न्यूयॉर्क : अमेरिका ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भारतीय पायलट को छोड़ने की घोषणा से पहले नई दिल्ली-इस्लामाबाद के बीच तनाव कम करने के लिए कूटनीतिक प्रयास शुरू किए थे और इस बात के संकेत हैं कि वाशिंगटन को इस बारे में पूर्व सूचना थी।
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने गुरुवार को खान के इस संबंध में घोषणा से पहले कहा था कि बुधवार रात दोनों पड़ोसियों के नेताओं के साथ टेलीफोन पर अच्छा समय बिताया।
पोम्पियो ने हालांकि यह नहीं बताया कि उन्होंने बुधवार को किससे बातचीत की, लेकिन इससे पहले मंगलवार को उन्होंने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों सुषमा स्वराज और शाह महमूद कुरैशी से बातचीत की थी।
इससे संकेत मिलते हैं कि खान के भारतीय वायुसेना के पायलट को छोड़े जाने के बारे में घोषणा से पहले अमेरिका को इसकी जानकारी थी।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को हनोई में भारतीय समयनुसार अपराह्न् 12.30 बजे एक प्रेस वार्ता में कहा था, हमारे पास पाकिस्तान और भारत से यथोचित आकर्षक समाचार हैं..उम्मीद है कि दोनों देशों के बीच तनाव समाप्त होने वाला है।
कुछ घंटों बाद इस्लामाबाद में अपराह्न् 3.30 बजे भारत-पाकिस्तान की स्थिति पर पाकिस्तान नेशनल एसेंबली की बैठक हुई, जिसमें खान ने घोषणा की कि विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान अपने घर वापस जाएंगे।
इसी तरह ट्रंप ने हनोई में अपने बयान में भारत-पाकिस्तान मुद्दे को पहले रखा। उन्होंने कहा था कि अमेरिका दोनों को रोकने की कोशिश में जुटा है और दोनों की मदद करने की कोशिश कर रहा है।
बाद में मनीला में, पोम्पियो ने अपनी प्रेस वार्ता में नई दिल्ली-इस्लामाबाद कूटनीति को शीर्ष वरीयता दी।
उन्होंने मीडिया से कहा कि उनकी भारत और पाकिस्तान के नेताओं से अच्छी वार्ता हुई और उन्होंने आशा जताई थी कि उपमहाद्वीप में तनाव कम होगा।
उन्होंने कहा था, मैंने बीती रात दोनों देशों के नेताओं से फोन पर अच्छा समय बिताया और सुनिश्चित किया कि सूचनाओं का अच्छा आदान-प्रदान हो। इसके साथ ही दोनों देशों को ऐसा कोई भी कार्य नहीं करने के लिए कहा, जिससे तनाव बढ़े।
इन संकेतों के अलावा हालांकि न ही ट्रंप और न ही पोम्पियो ने सीधे तौर पर वर्थमान की रिहाई या खान की शांति की अपील का श्रेय लिया।
लेकिन इस घटनाक्रम में 1999 में हुए कारगिल युद्ध की झलक है, जब भारत-पाकिस्तान के बीच एक बड़ा संघर्ष हुआ था और तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इस्लामाबाद को पीछे हटने के लिए हस्तक्षेप किया था।
कारगिल में सेना भेजकर भारत को उकसाने और हार झेलने के बाद, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने क्लिंटन से मदद की अपील की थी।