प्रदीप शर्मा
पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह आज उस वक्त भावुक हो गए जब उन्होंने राज्य के शीर्ष पद के लिए “एक आम आदमी” को चुनने के लिए कांग्रेस आलाकमान का धन्यवाद किया। चन्नी ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व ने एक आम आदमी को मुख्यमंत्री बना दिया. उन्होंने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को क्रांतिकारी नेता बताया. शपथ ग्रहण के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए पार्टी के सबसे पहले चुनावी वादे- गरीबों के लिए पानी के बिल में छूट- का ऐलान किया।
पंजाब में 32 फीसदी दलित वोट हैं। वहीं यूपी में 21 फीसदी दलित वोट चुनाव में किसी की किस्मत बदलने में बहुत मायने रखता है। खास बात यह है कि दोनों राज्यों में एक साथ विधानसभा चुनाव होने हैं। पंजाब की राजनीति के हिसाब से कांग्रेस के लिए ये जरूरी था, जहां बड़ी तादाद में दलित आबादी है। दलित समुदाय में जागरूकता बहुत तेज हो रही है। पंजाब में दलितों के मान-सम्मान को लेकर लोकगीत लिखे जा रहे हैं। दलित चेतना को लेकर तमाम आयोजन हो रहे हैं। पंजाब में दलित जागरूकता अभियान चल रहा है। बड़ी जोत के जाट सिख किसानों से हटकर राजनीति पंजाब के दलित सिखों की ओर दिखाई पड़ रही है। डेरों के महत्व पंजाब में काफी ज्यादा रहा है। डेरों से जुड़ी आबादी दलित सिखों की रही है। रविदासी, रामदासी, रामगढ़िया जैसे पंथ हैं। पंजाब पर निशाना कांग्रेस ने 32 फीसदी दलित आबादी को ध्यान में रखकर लगाया है। इसके साथ-साथ इसका असर हरियाणा पर भी पड़ता है। वहां दलितों की बड़ी आबादी है, जो जोतदार नहीं हैं यानी जिनके पास जमीनें नहीं हैं। लेकिन नौकरियों और अन्य पेशों से उन्होंने जीवन-यापन का जरिया ढूंढ लिया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाटव बिरादरी है और वहां आप देखें तो काफी तादाद में डेरे मिलेंगे। यहां भी रामगढ़िया और रविदासी संप्रदाय फैल रहा है। वाराणसी में रविदास आश्रम पर जो भारी भीड़ इकट्ठा होती है, उसमें बड़ी तादाद में पश्चिम के, हरियाणा के और पंजाब के दलित आते हैं। ये तीनों राज्यों के लिए एक तरह का संदेश है। कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर एक साथ कई राज्यों में बढ़त लेने की कोशिश की है।
पश्चिमी यूपी में भी पंजाब के पंथों की तरह मानने वाले दलित हैं। वह मूलतः जाटव यानी चमार हैं। उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वी हिस्सों में जो दलित हैं वो अन्य पंथों को मानने वाले दलित हैं। सेंट्रल और ईस्ट यूपी में शायद इसका उस तरह असर ना हो लेकिन जाटव बिरादरी में इसका प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस के प्रति एक सकारात्मक रुख जरूर आने की संभावना है। वोट कहां देते हैं वो तो कांग्रेस की मजबूती और प्रत्याशियों के ऊपर निर्भर करेगा। कांग्रेस इस दलित कार्ड को कितनी तेजी के साथ समुदाय के बीच में प्रचारित प्रसारित कर पाती है। अपने कितने दलित नेताओं को वह मोर्चे पर लगा सकती है। ये बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि उत्तर प्रदेश में देखें तो कुछ समय से कांग्रेस इस तरह का काम कर रही थी। जैसे हरियाणा के नौजवान दलित नेता प्रदीप नरवाल को प्रियंका गांधी की मदद के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का सह प्रभारी बनाया। चुनाव में लाभ तब मिलेगा जब आप समुदाय के बीच अपने इस स्टेप और संदेश को पहुंचा पाते हैं।