प्रदीप शर्मा
मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक तलाक-ए-बिद्दत को रोकने के मकसद से लाया गया ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018’ लोकसभा में पास हो गया। हालांकि, इसके कुछ प्रावधानों का विरोध करते हुए कांग्रेस ने इसे संयुक्त प्रवर समिति में भेजने की मांग की तो सत्तारूढ़ भाजपा ने इसे मुस्लिम महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए उठाया गया ऐतिहासिक कदम करार दिया। संशोधनों पर वोटिंग से पहले कांग्रेस और एआईएडीएमके ने सदन से वॉकआउट किया। इसके बाद सदन में वोटिंग हुई।
विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस की सुष्मिता देव ने कहा कि उनकी पार्टी इस विधेयक के खिलाफ नहीं है, लेकिन सरकार के ‘मुंह में राम बगल में छूरी’ वाले रुख के विरोध में है क्योंकि सरकार की मंशा मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने और उनका सशक्तीकरण की नहीं, बल्कि मुस्लिम पुरुषों को दंडित करने की है।
उन्होंने तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में शामिल किए जाने का विरोध करते हुए कहा कि कांग्रेस ने 2017 के विधेयक को लेकर जो चिंताएं जताई थी उसका ध्यान नहीं रखा गया। सुष्मिता देव ने कहा कि एक वकील होने के बावजूद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तीन तलाक पर कानून बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट अल्पमत के फैसले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में रखा जाए। कांग्रेस नेता ने कहा कि 1986 में राजीव गांधी के समय शाह बानो प्रकरण के बाद बनाया गया कानून मुस्लिम महिलाओं के सशक्तीकरण का सबसे महत्वपूर्ण कानून था जिसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बार-बार किया।
वहीं, केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में बताया कि तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट के गैरकानूनी करार दिए जाने के बाद देशभर में 248 मामले सामने आए हैं। प्रसाद ने कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव के सवाल के जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, हालांकि मीडिया और अन्य रिपोर्ट में ऐसे मामलों की संख्या 477 बताई जा रही है। कानून मंत्री ने यह भी बताया कि केंद्रीय स्तर पर ऐसे मामलों का राज्यवार ब्योरा नहीं रखा जाता, लेकिन प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में तीन तलाक के सबसे ज्यादा मामले आए हैं।
कानून मंत्री ने कहा कि यह विधेयक महिलाओं को उनके अधिकार और न्याय दिलाने के लिए है, न कि किसी धर्म, समुदाय या विचार विशेष के खिलाफ। दुनिया में 20 इस्लामिक देशों ने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया है तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते।सरकार ने तीन तलाक मामल में संशोधित विधेयक पेश किया है। इसमें पीड़िता, उससे खून का रिश्ता रखने वालों और विवाह से बने उसके रिश्तेदारों द्वारा ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करवा सकने का प्रावधान है।तीन तलाक गैर जमानती अपराध तो है, लेकिन मजिस्ट्रेट पीड़िता का पक्ष सुनकर सुलह करा सकेंगे, जमानत भी दे सकेंगे। पीड़ित महिला मुआवजे की हकदार होगी। पति को हो सकेगी तीन साल जेल की सजा।
तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने के लिए सरकार पहले भी एक विधायक लाई थी लेकिन यह राज्यसभा में सत्ता पक्ष के पास पर्याप्त संख्या बल के अभाव में अटक गया था। विपक्ष ने कुछ प्रावधानों को लेकर आपत्ति जताई थी। इसके पारित होने में देरी होते देख इस साल सितंबर में विपक्ष के कुछ प्रस्तावों को शामिल करते हुए अध्यादेश लागू किया गया। पुराना विधेयक अभी भी राज्यसभा में लंबित है। संशोधित विधेयक अध्यादेश और पुराने विधेयक की जगह ले लेगा। लोकसभा से तीन तलाक को अपराध ठहराने वाले बिल को मंजूरी दिलाने के बाद सरकार के लिए राज्यसभा से इसे पारित कराना चुनौती होगी। उच्च सदन में एनडीए का बहुमत नहीं है।