सुभाष नारायण, नई दिल्ली : भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या का बैंकों के कंसोर्टियम से लिए गए 5,500 करोड़ रुपये के कर्ज को लौटाने का कोई इरादा नहीं था, यहां तक कि कर्जदाताओं ने उसकी अब बंद हो चुकी एयरलाइन किंगफिशर एयरलाइंस लि. (केएएल) को चलाए रखने के लिए कर्ज के पुनर्गठन पर भी सहमति जताई थी।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा केएएल की वित्तीय गड़बड़ियों की जांच से खुलासा हुआ है कि माल्या का इरादा बैंकों का कर्ज लौटाने का था ही नहीं, क्योंकि बैंकों द्वारा कर्ज के पुनर्गठन के बाद भी उसने मुनाफे में चल रही यूनाइटेड ब्यूरीज होल्डिंग्स लि. (यूबीएचएल) और समूह की अन्य कंपनियों की पूंजी को केएएल में नहीं लगाया।
इसकी बजाए, यूबीएचएल द्वारा केएल को कई डमी कंपनियों के माध्यम से घुमा-फिरा कर 3,516 करोड़ रुपये का असुरक्षित ऋण दिया गया। इससे केएएल का जो थोड़ा बहुत सकल मूल्य था, वह भी नष्ट हो गया, क्योंकि कंपनी पर कर्ज की पुनर्गठित रकम 5,575.72 करोड़ रुपये थी।
दिलचस्प है कि, यूएचबीएल ने इस असुरक्षित कर्ज व्यवस्था वेव समूह (188 करोड़ रुपये), सहारा समूह की कंपनी एसआईसीसीएल (200 करोड़ रुपये) से की थी। इस प्रकार से असुरक्षित कर्ज को घुमाफिरा कर दूसरी कंपनियों के माध्यम से दिया गया ताकि मूल कंपनी का पता न चले। और इसका नतीजा यह हुआ कि केएएल पर कर्ज बढ़ता गया और इसे चलाए रखने की व्यवहार्यता कम होती गई।
अपनी जांच में ईडी ने पाया कि माल्या का इरादा कर्ज को लौटाने का नहीं था, क्योंकि घाटे में चल रही केएएल पर कर्ज और बढ़ता जा रहा था। यहां तक कि उसने यूबीएचएल के साथ बंबई उच्च न्यायालय में केएएल के कर्ज पर दोनों द्वारा दिए गए व्यक्तिगत गारंटी के आह्वान को चुनौती दी। एजेंसी के अधिकारियों का कहना है कि केएएल के लिए कर्ज को पाने और कर्ज का पुनर्गठन कराने के लिए आपराधिक साजिश रची गई, क्योंकि उनका शुरू से ही कर्ज को चुकाने का कोई इरादा नहीं था।
जांच से केएएल के दिए गए कर्ज की रकम के हेराफेरी का भी पता चला है। एयरलाइन को दिए गए कर्ज का एक बड़ा हिस्सा देश से बाहर फर्जी परिचालन खर्च या पट्टे के किराए के झूठे कर्ज के रूप में दिखा कर देश से बाहर भेज दिया गया।
केएएल को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) और एक्सिस बैंक ने 3,200 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज दिया था, जिसे देश से बाहर विमानों के पट्टे का किराया और रखरखाव, कलपुर्जे के खर्च के नाम पर भेज दिया गया। जांच में असलियत में किए गए भुगतान और केएएल द्वारा दिखाए गए भुगतान में भारी अंतर पाया गया, खासतौर से विमानों के पट्टे का किराया काफी अधिक बढ़ाचढ़ाकर दिखाया गया।
केएएल से बार-बार यह याद दिलाया गया कि पट्टे से संबंधित दस्तावेज मुहैया कराए, लेकिन कंपनी की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई। ईडी का निष्कर्ष है कि पहले से सोच-समझ कर और योजना बना कर बैंकों से बड़ी रकम कर्ज के रूप में लिया गया और उसे जालसाजी से देश से बाहर ठिकाने लगा दिया गया।
साल 2010 में कर्ज के पुनर्गठन के बाद केएएल का बकाया मूलधन 6,000 करोड़ रुपये से घटकर 5,575.72 करोड़ रुपये रह गया। इस रकम को बैंकों ने दिसंबर 2010 में और घटाकर 4,930.34 करोड़ रुपये कर दिया, क्योंकि एसबीआई जैसे बैंकों ने कंसोर्टियम को दिए गए शेयरों के एक हिस्से को बेच कर कुछ रकम जुटा लिया।