नई दिल्ली : गंभीर धोखाधड़ी अन्वेषण कार्यालय (एसएफआईओ) ने आईएलएंडएफएस की रचना, शिल्प व संचालन के विषाक्त नतीजे में लेखापरीक्षकों के काम-काज के तरीकों पर नाराजगी जाहिर की है।
लेखापरीक्षकों की दलीलों को खारिज करते हुए उन पर सांठगांठ करने और जानबूझकर कदाचार करने और उस पर परदा डालने का आरोप लगाया गया है।
यह कठोर व गंभीर अभियोग है, जिससे एक बार फिर इस मसले पर आईएएनएस की खबरों की पुष्टि होती है। उससे भी कहीं ज्यादा यह लेखापरीक्षकों पर उनके अपराध में शामिल होने और कॉरपोरेट के साथ पक्षपात का संबंध रखने और खुद को चंद पैसों पर बेचने का सीधा आरोप है।
धोखाधड़ी करने और उन पर रोक लगाने की मांग को लेकर रिपोर्ट में शामिल लेखापरीक्षकों के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकारण(एनसीएलटी) के समक्ष क्षेत्रीय निदेशक (पश्चिमी क्षेत्र) को अब कंपनी कानून 2013 की धारण 140 (5) के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए अधिकृत किया गया है।
इन लेखापरीक्षकों में कल्पेश मेहता, संपत गणेश, श्रेण्या वैद, राकेश जैन, निशित दीपक उदाणी, अनुज रावत, पायल मुकेशभाई राठौड़, ए.पी.शाह, एपी शाह एंड एसोसिएट्स एलएलपी शामिल हैं।
क्षेत्रीय निदेशक को उपर्युक्त लेखापरीक्षकों के नाम कंपनी कानून 2013 की धारा 214 और 242 के तहत एनसीएलटी के पास कार्यवाही में भी शामिल करने और सभी लोगों की चल और अचल संपत्तियों की अंतरिम जब्ती की मांग करने का निर्देश दिया गया है। इनमें लॉकर, बैंक खाते और संयुक्त रूप से धारण की जाने वाली संपत्तियां भी शामिल हैं।
इस तरह का सख्त रुख अख्तियार करने का मुख्य कारण है कि लेखापरीक्षक इस साजिश में आकंठ डूबे हुए हैं।
जांच की रूपरेखा से खुलासा हुआ है कि लेखापरीक्षक और आईएलएंडएफएस फाइनेंशियल सर्विसेस लिमिटेड (आईएफआईएन) में शामिल उनकी टीम ने कर्मठता के साथ अपने कर्तव्य को पूरा नहीं किया। मूलधन और ब्याज के भुगतान में चूककर्ता उधारकर्ताओं के फंड की जानकारी होने के बावजूद लेखापरीक्षक वित्त वर्ष 2013-14 से लेकर 2017-18 तक की लेखापरीक्षा रिपोर्ट में इसे बताने में विफल रहे।
यह कंपनी कानून की धारा 143 (1) (ए) का उल्लंघन है।
महज लेखाबही में प्रविष्टि द्वारा हस्तांतरित ऋणों को पुराना कर्ज मानते हुए उसके खाते को बंद कर दिया गया और नए कर्ज में प्रोविजनिंग की आवश्यकता नहीं समझी गई। प्रोविजनिंग व एनपीए की पहचान को स्थगित करने की कोशिश की गई।
लेखापरीक्षकों को इसकी जानकारी होने के बावजूद लेखापरीक्षा रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं किया गया, जोकि कंपनी कानून की धारा 143 (1) (बी) का उल्लंघन है।