बेंगलुरू : कांग्रेस के दिग्गज नेता आर.रामालिंगा रेड्डी की नाराजगी की वजह से करीब एक साल पुरानी जद (एस)-कांग्रेस गठबंधन सरकार संकट में है। आठ बार के विधायक रेड्डी को मंत्री पद नहीं दिया गया था, जिससे वह नाराज थे। इसी वजह से उन्हों विधायक के तौर पर इस्तीफा दे दिया और इसे वापस लेने से साफ मना कर दिया।
बेंगलुरू दक्षिण में स्थित बीटीएम लेआउट सीट से विधायक 66 वर्षीय रेड्डी इससे पहले सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार (2013-18) में गृह एवं परिवहन मंत्री थे।
वर्ष 2018 में उन्होंने अपनी बेटी सौम्या रेड्डी की जयानगर सीट से जीत सुनिश्चित की।
2018 में रेड्डी ने जहां अपनी सीट जीती, वहीं बेंगलुरू की 28 विधानसभा सीटों में से 14 पर पार्टी की जीत सुनिश्चित की। तीन सीटें जद (एस) को और 11 भाजपा को मिलीं। इसके बावजूद उन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया।
एक राजनीतिक विश्लेषक ने आईएएनएस से कहा, जहां लोकसभा चुनाव में पिछले दो दशकों से भाजपा का वर्चस्व रहा है, वहां रेड्डी ने बेंगलुरू की 14 सीटें पार्टी की झोली में डाली। कई सीनियर और जूनियर विधायकों को जहां कैबिनेट मंत्री का पद दिया गया, वहीं रेड्डी की अनदेखी की गई, जिन्होंने पार्टी को मजबूत करने का काम किया था।
नाटकीय घटनाक्रम में छह जुलाई को आठ विधायकों के साथ उनके इस्तीफे से पार्टी हिल उठी। बाद में उन्हें उपमुख्यमंत्री पद तक का प्रस्ताव दिया गया, लेकिन वह टस से मस नहीं हुए।
बाद में रेड्डी ने संवाददाताओं से कहा, मैंने पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है, विधायक के तौर पर दिया है, क्योंकि मैं अपने क्षेत्र के लोगों के साथ न्याय नहीं कर पा रहा था और विकास कार्य नहीं करा पा रहा था।
कांग्रेस विधायक दल की बैठक में जहां रेड्डी शामिल नहीं हुए, वहीं उनकी बेटी सौम्या इसमें शामिल हुईं। इससे एक दिन पहले वह दिल्ली में सोनिया गांधी से मिली थीं।
सूत्रों का कहना है कि सौम्या भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए इस्तीफा देने की सोच रही हैं।
भाजपा में शामिल होने की अटकलों के बीच रेड्डी ने कहा कि वह कांग्रेस के वफादार बने रहेंगे, जिस तरह वह पिछले चार दशकों रहे हैं।
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