जयपुर : राजस्थान की राजधानी जयपुर के मध्य स्थित इस महारानी गायत्री देवी स्कूल ने 1943 में एक मूक क्रांति की शुरुआत की थी, जब वह क्षेत्र महिलाओं में पर्दा प्रथा की कुप्रथा में फंसा हुआ था। स्कूल की शुरुआत एक पूर्व रानी ने की थी। पर्दा प्रथा (कुछ हिंदू और मुस्लिम समुदायों में महिलाओं को पुरुषों और अजनबियों के सामने आने के लिए घूंघट या बुर्का) के चंगुल से लड़कियों को आजाद कराने के उद्देश्य के साथ महारानी गायत्री देवी स्कूल ने रानी के सपने को साकार किया है, जिनके नाम पर स्कूल है।
स्थापना के 75 वर्ष पूरे कर चुके इस स्कूल ने अपनी छात्राओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने और पूरे आत्मविश्वास के साथ मुख्यधारा में आने में मदद की। महारानी गायत्री देवी स्कूल के प्रशासनिक अधिकारी कर्नल एस.एस. सांगवान (सेवानिवृत्त) कहते हैं कि स्कूल ने लड़कियों को न सिर्फ पर्दा प्रथा से आजादी दिलाई, बल्कि महारानी गायत्री देवी स्कूल से स्नातक कर चुकीं छात्राओं ने हर क्षेत्र में पहचान बनाई है, चाहे राजनीति हो, सेना हो, प्रशासनिक सेवा, खेल या कला एवं संस्कृति ही क्यों न हो।
उन्होंने कहा कि इसी स्कूल की एक छात्रा मीरा कुमार पांच बार सांसद रहीं और 2009-14 के दौरान वह लोकसभा अध्यक्ष रही हैं। रजनीगंधा शेखावत (1980 बैच) एक प्रसिद्ध सूफी गायक रह चुकी हैं। 1959 बैच की सावित्री केंडी 1967 में भारतीय विदेश सेवा में जाने वाली राजस्थान की पहली महिला बनी थीं।
उन्होंने कहा कि अपूर्वी चंदेला (2003 बैच) ने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था, वहीं शगुन चौधरी ओलंपिक ट्रैप शूटिंग में जाने वाली पहली महिला बनी थीं। सांगवान ने कहा कि आज भी, प्रतिभाओं को निखारने के मामले में स्कूल बहुत आगे है। मनष्वी कट्टा, यशस्वी कट्टा और मानवी गरगोटी जूनियर आईपीएल क्रिकेट में चुनी गईं और वसुंधरा चंद्रावत को इसी साल बांग्लादेश में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय कराटे टूर्नामेंट के लिए चुना गया है।
राजमाता गायत्री देवी द्वारा शुरू किए गए स्कूल का विचार सबसे पहले तब आया, जब जयपुर के राजा सवाई मान सिंह कूच बिहार की राजकुमारी आयशा (गायत्री देवी) से विवाह कर उन्हें घर लाए। वैश्विक दृष्टिकोण और सोच वाली उच्च शिक्षित रानी लड़कियों को पर्दा प्रथा में जीवन बिताते देख बहुत दुखी हुईं।
लड़कियों की शिक्षा को लेकर राजस्थान के अन्य राज्यों से बहुत पिछड़ा राज्य होने के कारण चिंतित राजा ने जब अपनी रानी से सलाह मांगी तो उन्होंने लड़कियों के लिए स्कूल खोलने की सलाह दी। उनके अनुसार, जब लड़कियां स्कूल जाने लगेंगी तो कुछ सालों में पर्दा प्रथा खत्म हो जाएगी।
महारानी ने खुद ऐसे समय में घर-घर जाकर सभ्रांत लोगों से उनकी बेटियों को स्कूल भेजने का आग्रह किया, जब रेगिस्तानी राज्य में लड़कियों की पढ़ाई बिल्कुल नया विचार था। शुरुआत में 24 लड़कियां आईं।
स्कूल के पहले बैच की स्नातक छात्रा जेन हिम्मत सिंह ने कहा, लोग अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने को लेकर भयभीत थे। तब रानी ने उन लड़कियों के लिए एक पर्दा बस की सुविधा देने का वादा किया। बड़े-बड़े पर्दे वाली बस में प्रत्येक छात्रा के लिए एक शिक्षिका इंतजार करती थी। उन्होंने कहा, बस में चालक के केबिन तथा छात्राओं, शिक्षिका और सहायक के केबिन के बीच में भी एक पर्दा था।
इसे याद करते हुए सिंह ने कहा, हमारे लिए एक पोशाक निश्चित की गई थी। सीनियर छात्राओं के लिए मरून रंग के पल्लू वाली नीली साड़ी और नीला ब्लाउज था। वहीं जूनियर छात्राओं के लिए बटन वाली पट्टी के साथ मरून रंग की चुन्नटदार स्कर्ट, नीला ब्लाउज, सफेद मोजे, काले जूते और मरून रंग की पट्टियां थीं।
उन्होंने कहा, नाप लेने के समय दर्जी पर्दे के दूसरी तरफ खड़ा होता था और लड़की का माप लेने वाली शिक्षिका उसका माप लेकर दर्जी को बता देती थी। इसके अलावा 1950 तक तो स्कूल में छात्रा के पिता और भाई को भी जाने की इजाजत नहीं थी। महारानी गायत्री देवी स्कूल 1976 तक देश में लड़कियों का एकलौता पब्लिक स्कूल था।
(यह साप्ताहिक फीचर श्रंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की एक सकारात्मक पत्रकारित परियोजना का हिस्सा है।)