लोकराज डेस्क
राफेल विवाद ने देश की राजनीति को हिला कर रख दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं. राहुल गांधी ने फ्रांस की विमान बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन पर भी आरोप लगाए हैं. इस बीच राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए दसॉल्ट एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने आरोपों को बकवास करार दिया है. समाचार एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में ट्रैपियर ने कहा कि राफेल डील में दसॉल्ट एविएशन और रिलायंस ज्वाइंट वेंचर के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट को लेकर मैंने झूठ नहीं बोला. इसके साथ ही ट्रैपियर ने साफ किया कि हमने रिलायंस को खुद चुना, इसके अलावा 30 साझेदार और हैं।
राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ”मैं झूठ नहीं बोलता. मैंने जो बात पहले कही और जो बयान दिया बिल्कुल सही हैं. मैं झूठ बोलने के लिए नहीं जाना जाता. मेरे पद पर आप झूठ नहीं बोल सकते। 2 नवंबर को राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया था कि दसॉल्ट एविएशन ने घाटे में चल रही अनिल अंबानी की कंपनी को जमीन खरीदने के लिए 284 करोड़ रुपये निवेश के तौर पर दिए. राहुल गांधी ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी के इसमें शामिल होने का आरोप लगाया था।
कांग्रेस ने एरिक ट्रैपियर के इंटरव्यू को ‘कहलवाया हुआ’ इंटरव्यू बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कहलवाए गए इंटरव्यू और गढ़े हुए झूठ राफेल घोटाले की सच्चाई को दबा नहीं सकते. कानून का पहला नियम है कि बराबरी के लाभार्थी और सह आरोपी के स्टेटमेंट का कोई महत्व नहीं. दूसरा नियम है कि बराबरी के लाभार्थी और आरोपी अपने खुद के केस में जज नहीं हो सकते. सच बाहर आने का रास्ता होता है।
एरिक ट्रैपियर ने कहा कि हमने पहले कांग्रेस पार्टी के साथ भी सौदा किया है. राहुल गांधी के आरोपों से हमें दुख पहुंचा है. ट्रैपियर ने कहा, ”कांग्रेस पार्टी के साथ काम करने का हमारा लंबा अनुभव है. हमारी पहली डील 1953 में प्रधानमंत्री नेहरू के साथ थी. इसके बाद भी हमने कई प्रधान मंत्रियों के साथ डील की। हम भारत के साथ काम कर रहे हैं, किसी पार्टी के साथ नहीं. हम भारतीय वायुसेना और भारत सरकार को सामरिक उत्पाद जैसे लड़ाकू विमान सप्लाई कर रहे हैं, यही सबसे महत्वपूर्ण है।
रिलायंस जिसके पास फाइटर जेट बनाने का कोई अनुभव नहीं है उसे ऑफसेट पार्टनर क्यों बनाया? इसके जवाब में एरिक ट्रैपियर ने सफाई देते हुए कहा कि पैसा सीधे रिलायंस में निवेश नहीं किया गया बल्कि ज्वाइंट वेंचर में किया गया जिसमें दसॉल्ट भी शामिल है। एरिक ट्रैपियर ने कहा, ”हम रिलायंस में पैसा नहीं लगा रहे, पैसा ज्वाइंट वेंचर में लगाया गया. हम लोगों को तकनीकि रूप से सक्षम करने का कोई पैसा नहीं लेते. जहां तक इस डील के औद्योगिक हिस्से की बात है यह दसॉल्ट के इंजीनियर और कर्मचारियों के नेतृत्व में होगा. हमारे साथ एक रिलायंस जैसी कंपनी भी है, जो अपने देश के विकास के लिए इस ज्वाइंट वेंचर में पैसे लगा रही है. रिलयांस को इससे जानकारी मिलेगी कि एयरक्राफ्ट कैसे बनाते हैं।
राफेल की कीमत को लेकर भी एरिक ट्रैुपियर ने सफाई दी कि विमान की कीमत नहीं बढ़ाई गई. एरिक ने कहा कि एनडीए ने विमान को लेकर जिस कीमत पर सौदा किया है वो पहले किए गए सौदे से 9% कम है. बता दें कि कांग्रेस आरोप लगा रही है कि सरकार एक राफेल विमान को करीब 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है, जबकि यूपीए सरकार जब 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए डील को 526 करोड़ रुपये प्रति विमान तय किया था।
एरिक ट्रैपियर ने यह भी साफ किया कि रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने से पहले दूसरी कंपनियों से भी बातचीत की गई थी. उन्होंने कहा, ”जाहिर तौर पर हम टाटा और दूसरी बड़ी कंपनियों के पास भी हम गए थे. 2011 में टाटा कंपनी दूसरी उड्डयन कंपनियों के साथ भी बातचीत कर रही थी. आखिर में हमने तय किया कि हम रिलायंस के साथ जाएंगे क्योंकि उनके पास बड़ी इंजनियरिंग सुविधाएं हैं।
एयर क्राफ्ट के बारे में बात करते हुए ट्रैपियर ने कहा कि अभी जो विमान दिए जा रहे हैं वे हथियारों के अलावा बाकी सभी सुविधाओं से लैस होंगे. उन्होंने कहा, ”हथियार दूसरे समझौते के तहत भेजे जाएंगे. हथियार के अलावा सभी सुवुधाओं से युक्त विमान दसॉल्ट सप्लाई करेगा।