इंद्र वशिष्ठ
विवादों का पर्याय बन चुके रामदेव कोरोना की दवा बनाने का दावा करके एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। लेकिन इस बार महत्वपूर्ण बात यह हुई कि रामदेव के दावों पर उसकी चहेती सरकार ने ही न केवल सवालिया निशान लगा दिया बल्कि जांच पूरी होने तक दवा के विज्ञापन तक पर भी रोक लगा दी है। वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है पतंजलि की दवाओं को लेकर पहले भी विवाद हुए हैं।
दवा कोरोना में कितनी कारगर है और रामदेव के दावों में कितना दम है यह तो अब सरकार के आयुष मंत्रालय की जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन इतना तो सामने आ ही चुका है कि रामदेव ने मंत्रालय की अनुमति के बिना यह दवा बनाने का दावा सार्वजनिक करके नियमों का पालन नहीं किया है। नियम पालन न करने पर सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए।
रामदेव, बालकृष्ण और डाक्टरों ने उड़ाई नियमों की धज्जियां-
दवा का दम तो जांच के बाद पता चलेगा लेकिन दवा बनाने और मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल करने वाले रामदेव, बालकृष्ण, डाक्टरों/ वैद्यों यानी कोरोना योद्धाओं के आचरण/ नियमों के उल्लंघन से पता चलता है कि कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी के प्रति वह खुद कितने जागरूक/ सजग/ समझदार/संवेदनशील/गंभीर है ?
कोरोना से ज़ंग में बिना हथियार-
कोरोना से ज़ंग में दो सबसे अहम हथियार पूरी दुनिया को मालूम है। एक मास्क और दूसरा शारीरिक दूरी/ देह से दूरी/ सोशल डिस्टेंसिंग। मास्क न पहनने और दो गज दूरी के नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ जुर्माना और एफआईआर तक दर्ज की जाती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी “दो गज दूरी, बहुत है ज़रुरी” का मंत्र खुद कई बार देशवासियों को दे चुके हैं। रामदेव द्वारा हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ में कोरोना की दवा बनाने की घोषणा के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई।
मास्क और देह से दूरी का जबरदस्त उल्लघंन-
जिसमें मंच पर रामदेव, आचार्य बाल कृष्ण और डाक्टर बलबीर सिंह तोमर, डाक्टर अनुराग और अन्य डाक्टरों समेत कुल नौ लोग विराजमान थे। रामदेव, बालकृष्ण, डाक्टर बलबीर सिंह तोमर समेत किसी ने भी मास्क नहीं लगाया हुआ था। इन नौ लोगों में से सिर्फ तीन लोगों ने मास्क “लटकाया” हुआ था मतलब इन लोगों ने भी मास्क को मुंह पर नहीं लगाया था।
डाक्टर साहब आप तो समझदारी दिखाते-
राजस्थान में जयपुर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (निम्स) के चांसलर बलबीर सिंह तोमर जिन्होंने अपना परिचय दिया तो पता चला कि वह विश्व प्रसिद्ध डाक्टर है और उन्होंने ही रामदेव की दवाओं से अपने अस्पताल में कोरोना के मरीजों को ठीक किया है। आज़ जब पूरी दुनिया के डाक्टर लोगों को कोरोना से बचने के लिए मास्क और देह से दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन करने की बार-बार सलाह दे रहे हैं ऐसे में डाक्टर तोमर और अन्य डाक्टरों द्वारा नियमों की धज्जियां उड़ाना इनकी संवेदनशीलता/ समझदारी/गंभीरता/ काबिलियत पर सवालिया निशान लगाते हैं। मंच पर इन सभी के बीच मुश्किल से एक-एक फीट की दूरी थी। जबकि दो गज दूरी के हिसाब से 6 फ़ीट की दूरी एक दूसरे के बीच होनी चाहिए थी।
रामदेव, बालकृष्ण ग़ैर ज़िम्मेदार-
यहीं नहीं रामदेव और बालकृष्ण द्वारा अपने सहयोगियों के साथ मुंह सटा कर बात करने का दृश्य भी वीडियो में दिखाई देता है।
माइक तो दूर कर लेते-
रामदेव, बालकृष्ण ,डाक्टर बलबीर तोमर आदि ने माइक को इस्तेमाल करने में भी बिल्कुल सावधानी नहीं बरती।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे-
दूसरों को इलाज/ ज्ञान देने वाले ये लोग खुद कितनी लापरवाही बरत कर दूसरों के जीवन को ख़तरे में डाल देते हैं। माइक को मुंह के पास लगा कर रखने से मुंह से निकलने वाली सांस/ थूक की बूंद में मौजूद कीटाणु माइक पर चिपक/जम जाते हैं। क्या इन कथित महानुभावों और ज्ञानियों को इतनी मामूली-सी बात की समझ भी नहीं है या ये अपने को सब नियम कायदे से ऊपर मानते हैं। इन सब के शरीर क्या “कोरोना प्रूफ” हैं और इनसे किसी को या किसी से इनको कोरोना संक्रमण नहीं हो सकता है।
पूरी दुनिया ने देखा-
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया ने देखा। उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों और अफसरों ने भी जरुर देखा होगा। आम आदमी के खिलाफ नियम कायदे का उल्लघंन करने पर तुरंत कार्रवाई करने वाली सरकार को इन सबके खिलाफ भी तो कार्रवाई करनी चाहिए।
पांच सौ लोग एकत्र किए-
पतंजलि के सभागार में उस समय पांच सौ वैज्ञानिक डाक्टर के मौजूद होने की जानकारी रामदेव ने स्वयं दी और उनकी मौजूदगी वीडियो में दिखाई देती। सरकार ने अंतिम संस्कार में 20 लोगों और शादी में 50 लोगों के शामिल की संख्या निर्धारित की हुई है। इसके बावजूद सैकड़ों लोगों को एकत्र किया गया। क्या रामदेव के लिए सरकार ने कोई विशेष अनुमति दी थी या रामदेव अपने को नियम कायदे से ऊपर मानते हैं। दोनों ही सूरत में यह गलत है नियम तोड़ने वाले के खिलाफ बिना किसी भेद भाव के कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर सरकार या अफसर ने सैकड़ों लोगों के एकत्र होने की अनुमति दी तो यह भी ग़लत है। मीडिया वालों ने भी देह से दूरी का उल्लघंन किया। वीडियो में दिखाई देता है कि मंच के सामने मौजूद कैमरा वाले साथ साथ खड़े हैं
रामदेव की पोल तो उस समय ही खुल गई थी जब साल 2011 में दिल्ली पुलिस ने राम लीला मैदान से सलवार सूट पहन कर भाग रहे रामदेव को गिरफ्तार किया था। इस मामले की फोटो और वीडियो में साफ़ दिखाई देता है कि पुलिस के हत्थे चढ़ते ही डर के कारण रामदेव के चेहरे की हवाइयां उड़ गई थी। सारी नेतागिरी छू मंतर हो गई थी।
इस मामले के उजागर होने के बाद अपनी झेंप मिटाने के लिए रामदेव ने कहा कि पुलिस उसे एनकाउंटर में मारना चाहती थी इसलिए जान बचाने के लिए सलवार सूट पहना था। हालांकि यह बात किसी को हज़म नहीं हो सकती क्योंकि पुलिस इतनी मूर्ख नहीं है कि सबके सामने पकड़ कर एनकाउंटर दिखा दे। वह भी ऐसे मशहूर व्यक्ति का।
रामदेव की बात को अगर सही मान ले तो भी सवाल उठता है कि रामदेव आप तो खुद को स्वामी, संन्यासी, साधु और न जाने क्या क्या कहते हो लोगों को देश के लिए जान न्यौछावर करने के लिए उपदेश देते हो। ऐसे में खुद जनहित में जान देने कर शहीद होने का मौका मिला तो क्यों सलवार सूट में घुस गए।
असल में राम देव के आचरण ने साबित कर दिया कि वह न तो स्वामी है और न ही नेता। स्वामी होता तो मौत का भय नहीं सताता और नेता होता तो सामने आकर खुद अपनी गिरफ्तारी देता। रामदेव असल में एक आम आदमी जैसा ही है जिसे अपनी जान और स्वार्थ/ लाभ सबसे ज्यादा प्यारा होता है।
सत्ता के लठैत आईपीएस-
रामलीला मैदान में राम देव को पकड़ने के लिए तत्कालीन पुलिस कमिश्नर बृजेश कुमार गुप्ता और स्पेशल पुलिस कमिश्नर धर्मेंद्र कुमार, संयुक्त पुलिस आयुक्त सुधीर यादव, डीसीपी देवेश चंद्र श्रीवास्तव के नेतृत्व में सत्ता के लठैत बन पुलिस ने सोते हुए बच्चों और औरतों पर भी आंसू/ स्टन गैस और लाठी चार्ज कर फिंरगी सरकार की बर्बरता/ अत्याचार को भी पीछे छोड़ दिया था।
रामदेव व्यापारी-
रामदेव एक सामान्य योग गुरु भी नहीं है क्योंकि सामान्य योग गुरु का कार्य सिर्फ़ योग शिक्षा तक ही सीमित होता है। रामदेव असल में पूरी तरह व्यापारी है कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार, काला धन और पेट्रोल आदि के दाम पर दुनिया भर में शोर मचाने वाले रामदेव की अब इन मुद्दों पर बोलती बंद हो गई है।
वैसे रामदेव खांटी व्यापारी है वह मूर्ख नहीं है अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उसके पास अब सुनहरा मौका है उसे मालूम है कि इन मुद्दों पर गलती से भी बोल दिया तो सरकार उसकी दुकान बंद करा देगी। कोई भी व्यापारी सरकार से बिगाड़ कर व्यापार कर ही नहीं सकता। इससे साफ़ पता चलता है कि रामदेव अपने निजी हित साधने के लिए कांग्रेस के खिलाफ बोलता था।
रामदेव और विवाद-
रामदेव का गुरु रहस्यमय ढंग से गायब हो गया। इस मामले में भी रामदेव पर उंगली उठाई जा चुकी है। रामदेव को अपने विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए अपने प्रिय मित्र मोदी से कह कर अपने गुरु की तलाश करानी चाहिए। बालकृष्ण की डिग्री को लेकर विवाद अदालत में पहुंच चुका ।
रामदेव की फ़कीरी हवाई जहाज की सवारी-
रामदेव कहते है कि पतंजलि में उसके नाम से कुछ नहीं है अरे भाई जिस व्यवसाय से करोड़ों की आमदनी हो उसके माल को बेचने के लिए अपनी जी जान लगाने वाला व्यापारी ही होता है। और यह सब कोई मुफ्त में करता होगा, इतने भी मूर्ख नहीं है लोग। उस आमदनी के दम पर ही तो कारों के काफिले में हेलिकॉप्टर और हवाई जहाज की यात्रा कर रहे हो।
प्रधानमंत्री डंका बजाते-
देश में पीपीई किट और मास्क जैसी मामूली चीजें बनाने को प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल उपलब्धि माना बल्कि खुद ही राष्ट्र को बताया भी। ऐसे में भारत में अगर कोई कोरोना की दवा बना लेता है तो इतनी बड़ी उपलब्धि को क्या सिर्फ़ रामदेव या कुछ डाक्टर ही सार्वजनिक करते। ऐसा होने पर तो प्रधानमंत्री मोदी खुद पूरी दुनिया में भारत का डंका बजाते।
रामदेव का दावा सही निकला तो-
रामदेव का कोरोना की दवा बनाने का दावा अगर सही निकला तो यह उनके मित्र मोदी के लिए जबरदस्त झटके से कम नहीं होगा।उन्हें मलाल होगा कि दवा बनाने का डंका पूरी दुनिया में बजाने का मौका उनके मित्र ने ही उन्हें नहीं दिया। यह ठीक ऐसा होगा जैसे कि शेर के मुंह से शिकार छीन लिया जाए। देश को हर महत्वपूर्ण मामले की जानकारी देने की जिम्मेदारी मोदी ही निभाते रहे हैं।
मीडिया का मुंह विज्ञापन से बंद-
पतंजलि के उत्पादों के मीडिया में जमकर विज्ञापन दिए जाते हैं। इसलिए मीडिया रामदेव के खिलाफ कुछ भी लिखता या दिखाता नहीं है। इतना विज्ञापन तो शायद देश के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी की कंपनियां भी नहीं देती है। इसलिए मीडिया रामदेव के खिलाफ कुछ नहीं दिखाएगा।
रामदेव ने सरकार की अनुमति नहीं ली-
केंद्र सरकार के मंत्री श्रीपद नायक साफ़ तौर पर कहा कि मंत्रालय की अनुमति के बिना रामदेव को मीडिया में दवा का प्रचार नहीं करना चाहिए था।
पतंजलि द्वारा पेश दस्तावेजों का मंत्रालय द्वारा अध्ययन किया जा रहा है। जांच के बाद ही दवा बनाने के दावे की सच्चाई सामने आ पाएगी।