प्रदीप शर्मा
पिछले काफी समय से राफेल सौदे को लेकर विपक्ष मोदी सरकार को आड़े हाथ लेता आ रहा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमूमन हर रैली और हर संबोधन में सरकार पर इस सौदे को लेकर हमला किया है। उनका कहना है कि अनिल अंबानी को जानबूझकर इस सौदे का ऑफसेट पार्टनर बनाया गया है जबकि पहला यह सौदा फ्रांस की दसॉल्ट का एचएएल के साथ होना था। इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं जिसे आज न्यायालय ने खारिच कर दिया और इस सौदे को हरी झंडी दे दी है।न्यायालय के फैसले ने जहां सरकार को बहुत बड़ी राहत दी है वहीं विपक्ष के लिए यह तगड़ा झटका है। अब विपक्ष इसकी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच करवाने की मांग कर रहा है।
शुक्रवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने देश में पिछले दिनों राजनीतिक तूफान की वजह बने राफेल डील पर अपना फैसला सुनाया। शीतकालीन सत्र में मोदी सरकार को राफेल डील पर घेरने का मन बनाए बैठी कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक झटके के रूप में सामने आया है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि उन्होंने यूपीए की तुलना में तीन गुना अधिक कीमत देकर राफेल विमान का सौदा किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत पर निर्णय लेना अदालत का काम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता है।
राफेल डील को लेकर कांग्रेस और विपक्ष का यह भी आरोप था कि यूपीए के दौरान 126 फाइटर जेट खरीदने का सौदा रहा था। कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि अब मोदी सरकार केवल 36 फाइटर जेट खरीद रही है। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सरकार को 126 या 36 विमान खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में माना है कि भारतीय वायुसेना में राफेल की तरह के चौथी और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को शामिल करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘लड़ाकू विमानों की जरूरत है और देश लड़ाकू विमानों के बगैर नहीं रह सकता है।’ सर्वोच्च अदालत ने इस बिंदु का भी उल्लेख किया कि सितंबर 2016 में जब राफेल सौदे को अंतिम रूप दिया गया था, उस वक्त किसी ने खरीदी पर सवाल नहीं उठाया था।
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि राफेल सौदे पर सवाल उस वक्त उठे जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने बयान दिया, यह न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई अवसर नहीं है।