प्रदीप शर्मा
राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को आखिरकार राज्यपाल कलराज मिश्र ने 14 अगस्त को विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी दे दी है. राज्यपाल की ओर से बुधवार की देर शाम गहलोत सरकार को सत्र बुलाने की मंजूरी दे दी गई. सीएम गहलोत सत्र बुलाने की अपनी मांग के साथ पिछले दो हफ्तों के दौरान गवर्नर से चार बार मुलाकात कर चुके थे, वहीं उनकी कैबिनेट की ओर से सत्र को लेकर तीन प्रस्ताव भी भेजे गए, जिन्हें गवर्नर ने वापस लौटा दिया था।
लेकिन बुधवार को सरकार की ओर से भेजे गए चौथे प्रस्ताव पर हामी भरी गई. राज्यपाल ने गहलोत सरकार को सत्र के दौरान कोविड-19 गाइडलाइंस का सख्ती से पालन करने को लेकर मौखिक निर्देश भी दिए हैं. बता दें कि गवर्नर सदन बुलाने से पहले गहलोत से 21 दिनों का नोटिस देने की मांग कर रहे थे. उनका सवाल था कि ‘क्या गहलोत सदन में विश्वास प्रस्ताव लाना चाहते हैं? अगर ऐसा होता है तो तुरंत सत्र बुलाया जा सकता है लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो उन्हें 21 दिनों का नोटिस देना होगा.’ इसके बाद गहलोत सरकार ने पहले प्रस्ताव से 21 दिन गिनकर 14 अगस्त से सत्र बुलाने का प्रस्ताव भेजा, जिसे स्वीकार कर लिया।
बीते कुछ दिनों से सत्र न बुलाने को लेकर राज्यपाल कलराज मिश्र की आलोचना हो रही थी. संविधान विशेषज्ञ मंत्रिमंडल की सिफारिश के बावजूद विधानसभा सत्र न बुलाने के उनके कदम को गलत बता रहे थे। राज्यपाल के कदम से केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठ रहे थे और केंद्र सरकार कठघरे में आ रही थी. राज्यपाल के कारण इन आरोपों को बल मिल रहा था कि गहलोत सरकार पर छाए संकट में बीजेपी की भूमिका है।
गहलोत ने भी बीच का रास्ता निकाला. 23 जुलाई को भेजे गए पहले प्रस्ताव से 21 दिन गिनकर 14 अगस्त को सत्र बुलाने का निर्णय हुआ. गहलोत ने मंत्रिमंडल के प्रस्ताव में यह कहीं नहीं लिखा कि सरकार विश्वास मत लेना चाहती है. राज्यपाल चाहते थे कि सरकार बताए कि एजेंडा क्या होगा।
कांग्रेस के रणनीतिकारों के मुताबिक, विश्वास मत लेने की बात कहने पर राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने का बहाना मिल जाता. राज्यपाल कह सकते थे कि चूंकि सरकार को अपने बहुमत का विश्वास नहीं है इसलिए राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए, इसीलिए मंत्रिमंडल ने अपने प्रस्तावों में विश्वास मत लेने का जिक्र नहीं किया, इससे राज्यपाल और केंद्र सरकार दोनों एक्सपोज़ हो गए।
सत्र बुलाने की मंजूरी के साथ ही गहलोत के पास अब नाराज़ सचिन खेमे के विधायकों को मनाने के लिए और वक्त है। माना जा रहा है कि बीजेपी के भीतर अंदरूनी खींचतान भी राज्यपाल के फैसले की एक वजह है. बीजेपी स्पष्ट रूप से नहीं कह पा रही कि गहलोत को विश्वास मत लेना चाहिए या नहीं, या वो अविश्वास प्रस्ताव लाएगी या नहीं. इस पूरे घटनाक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की निष्क्रियता कई अटकलों को जन्म दे रही है।