इंद्र वशिष्ठ
बटला हाउस एनकाउंटर दिल्ली में हुआ एक ऐसा एनकाउंटर था जिस पर तत्कालीन सत्ताधारी दल कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने फर्जी एनकाउंटर कह कर सवालिया निशान लगा दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने इस एनकाउंटर को असली/ सही माना।
एनकाउंटर पर फिल्म-
बटला हाउस एनकाउंटर पर एक फिल्म भी बनी है लेकिन फिल्म में एनकाउंटर में शहीद हुए इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को श्रेय देने की बजाए सिर्फ़ एक एसीपी का ही महिमा मंडन किए जाने से पुलिस में रोष उत्पन्न हो गया था। मोहन चंद्र के परिवार ने भी फिल्म मेंं मोहन का किरदार सही तरह नहीं दिखाए जाने पर दुख / नाराजगी जताई थी।
स्पेशल सेल के मुखिया कर्नल सिंह का खुलासा-
बटला हाउस मेंं 19 सितंबर 2008 को हुए एनकाउंटर में किस पुलिस अफसर की क्या भूमिका रही। इसका खुलासा दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त कर्नल सिंह ने अपनी किताब “बटला हाउस- एन एनकाउंटर दैट शूक द नेशन ” में किया है। पुलिस बटला हाउस तक कैसे पहुंची, एनकाउंटर कैसे हुआ और उसके बाद हुए विवादों पर किताब में लिखा गया हैं। आतंकी गिरोह इंडियन मुजाहिद्दीन के गठन से लेकर उसकी अब तक की स्थिति के बारे में भी ब्यौरा दिया गया है। आतंकवाद से निपटने के लिए पुलिस के सामने कौन-कौन सी मुश्किलें पेश आती हैं इसके बारे में भी कर्नल सिंह ने अपने अनुभव साझा किए हैं।
बम धमाकों से दहली दिल्ली-
दिल्ली 13 सितंबर 2008 को करोलबाग, कनाट प्लेस, ग्रेटर कैलाश मेंं हुए सिलसिलेवार 5 बम धमाको से दहल गई। इन धमाकों में अनेक लोग मारे गए और लगभग सौ लोग घायल हो हुए थे। बम धमाकों में शामिल आतंकवादियों का पता लगाने की जिम्मेदारी स्पेशल सेल को दी गई।
6 दिनों में ही खोज निकाला आतंकवादियों को-
स्पेशल सेल के तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त कर्नल सिंह और उपायुक्त आलोक कुमार के नेतृत्व में स्पेशल सेल की टीम बम धमाके करने वाले आतंकवादियों का पता लगाने में जुट गई। जयपुर मेंं 13 मई को गुजरात और बंगलुरु में 26 जुलाई 2008 को बम धमाके किए गए थे।
मोबाइल फोन से मिला सुराग–
गुजरात पुलिस ने बम धमाकों की जांच के दौरान प्रतिबंधित संगठन सिमी के कुछ लोगों को इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकियों की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया। उन लोगों से पूछताछ में पुलिस को धमाकों में शामिल आतंकवादियों के चार मोबाइल फोन नंबर मिले। गुजरात पुलिस ने ये नंबर इंटेलिजेंस ब्यूरो(आईबी) और सभी राज्यों की पुलिस को भेज दिए।
नंबर सबको पता थे, लेकिन बाजी मोहन चंद्र ने मारी-
संयुक्त पुलिस आयुक्त कर्नल सिंह के मार्ग दर्शन/ देख रेख में इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा ने उन मोबाइल नंबरों के रिकार्ड खंगालने शुरू कर दिए। तफ्तीश के दौरान पाया गया कि ये मोबाइल नंबर गुजरात और जयपुर मेंं बम धमाकों के समय भी सक्रिय थे लेकिन बम धमाकों के बाद फोन बंद हो गए थे।
कार चोर से मिला सुराग-
18 सितंबर 2008 को आईबी ने सूचना दी कि गुजरात बम धमाकों में शामिल आतंकवादी राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली गए थे। असल में मुंबई पुलिस ने एक वाहन चोर को गिरफ्तार किया था। उस चोर ने गुजरात में बम धमाके में इस्तेमाल की गई कार आतंकियों को बेची थी। उस चोर ने ही पुलिस को बताया कि बम धमाके में शामिल आतंकी राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली गए हैं। स्पेशल सेल ने राजधानी एक्सप्रेस के यात्रियों के रिजर्वेशन रिकॉर्ड को खंगाला। जिसमें पाया कि आतंकियों ने फर्जी नाम पते से रिजर्वेशन कराया था।
लेकिन पुलिस ने पाया कि जिन चार मोबाइल फोन नंबर की वह निगरानी कर रही हैं उसमें से एक नंबर उस दौरान निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास ही सक्रिय था।
बटला हाउस पहुंचे –
इस मोबाइल नंबर के बटला हाउस इलाके में होने का पता चला। यह मोबाइल नंबर मोहम्मद आतिफ अमीन का था।
एनकाउंटर की स्पेशल टीम–
स्पेशल सेल ने बटला हाउस के उस मकान एल 18 का भी पता कर लिया जहां पर आतंकी छिपे हुए थे। इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा,राहुल कुमार सिंह, धर्मेंद्र, सब -इंस्पेक्टर रवींद्र त्यागी, दलीप कुमार हवलदार बलवंत ,उदयवीर और राजबीर समेत करीब 18 पुलिस वालों की एक टीम बनाई गई। इनमें से कुछ पुलिस वाले आतंकवादियों के ठिकाने के अंदर गए और शेष पुलिस वालों ने ठिकाने के बाहर मोर्चा संभाला था। 19 सितंबर 2008 को सुबह करीब 9.30 बजे यह टीम सेल के लोदी कालोनी दफ्तर से जामिया नगर के बटला हाउस के लिए रवाना हुई थी।
वोडाफोन प्रतिनिधि बन गया इंस्पेक्टर धर्मेंद्र –
बटला हाउस पहुंच कर आतंकियों की मौजूदगी का पता लगाने के लिए इंस्पेक्टर धर्मेंद्र वोडाफोन कंपनी का प्रतिनिधि बन कर मकान नंबर एल 18 में गया। धर्मेंद्र उस मकान के चौथे फ्लोर पर गया जहां पर आतंकियों के छिपे होने की सूचना पुलिस को थी। धर्मेंद्र ने देखा कि वहां आतंकी मौजूद है। यह देख धर्मेंद्र नीचे गया और इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को आतंकियों की मौजूदगी की सूचना दी। इसके बाद मोहन चंद्र शर्मा अपने साथियों को लेकर ऊपर गए। जिस फ्लैट में आतंकी थे वह एल टाइप था उसका एक दरवाजा सीढ़ियों के बिल्कुल सामने और एक दरवाजा बाएं ओर था।
इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा ने पेश की बहादुरी की मिसाल ।
इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा ने पहले सामने वाला दरवाजा खटखटाया वो बंद था इसके बाद शर्मा ने बाएं ओर के दरवाजे को धकेला तो वह खुल गया। जैसे ही शर्मा अंदर घुसे सामने वाले कमरे के दरवाजे के पीछे छिपे आतंकियों ने गोलियां चला दी। जिससे इंस्पेक्टर शर्मा और हवलदार बलवंत घायल हो गए। पुलिस ने जवाबी फायरिंग की जिसमें आतंकी आतिफ मारा गया। इसी दौरान एसीपी संजीव यादव भी सिपाही मान सिंह (अब इंस्पेक्टर) , सिपाही इंद्रजीत और राज पाल के साथ वहां पहुंच गए। इसके बाद आतंकी साजिद मारा गया। एक आतंकी मुहम्मद सैफ पकड़ा गया जबकि दो आतंकी भाग गए। इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की टीम ने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहनी हुई थी।
इंडियन मुजाहिदीन का उत्तर भारत का सरगना मारा गया-
मारे गए आतंकियों में बम धमाकों का जिम्मेदार इंडियन मुजाहिदीन का उत्तरी भारत का सरगना आतिफ अमीन उर्फ बशर और मुहम्मद साजिद उर्फ पंकज थे। भागने वाले आतंकी की पहचान शहजाद और जुनैद के रुप में हुई थी। शहजाद को जनवरी 2010 में यूपी पुलिस की एसटीएफ ने पकड़ा।
गंभीर रुप से घायल हुए इंस्पेक्टर शर्मा को तुरन्त पास के होली फैमिली अस्पताल में ले जाया गया हवलदार बलवंत के हाथ में गोली लगी थी उसे एम्स में ले जाया गया। इंस्पेक्टर शर्मा के इलाज के लिए पुलिस अफसरों ने एस्कार्ट अस्पताल से भी डाक्टर बुलाए लेकिन शर्मा को बचाया नहीं जा सका।
आतंकियों के ठिकाने पर धावा –
मोबाइल नंबर से बटला हाऊस के ठिकाने का पता चला तो वहां पर आतंकियों की मौजूदगी वैरीफाई की गई। पहले यह तय हुआ था कि जैसे ही इस मोबाइल नंबर को इस्तेमाल करने वाला आतंकवादी बटला हाउस इलाके से बाहर निकलेगा उसे उठा लेंगे। लेकिन वह आतंकवादी इलाके से बाहर ही नहीं निकला। आतंकवादी कहीं ओर बम धमाके न कर दें इसलिए उनको पकड़ने के लिए उनके ठिकाने पर ही धावा बोला गया।
मोबाइल नंबर से आतंकवादियों को खोजने में माहिर- इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को मोबाइल नंबरों के डाटा को एनालिसिस कर उसमें से आतंकवादी का नंबर पता लगाने में महारत हासिल थी।
अशोक चक्र-शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। एक अन्य मामले में इस साल मोहन चंद्र शर्मा को मरणोपरांत वीरता पदक से भी सम्मानित किया गया।
विवाद– एनकाउंटर को फर्जी बताया गया और कहा गया कि इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को उसके साथियों ने ही पीछे से गोली मारी हैं। कई कांग्रेस नेताओं ने भी इस एनकाउंटर को फर्जी कहा था। एनकाउंटर की रिटायर्ड जज से स्वतंत्र जांच कराने के लिए कोर्ट में याचिका भी दायर की गई। मानवाधिकार आयोग ने इस मामले की जांच की और एनकाउंटर को असली बताया। सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार किया।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तारीफ की- तत्कालीन उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना के आवास पर कर्नल सिंह ने तत्कालीन मंत्री कपिल सिब्बल को आतंकियों और एनकाउंटर के सबूतों/ तथ्यों के बारे मेंं जानकारी दी। कपिल सिब्बल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यह सारी जानकारी दी। कर्नल सिंह के मुताबिक़ दिल्ली पुलिस के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मनमोहन सिंह ने उनके कार्य की सराहना की।
बुलेट प्रूफ जैकेट- पुलिस टीम ने बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहनी ? ऐसा इसलिए किया गया था कि अगर आतंकी फ्लैट मेंं नहीं भी मिले तो पुलिस के वहां जाने की किसी को भनक न लग पाए।
आतकंवाद के खिलाफ एकजुटता जरूरी-
भारतीय पुलिस सेवा के 1984 बैच के अफसर कर्नल सिंह साल 2018 में प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उत्तर पश्चिम जिला पुलिस उपायुक्त ,अपराध शाखा में उपायुक्त के अलावा स्पेशल सेल और उत्तरी रेंज के संयुक्त पुलिस आयुक्त रहे कर्नल सिंह का कहना है कि आतंकवाद से निपटने के लिए राजनीतिक सहमति की कमी ने इससे निपटने के लिए कठोर नीतियों को बनाना मुश्किल बना दिया है।