कोलकाता : कलकत्ता उच्च न्यायालय ने दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिशमेंट (डीएसपीई) अधिनियम की वैधता पर सवाल उठाए हैं, जिसके आधार पर केंद्रीय जांच ब्यूरो का गठन हुआ है।
न्यायमूर्ति प्रतीक प्रकाश बनर्जी की एकल पीठ ने सोमवार को कानून के उस वैध हिस्से की संवैधानिकता पर सवाल उठाए हैं, जिसके आधार पर डीएसपीई अधिनियम बना और उसके बाद सीबीआई का गठन हुआ। न्यायाधीश ने मामले को दो या अधिक न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेज दिया है।
यह आदेश न्यायमित्र फिरोज एदुलजी के तर्क पर पारित किया गया।
न्यायमूर्ति बनर्जी ने पांच कानूनी सवाल तैयार किए हैं, जिनपर एक बड़ी पीठ फैसला करेगी।
ये सवाल ज्यादातर इस मुद्दे पर हैं कि क्या डीएसपीई, 1946 एक वैध कानून है, और क्या डीएसपीई का एक अंग है।
यह आदेश ऐसे समय में पारित किया गया है, जब सर्वोच्च न्यायालय इसी तरह के एक मामले की सुनवाई कर रहा है। यह मामला गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 2013 के एक फैसले के खिलाफ एक अपील है, जिसमें केंद्र सरकार के 1963 के उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया गया था, जिसके तहत सीबीआई का गठन किया गया था। अदालत ने कहा कि सीबीआई सिर्फ एक कानून के जरिए ही गठित किया जा सकता है। इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है, और सर्वोच्च न्यायालय ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के आदेश को स्थगित कर दिया था।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय के फैसले पर स्थगन को संज्ञान में लेते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कहा, सम्माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश का क्या असर है, जो एक उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के अंतिम आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा देता है, जिसमें यह कहा जाता है कि केंद्रीय कानून वैध कानून नहीं है।
न्यायमित्र ने कहा कि इस मामले में भारतीय संविधान की व्याख्या के संबंध में कानून के बुनियादी सवाल शामिल हैं, और इसके साथ ही उन्होंने न्यायाधीश से अनुरोध किया कि मामले को किसी तीन या इससे अधिक न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष रखा जाए।
अदालत ने न्यायमित्र के तर्क को स्वीकार करते हुए एक उचित पीठ गठित करने के लिए इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया।
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