नई दिल्ली : आईएफआईएन (आईएलएंडएफएस फाइनेंसियल सर्विसेज) प्रबंधन जिस प्रकार निजी हितों के लिए मनमाना तरीके से कंपनी चला रहा था और गलत तरीके से चहेती कंपनियों को कर्ज बांट रहा था, उसकी परतें एक-एक कर खुलने लगी हैं।
कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने इस संबंध में कई खुलासे किए हैं। आईएफआईएन एक एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) थी, जो कर्ज देने के कारोबार में थी। इस कंपनी ने अपने समूह की कंपनियों के अलावा कई बाहरी कंपनियों को कर्ज बांटे और एक बार कर्ज नहीं चुकाए जाने के बाद भी बार-बार कर्ज देते रहे। जिन बाहरी कंपनियों को कर्ज बांटे गए, उनमें एबीजी, ए2जेड, पाश्र्वनाथ, फ्लेमिंगो और अन्य समूह शामिल थे। इन कंपनियों ने पहले लिए गए कर्ज का समय पर पुनर्भुगतान नहीं किया और बार-बार कर्ज लेती रही। आईएफआईएन का प्रबंधन इस बात से पूरी तरह वाकिफ था कि पहले दिए गए कर्ज की वसूली नहीं होने और बार-बार कर्ज बांटते जाने का आनेवाले महीनों में क्या नतीजा हो सकता है। फिर भी यह गोरखधंधा चलता रहा। यह जानकारी कंपनी के एमआईएस के माध्यम से उत्पन्न रिपोर्ट से इसका खुलासा होता है।
आरबीआई का निर्देश है कि बैंक और वित्तीय कंपनियां अगर एक तय अवधि तक दिए गए कर्ज की वसूली करने में नाकाम रहती हैं तो उसे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) घोषित करना होगा, ताकि उस पर आगे की कार्रवाई की जा सके। लेकिन आईएफआईएन ने जानबूझकर ऐसी कार्रवाई नहीं की, ताकि उनके घोटाले की पोल न खुले।
बार-बार कर्ज देने की प्रक्रिया कई बार चली। यहां तक पहले के कर्ज खातों को बंद कर नए खाते बनाकर उसके माध्यम से कर्ज दिए गए। यह फंडिग दोबारा एक ही कंपनी को की गई या उसी समूह की दूसरी कंपनी को की गई।
इस तरह की अनियमितता वाली गतिविधियों से कंपनी के फंसे हुए कर्ज का पहाड़ खड़ा होता गया और स्थिति इतनी विकट हो गई कि अब कंपनी को बचाना मुश्किल हो गया है।
आखिरकार ये कर्ज जब हद से ज्यादा बढ़ गए तो कंपनी को इन्हें एनपीए घोषित करना पड़ा, और इससे आईएफआईएन और उसके हितधारकों को काफी बड़ा नुकसान हुआ है।
कंपनी के स्वीकृत पदाधिकारी पूरी तरह से तनावग्रस्त स्थिति से अवगत थे। न सिर्फ कंपनी को यह बात पता थी, बल्कि कंपनी से लगातार कर्ज ले रही समूह कंपनियां भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थीं। कई मामलों में समूह की प्रमुख कंपनियां पहले से ही कार्पोरेट कर्ज पुनर्गठन के तहत थीं। आईएफआईएन के आंतरिक दस्तावेजों से पता चलता है कि कंपनी के पास तरलता की समस्या थी, उसकी हालत खस्ता थी। फिर भी कंपनी ने बिना सुरक्षा कवच के ताजा कर्जो को मंजूरी प्रदान की।
कई मामलों में कर्ज देने की कंपनी की नीति के खिलाफ न्यूनतम दो फीसदी के भीतर कर्ज दिया गया। एसएफआईओ की जांच से प्रमाणित कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की तीखी रिपोर्ट से पता चलता है कि आईएफआईएन ने डिफॉल्ट उधारकर्ताओं को मूल राशि के पुनर्भुगतान और ब्याज की राशि के भुगतान के लिए नियमित रूप से वित्त पोषित किया था। इस तरीके से, आईएफआईएन ने मौजूदा बकाया उधारों को पुनर्भुगतान से व्यवस्थित होने नहीं दिया।