए न्याय व्यवस्था/ अदालत पर भरोसा करते है।
पुलिस की कहानी ही चीख चीख कर एनकाउंटर की असलियत की पोल खोल रही है। पुलिस और लोगों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि अपराधी अदालत से छूट जाते हैं इसलिए पुलिस ने अपराधी को एनकाउंटर में मार कर सही करती है। लोग इस बात को जायज़ ठहरा रहे हैं तो फिर आम आदमी का भी प्रतिशोध के लिए हत्या करना उचित होना चाहिए। बदला लेने वाले के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की जरूरत ही नहीं और न ही अदालतों की जरूरत है। लोकतंत्र और सभ्य समाज में कानून/ संविधान का राज कायम रहना चाहिए। अपराधी को न्यायिक प्रक्रिया के द्वारा ही सज़ा दिए जाने की व्यवस्था है। कानून के रखवाले ही कानून हाथ में लेकर ख़ुद सज़ा देंगे तो निरंकुश पुलिस राज़ यानी जंगल राज को बढ़ावा मिलेगा।
देश भर में इस तरह के एनकाउंटर पहले भी होते रहे हैं। इस एनकाउंटर की ख़ास बात बस यह है कि पुलिसकर्मियों की हत्या का प्रतिशोध के लिए यह एनकाउंटर किया गया। वरना बारी से पहले तरक्की, वीरता पदक पाने, खुद को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दिखाने के लिए भी कथित एनकाउंटर किए जाते रहे हैं।
यह भी सच्चाई है कि ऐसे ज्यादातर कथित “बहादुर” एनकाउंटर स्पेशलिस्ट भ्रष्टाचार और अन्य विवादों में शामिल पाए जाते रहे हैं। अनेक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट को तो वर्दी वाला गुंडा ही नहीं, सुपारी किलर यानी भाड़े का हत्यारा तक कहा जाता था। कई कथित एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पर तो अपराधियों को संरक्षण देने और उसके दुश्मन गिरोह के अपराधियों का एनकाउंटर करने के आरोप भी लगाए जाते थे।
विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर एक बात बड़ी जोर शोर से उठाई जा रही है। कहा जा रहा है कि विकास दुबे को पालने वाले नेताओं और पुलिस अफसरों को बचाने के लिए एनकाउंटर किया गया। अगर विकास दुबे को मारा नहीं जाता तो वह अपने आकाओं के राज़ खोल देता। सत्ताधारी नेताओं को बचाने के लिए एनकाउंटर किया गया है। विकास दुबे को एनकाउंटर में मारने का सिर्फ एकमात्र और ठोस कारण पुलिस वालों की हत्या का बदला लेना है। किसी नेता या पुलिस अफसर को बचाने के लिए विकास दुबे का एनकाउंटर करने की बात में दम नहीं लगता है।
पुलिस की काबिलियत पर सवाल-
पुलिस की पेशेवर काबिलियत का पता तब चलता जब वह न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से विकास दुबे को दंडित करवाती।
सड़ गया पूरा सिस्टम-
इसके लिए सड़ चुकी व्यवस्था यानी सिस्टम जिम्मेदार है।
जिंदा रहता तो भी नही बोलता –
सबसे पहली बात विकास दुबे को जिंदा रखा जाता तो वह भला अपने आकाओं और गद्दार पुलिस अफसरों के खिलाफ बयान क्यों देता ? विकास तो उल्टा जान बख्शने के लिए अपने आका नेताओं और भ्रष्ट पुलिस वालों का अहसानमंद रहता कि पुलिस वालों की हत्या के बावजूद उन्होंने उसका एनकाउंटर नहीं किया। जो भ्रष्ट पुलिसवाले और नेता उसे बचाते रहे वहीं हमेशा कि तरह इस मामले में भी उसके केस को कमजोर बना कर अदालत में भी उसे बचाने में मदद करते। तो भला ऐसे में क्या वह अपने आकाओं के खिलाफ बयान दे सकता था ? कभी नहीं।
एक मिनट के लिए मान भी लिया जाए कि विकास अपने आकाओं और पुलिस वालों के खिलाफ बयान देने या उनकी पोल खोलने की मूर्खता करता। तो वह यह सब किसके सामने करता। जाहिर सी बात है कि वह सबसे पहले पूछताछ के दौरान पुलिस के सामने ही खुलासा करता। अदालत में बोलने का मौका तो उसे बाद में तभी मिलता जब पुलिस वहां पेश करती। पुलिस सरकार यानी राजनेताओं के मातहत होती है। इतने सालों में जिस भ्रष्ट पुलिस और भ्रष्ट नेताओं ने विकास दुबे को इतना बड़ा अपराधी बनाया। वह क्या अपने पालतू विकास के बयान या सूचनाओं के आधार पर भ्रष्ट नेताओं और पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करते ? कभी नहीं।
जो पुलिस खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ा कर एनकाउंटर में विकास को मार सकती है उसे विकास दुबे को जिंदा रखने में भी कोई खतरा नहीं था। विकास दुबे अगर अपने आकाओं के खिलाफ बयान देने का जिक्र भी करता तो उसे थाने में हिरासत में तब भी आसानी से मारा जा सकता था।
दूसरा विकास दुबे भला ऐसे क्या राज़ जानता था जो उत्तर प्रदेश पुलिस और सत्ता धारी नेता पहले से नहीं जानते है। बेशक पुलिस में भ्रष्टाचार व्याप्त है लेकिन पुलिस में ही ऐसी व्यवस्था/ तंत्र मौजूद है कि अपराधी और नेताओं के कारनामों की पूरी जानकारी उसके पास होती हैं। यह बात दूसरी है कि इन जानकारियों पर बड़े अपराधी और नेताओं के खिलाफ कार्रवाई सत्ताधारी राजनेताओं के इशारे पर ही की जाती है।
नेता, पुलिस, माफिया गठजोड़ जगजाहिर है –
विकास दुबे की आज़ के समय में सत्ताधारी दल के किन किन नेताओं और पुलिस वालों से सांठ-गांठ थी। इसके पहले इतने सालों में किन किन राजनीतिक दलों के नेताओं का उसको खुलेआम संरक्षण प्राप्त था। यह बात क्या किसी से छिपी हुई थी। उत्तर प्रदेश पुलिस और सभी दलों के नेताओं को और उसके शिकार / पीड़ित/ सताए गए लोगों तक को क्या यह सच मालूम नहीं है। इसमें राज़ जैसा क्या है जिसके खुल जाने के डर से उसका एनकाउंटर किया गया।
सच्चाई यह है कि विकास दुबे कोई वर्तमान सरकार के समय ही तो पैदा नहीं हुआ था वह इतने सालों से अनेकों दलों के नेताओं और पुलिस वालों के संरक्षण के कारण इतना बड़ा अपराधी बना था।
मौत का फरमान खुद जारी किया-
एनकाउंटर में मारे जाने का सिर्फ एक ही कारण है विकास दुबे ने पुलिस वालों को मार कर अपनी “मौत के फरमान” यानी डेथ वारंट पर खुद हस्ताक्षर किए थे।
विकास दुबे ही नहीं अनेक जाहिल अपराधी गलतफहमी के शिकार हो जाते हैं। वह पुलिस और नेताओं से सांठ-गांठ के कारण खुद को उनसे भी ऊपर समझने लगते हैं। ऐसे अपराधी भूल जाते हैं कि सबसे बड़े गुंडे तो उनके आका खादी और खाकी वाले हैं। अपराधी की औकात उनके सामने सिर्फ एक पालतू कुत्ते से ज्यादा कुछ नहीं है जब कुत्ता पागल हो कर अपने मालिकों को ही काटता है तो ऐसे एनकाउंटर में कुत्ते की मौत ही मारा जाता है। सिर्फ वही अपराधी बचता है जो मालिक यानी राजनेता के सामने पूंछ हिला कर विधायक या सांसद का चोला पहन लेता।
मुख़्तार अंसारी हो या बृजेश सिंह यह लोगों के लिए बेशक खतरनाक दुर्दांत होंगे लेकिन सरकार और पुलिस के सामने इनकी औकात कुत्ते से ज्यादा नहीं है। नेताओं और पुलिस से सांठ-गांठ के दम पर ही यह भौंकते हैं और खुद को शेर दिखाने की कोशिश करते हैं। ईमानदार, निडर पुलिस अफसरों के सामने तो यह गीदड़ बन कर अपनी औकात में रहते हैं।
दाऊद पाकिस्तान का कुत्ता-
इन गुंडों की तो बिसात ही क्या है दाऊद इब्राहिम जो खुद को चाहे दुनिया का सबसे बड़ा माफिया सरगना/ आतंकवादी समझता हो लेकिन उसकी औकात भी पाकिस्तान में पालतू कुत्ते से ज्यादा कुछ नहीं है। दाऊद इब्राहिम ने पाकिस्तान के इशारे पर काम करने से इंकार करने की अगर कभी सोच भी ली तो उस दिन खुद पाकिस्तान ही उसे मार देगा। दाऊद को तो पाकिस्तान ने एक तरह से पिंजरे में ही कैद किया हुआ है। पाकिस्तान ने उसे सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने के लिए ही पाला हुआ है। जिस दिन वह पाकिस्तान के किसी काम का नहीं रहेगा उसी दिन वह उसे उसकी औकात बता देगा।
विकास दुबे की किन नेताओं और पुलिस वालों से सांठ-गांठ थी। उसने कितनी संपत्ति/ ज़ायदाद कहां कहां पर बनाई हुई है।वह सब तो मौजूद है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नीयत अगर वाकई पुलिस, नेता और माफिया के गठजोड़ को नेस्तनाबूद करने की है तो ऐसे नेताओं और गद्दार पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत दिखाए। पुलिस में ईमानदार पुलिस अफसरों की भी कमी नहीं है। ऐसे अफसर ही पुलिस, नेता और अपराधियों के गठजोड़ को खत्म कर सकते हैं। विकास उसके परिवार और उसके साथियों के मोबाइल फोन रिकॉर्ड से ही आसानी से उसके सभी संपर्कों का भी पता लग जाएगा।
विपक्ष के नेता और लोग कह रहे हैं कि विकास जिंदा रहता तो नेताओं और भ्रष्ट पुलिस का पर्दाफाश हो जाता है। पहली बात विकास जिंदा रहते हुए पहले भी तो कई बार गिरफ्तार हुआ था तब पुलिस ने उससे कितने नेताओं के राज़ उगलवा लिए थे या उसकी मदद करने वाले कितने नेताओं और पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई कर ली थी।
सच्चाई यह है कि अभी भी उत्तर प्रदेश में जो माफिया मौजूद हैं उनसे सांठ-गांठ करने वाले नेताओं और पुलिस वालों के खिलाफ कौन सा कार्रवाई की जा रही है।
विकास जिंदा रहता तो सत्ताधारी नेताओं और पुलिस वालों का पर्दाफाश हो जाता यह कहने वाले विपक्ष के नेताओं में दम है तो जो बड़े अपराधी माफिया अभी जिंदा है उनको संरक्षण देने वाले नेताओं और पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की आवाज तो उठा कर दिखाओ। सच्चाई यह है कि ये दोगले नेता जब खुद सत्ता में होते हैं तो माफिया को संरक्षण देने और विधायक बनाने से भी नहीं चूकते हैं। सभी दल माफियाओं को संरक्षण देने और विधायक/ सांसद बनाने में बराबर के कसूरवार हैं। राजनेताओं के संरक्षण और सांठ-गांठ के कारण ही अपराधियों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
न्याय व्यवस्था पर तमाचा –
इसके पहले हैदराबाद पुलिस ने डाक्टर के सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में शामिल चार लोगों को एनकाउंटर में मार दिया था। उस समय भी लोगों ने खुशी जताई और पुलिस वालों पर फूल भी बरसाए थे। लोगों की इस तरह की प्रतिक्रिया न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ जाने की ओर इशारा कर रही है। जो लोकतंत्र और सभ्य समाज के लिए गंभीर चिंता की बात है।