कुशल जीना
कुछ समय पहले मणिपुर में जातीय संघर्ष ने एक अलग राज्य कुकीलैंड की मांग का रूप लेकर केंद्र सरकार की मुसीबत बढ़ा दी है और ये सब इसलिए हुआ क्योंकि प्रधान मंत्री और गृह मंत्री कर्नाटक चुनाव में व्यस्त थे। कुकी लीडर्स ने गृह मंत्री अमित शाह को स्पष्ट कह दिया है कि वे अब मैती लोगों के साथ और अधिक नहीं रह सकते और उन्हें एक अलग कुकीलैंड राज्य दे दिया।
कुकी आदिवासियों की इस मांग को लेकर केंद्र सरकार की जान सांसत में पड़ी है क्योंकि इससे नॉर्थईस्ट के अन्य राज्यों में भी ऐसे मांग को लेकर और आंदोलन होने के पूरी संभावना है। मणिपुर विधानसभा के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैती समुदाय से हैं और शेष 20 कुकी समुदाय से हैं। कुकी आदिवासी राज्य के 60 प्रतिशत इलाके पर अपना दावा करते हैं।
अगर अलग कुकी लैंड की मांग को समय रहते नहीं दबाया गया तो अलगाववाद की ये आग पूरे नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र को निगल सकती है।मणिपुर राज्य में सप्ताहांत में फिर से इंटरनेट बंद होने के साथ, करीब 120 चर्चों को जलाए जाने की खबरों ने राज्य में शासन की गुणवत्ता पर संदेह और सवाल खड़ा कर दिया है। मणिपुर में ईसाई निकायों ने कहा है कि मणिपुर में कुकी और मेइती समुदायों के बीच 3 मई, 2023 को भड़की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान कम से कम 120 चर्चों को जला दिया गया है।
हालिया झड़पों ने राज्य को बुरी तरह प्रभावित किया है। मरने वालों की संख्या 100 से अधिक है, 20,000 से अधिक घर नष्ट हो गए हैं और 50,000 से अधिक व्यक्ति इस क्षेत्र के भीतर विस्थापित हो गए हैं। लगभग 120 चर्च, मुख्य रूप से कुकी जनजातियों और कुछ मेइती समुदायों से संबंधित हैं, हिंसा के कारण नष्ट हो गए।
जातीय संघर्ष के कारणसंपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया है और अनुमानित 20 वर्षों की आर्थिक और विकासात्मक प्रगति को पीछे कर दिया है। रिपोर्टें बताती हैं कि ‘इस साम्प्रदायिक झड़प को अंजाम देने में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की घोर उदासीनता या संलिप्तता भी है।1956 और 2014 के बीच भारत में कम से कम छह आंदोलन हुए जिनमें पंजाब, असम, मिजोरम, जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल के लोगों ने देश से अलग होने के लिए आंदोलन चलाए। इनमें से कुछ आंदोलनों को राज्य की मांग में बदल दिया गया या बलपूर्वक कुचल दिया गया। इन आंदोलनों के दौरान हजारों निर्दोष लोग मारे गए।
पृथक राज्यों के आंदोलन के पीछे हमेशा क्षेत्रीय आकांक्षाएँ, एक ओर असंतुलित विकास और गरीबी तथा विभिन्न भाषाएँ, संस्कृति रीति-रिवाज, धर्म और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। इन मुद्दों के प्रति केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की उदासीनता ने लोगों को सड़क पर आने और हिंसक रास्ते पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कुछ आंदोलनों में भाषा दूसरों की तुलना में अधिक निर्धारक कारक होती है; कुछ में यह विकास है, कुछ में यह जातीयता है और कुछ में यह धर्म है। आंदोलनों के विभिन्न चरणों और विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार इन कारकों की सापेक्ष प्रभावशीलता भिन्न होती।