इंद्र वशिष्ठ
शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा असेम्बली (वर्तमान संसद भवन) में बम फेंके जाने की एफआईआर यानी प्राथमिकी संसद मार्ग थाने में दर्ज हुई थी। शहीदों से संबंधित यह एफआईआर ऐतिहासिक महत्व की है।
आठ अप्रैल 1929 को तत्कालीन न्यू दिल्ली थाने में (वर्तमान संसद मार्ग) में यह ऐतिहासिक एफआईआर पुलिसकर्मी लाला हंसराज ने दर्ज की थी।इस एफआईआर का नंबर 113 है। उस समय एफआईआर उर्दू भाषा में लिखी जाती थी। पुलिसकर्मी लाला हंसराज ने इस एफआईआर में लिखा है कि आज मेरी ड्यूटी असेम्बली गैलरी (वर्तमान संसद) में थी। करीब साढ़े 12 बजे दोपहर में एक के बाद एक दो बम असेम्बली हॉल में फटे और पिस्तौल से फायर किए गए। जब मैं भाग कर दर्शक दीर्घा में पहुंचा तो देखा कि सार्जेंट टैरी साहब ने दो मुलजिमों को गिरफ्तार किया हुआ था। इनमें से एक ने अपना नाम भगत सिंह और दूसरे ने बटुकेश्वर दत्त बताया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ धारा 307 हत्या की कोशिश और विस्फोटक अधिनियम 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
इस मुक़दमे का फैसला दिल्ली के सेशन जज ने 12 जून 1929 को सुनाया जिसमें भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सज़ा दी गई थी। बाद में 7 अक्टूबर1930 को लाहौर षड़यंत्र केस के आरोप में जिसे सांडर्स हत्याकांड के नाम से भी जाना जाता है भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सज़ा सुनाई गई। इन तीनों को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया गया। सरदार भगत सिंह संधू का जन्म 28 सितंबर 1907 को गांव बंगा जिला लायलपुर पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था।
भगत सिंह ने खोली पुलिस की पोल-
भगत सिंह सिंह ने अपने मुकदमे की पैरवी के दौरान जो बयान दिए, उसमें उन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट की और पुलिस की कहानी की पोल भी खोली। भगत सिंह ने अदालत में कहा कि हम बम फेंकने से इन्कार नहीं कर रहे हैं। लेकिन इस मामले में तथाकथित चश्मदीद गवाहों ने जो गवाही दी है वह सरासर झूठ है। सार्जेंट टैरी का यह कहना कि उन्होंने हमारे पास से पिस्तौल बरामद की सरासर झूठ है। जब हमने अपने आपको पुलिस के हवाले किया तो हमारे पास कोई पिस्तौल नहीं थी। जिन गवाहों ने कहा कि उन्होंने हमें बम फेंकते हुए देखा था वो भी झूठ बोलते हैं। न्याय और निष्कपट व्यवहार को सर्वोपरि मानने वाले लोगों को इन झूठी बातों से एक सबक लेना चाहिए।
भगत सिंह ने कहा कि यह काम हमने किसी व्यक्तिगत स्वार्थ अथवा विद्वेष की भावना से नहीं किया। हमारा उद्देश्य केवल उस शासन व्यवस्था के खिलाफ प्रतिवाद करना था। दोनों बम ऐसे नहीं थे जिनसे किसी की जान ली जा सके। इसके अलावा बम बेंचों और डेस्को के बीच की खाली जगहों में ही फेंके थे।भगत सिंह ने कहा कि ” बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत थी।“
फांसी की बजाए गोलियों से भून दिया जाए –
महान क्रांतिकारी शहीद ए आजम भगत सिंह और उनके साथियों ने ब्रिटिश सरकार से कहा कि उनके साथ राजनीतिक बंदी जैसा ही व्यवहार किया जाए और फांसी देने की बजाए गोलियों से भून दिया जाए।
क्षमा मांगने से इंकार-
अपनी शहादत के वक़्त भगत सिंह महज 23 वर्ष के थे। इस तथ्य के बावजूद कि भगत सिंह के सामने उनकी पूरी ज़िंदगी पड़ी हुई थी, उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने क्षमा-याचना करने से इनकार कर दिया, जैसा कि उनके कुछ शुभ-चिंतक और उनके परिवार के सदस्य चाहते थे। अपनी आख़िरी याचिका और वसीयतनामे में उन्होंने यह मांग की थी कि अंग्रेज़ उन पर लगाए गये इस आरोप से न मुकरें कि उन्होंने उपनिवेशवादी शासन के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा। उनकी एक और मांग थी कि उन्हें फायरिंग स्क्वाड द्वारा सज़ा-ए-मौत दी जाए, फांसी के द्वारा नहीं।
सांडर्स हत्याकांड की एफआईआर में भगत सिंह का नाम नहीं था-
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेज पुलिस अफसर जॉन पी सांडर्स की हत्या के मामले में फांसी दी गई थी। उर्दू में लिखी एफआईआर लाहौर के अनारकली थाने में 17 दिसंबर 1928 को शाम साढ़े चार बजे दो अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई थी। अनारकली थाने का एक पुलिसकर्मी इस मामले में शिकायतकर्ता था। शिकायतकर्ता इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी भी था। उसने कहा कि जिस व्यक्ति का उसने पीछा किया वह पांच फुट पांच इंच लंबा था। हिंदू चेहरा, छोटी मूंछें, दुबली पतली और मजबूत काया थी। वह सफेद पायजामा,भूरे रंग की कमीज और काले रंग की टोपी पहने हुए था।
भगत सिंह की बेगुनाही साबित हो-
भगतसिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्तियाज राशिद कुरैशी ने लाहौर में अदालत में याचिका दायर कर इस हत्याकांड के मामले में दर्ज़ एफआईआर की सत्यापित प्रति मांगी थी। फांसी दिए जाने के आठ दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद लाहौर पुलिस ने अदालत के आदेश पर अनारकली थाने के रिकॉर्ड की छानबीन की और सांडर्स हत्याकांड की एफआईआर ढूंढने में कामयाब रही। साल 2014 में अदालत ने कुरैशी को एफआईआर की सत्यापित प्रति दे दी। कुरैशी ने लाहौर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें भगतसिंह मामले को दोबारा खोलने की मांग की । वह सांडर्स हत्याकांड में भगतसिंह की बेगुनाही साबित करना चाहते हैं।
शहीद ए आजम को भारत रत्न तक नहीं दिया राज नेताओं ने –
सत्ता सुख भोगने वाले राजनेताओं, कलाकार और खिलाड़ी तक को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है। लेकिन देश की आजादी के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले भगत सिंह और उनके साथियों को भारत रत्न सम्मान नहीं दिया गया। जबकि इन शहीदों को भारत रत्न दिए जाने से भारत रत्न का ही सम्मान बढ़ेगा। भारत के असली रत्न सिर्फ और सिर्फ ऐसे शहीद ही है।