रचना प्रियदर्शिनी : कुछ दिनों के बाद हम अपने देश का 70वां गणतंत्र दिवस मनायेंगे. हर साल की तरह इस साल भी स्कूल, कॉलेज, संस्थानों, कार्यालयों आदि में तिरंगा लहराया जायेगा. मिठाईंयां बांटी जायेगी, देशभक्ति के नारे लगाये जायेंगे, राष्ट्रगीत गायें जायेंगे और वतन पर मर-मिटने की कसमें खाने की रस्में निभायी जायेंगी. फिर शाम होते-होते चौक-चौराहों और गलियों में हर कहीं छोटे-छोटे कागज और प्लास्टिक के झंडे सड़कों पर धूल-धूसरित होते नजर आयेंगे.
रोड पर फर्राटे से बिना हेलमेट के बाइक चलाते युवा मस्ती करते नजर आयेंगे. महिलाओं एवं लड़कियों पर राह चलते शोहदे फब्तियां कसते मिल जायेंगे. बच्चे या किशोर-किशोरियां तेज धुन में फिल्मी संगीत बजा कर थिरकते नजर आयेंगे. कुछ लोग यत्र-तत्र-सर्वत्र थूकते या मूतते नजर आयेंगे.
बड़े-बुजुर्ग देश-दुनिया की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए आज के दौर की राजनीति और नेताओं को गालियां देते हुए दिख जायेंगे. जरा सोचिए, क्या वास्तव में हम भारतीय गणतंत्र पर गर्व करनेवाले और उसके सम्मान की रक्षा के लिए अपना सर्वत्र न्योछावर करनेवाले लोग हैं या फिर यह मात्र साल में दो-तीन दिनों की औपचारिकता है?
क्या सच में हम अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं?
क्या सच में हमें अपने संविधान की गरिमा का रत्ती भर भी ख्याल है?
शायद नहीं, क्योंकि जो लोग अपने देश से प्यार करते हैं, जिन्हें अपनी सभ्यता या संस्कृति से प्यार होता है और जो अपने देश के संविधान में यकीन करते है, वे इसका मखौल बना कर या इसके नियमों की धज्जियां उड़ा कर इसका मजाक नहीं बनने देते. वे हर हाल में, हर कीमत पर इसके पालन के लिए प्रतिबद्ध होते हैं.
देश से प्यार करने का मतलब केवल सीमा पर जाकर अपने सीने पर दुश्मनों की गोलियां खाना ही नहीं होता, देशप्रेम का अर्थ अपने देश की हर चीज से प्यार करना होता है. अपने देश की मिट्टी, अपने देशवासियों, अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं और अपने मूल्यों का सम्मान करना होता है. ‘मैं’ और ‘मेरा’ के दायरे से ऊपर उठ कर ‘हम’ और ‘हमारा’ में विलीन हो जाना होता है.
मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है –
जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रस़धार नहीं
वह हृदय नहीं पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.
कहने का मतलब यह कि अगर आप खुद को ‘भारतीय’ कहते हैं; अगर आपको अपने देश से वाकई प्यार है; अगर आप अपने देश को दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले आगे होते देखना चाहते हैं और चाहते हैं कि यह वाकई एक ‘महाशक्ति’ बन जाये, तो इसके लिए सबसे पहले तो देश के भीतर मौजूद हर तरह की कुव्यवस्था के लिए सरकार पर ठीकरा फोड़ना छोड़ दें. यह आप भी अच्छी तरह से जानते हैं कि इन सबके लिए अकेले केवल सरकार ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि काफी हद तक हम और आप भी जिम्मेदार हैं, लेकिन यह एक आम मानवीय प्रवृति है कि हम अपनी कमियों को छिपाने के लिए दूसरों की कमियां उजागर करते रहते हैं.
आज अगर आप अपने देश को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़े होते देखना चाहते हैं और सारी दुनिया में इसकी एक खूबसूरत पहचान बनाना चाहते हैं, तो अपने देश के संविधान का सम्मान कीजिए और जब भी मौका मिले अपने देश के एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर एक इंसान होने का अपना फर्ज निभाइए, क्योंकि देश और देश के सम्मान से बढ़ कर कुछ भी नहीं.