नई दिल्ली : यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जब भी विमानों का कोई बड़ा सौदा किया जाता है, तो यूरोप युद्ध का मैदान बन जाता है, ऐसा तब भी हुआ जब 2007 में भारतीय वायुसेना ने मीडियम मल्टी रोल कांबैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) स्पर्धा की घोषणा की थी।
फ्रांस की दसॉ एविएशन कंपनी भारत को हथियार से लैस 36 राफेल विमानों की डिलीवरी करने वाली है। हालांकि यूरोफाइटर विमान बनानेवाली एयरबस इंडस्ट्री ने भी कोशिश इस दिशा में कोशिश की है और वह मेक इन इंडिया कार्यक्रम का हिस्सा बनना चाहती है।
वहीं, शुरुआत में ग्रिपन विमान बनानेवाली स्वीडन की कंपनी साब भी दौड़ में शामिल थी, लेकिन फ्रांसीसी कंपनी ने उसका रास्ता रोक लिया।
रोचक तथ्य यह है कि कुछ लोग मसले को जटिल बनाने में लगे हुए हैं। तुर्की मूल के जर्मनी के पूर्व राजनेता और फ्रीडम डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य महमूत तुर्केर ने एयरबस के लिए राह बनाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी सरकार के कुछ अन्य आलोचकों से नई दिल्ली में मुलाकात की है। वह अब एयरबस के लड़ाके विमान के बिक्री निदेशक है।
तुर्केर ने ही राहुल गांधी को मोदी सरकार पर आरोप लगाने के लिए कच्चा माल मुहैया कराया। उनकी कांग्रेस अध्यक्ष से पहली मुलाकात पिछले साल हमबर्ग में हुई थी। उसके साथ ही विवादास्पद हथियारों का डीलर संजय भंडारी ने हमले की रणनीति तैयार करने में मदद की।
बाद में, तुर्केर ने अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और वकील प्रशांत भूषण से भी मुलाकात की, जिन्होंने राफेल मामले में पीआईएल (जनहित याचिका) दायर किया। उन्होंने कांग्रेस प्रवक्ता रणजीत सुरजेवाला से भी मुलाकात की।
इस दौरान तुर्केर ने भारतीय वायुसेना के उन सेवानिवृत्त अधिकारियों से भी मुलाकात की, जो कंपनी की मदद कर सकते हैं। माना जा रहा है कि उसने आईएएस अधिकारी राजीव वर्मा से भी मुलाकात की, जिन्होंने राफेल सौदे पर असहमति वाली टिप्पणी लिखी थी।
क्या कांग्रेस पार्टी विमान विनिर्माता कंपनी के अधिकारी से मिली जानकारी के आधार पर आरोप लगा रही है?
कांग्रेस अनुभूति से चाल चल रही है और मानती है भष्ट्राचार में दूसरों को फंसाने से उसका भाग्य खुल सकता है, जो 2014 में बंद हो गया था।