गुवाहाटी : गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने कारगिल युद्ध में हिस्सा ले चुके मोहम्मद सनाउल्लाह को शुक्रवार को अंतरिम जमानत दे दी। सनाउल्लाह को पिछले महीने असम में एक न्यायाधिकरण ने विदेशी घोषित कर एक बंदी शिविर में भेज दिया था।
न्यायमूर्ति मोनोजित भूयां और न्यायमूर्ति पी.के. डेका की एक खंडपीठ ने 20,000 रुपये की जमानती बांड और दो जमानत पेश करने पर यह आदेश पारित किया, लेकिन सेवानिवृत्त सैनिक से कहा कि वह पुलिस अधीक्षक (सीमा) को सूचित किए बगैर कामरूप और कामरूप (महानगर) जिलों के बाहर नहीं जाएंगे।
पीठ ने मामले के सभी प्रतिवादियों को नोटिस भी जारी किया, जिसमें भारतीय संघ, असम राज्य, रक्षा मंत्रालय, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एनआरसी के अधिकारी और असम पुलिस के जांच अधिकारी शामिल हैं।
मोहम्मद सनाउल्लाह की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय की प्रसिद्ध वकील इंदिरा जयसिंह अदालत में पेश हुईं, जबकि प्रतिवादी की तरफ से वकील यू.के. नायर पेश हुए।
इस मामले में शुक्रवार को उच्च न्यायालय में इंदिरा जयसिंह को मदद करने वाले वकील बुरहानुर रहमा ने कहा, हमें जमानत के आदेश मिल गए हैं। वह जल्द ही बंदी शिविर से रिहा कर दिए जाएंगे।
अदालत ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि संबंधित अधिकारी सनाउल्लाह को बंदी केंद्र से रिहा करने से पहले उनके बायोमेट्रिक्स को कनेक्ट करेंगे।
सनाउल्लाह ने 1987 से 2017 तक भारतीय सेना में नौकरी की थी। वर्ष 2014 में जब उन्हें जूनियर कमीशंड ऑफिसर के रैंक पर पोन्नति दी गई थी, तब उन्हें राष्ट्रपति पदक से पुरस्कृत किया गया था। वह एक मानद कैप्टन के रूप में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुए थे।
सेवानिवृत्ति के बाद वह उपनिरीक्षक के रूप में असम पुलिस से जुड़ गए और असम पुलिस की सीमा शाखा से संबद्ध रहे।
असम के कामरूप जिले के बोको में विदेशियों से संबंधित न्यायाधिकरण ने 23 मई को उन्हें एक विदेशी घोषित कर दिया। उसके बाद पुलिस ने उन्हें 28 मई को हिरासत में ले लिया और एक बंदी शिविर में भेज दिया। न्यायाधिकरण का फैसला सीमा पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दायर एक मामले पर आधारित था, जिसमें कहा गया था कि वह एक अवैध प्रवासी हैं।
–