नई दिल्ली : भारत के साथ सूचना साझा करने वाली यूरोपीय संघ की एक खुफिया ने हाल ही में खुलासा किया है कि एफ-16 लड़ाकू विमान बनाने वाली अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन राफेल मसले को हवा दे रही है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के शासन काल में सरकार ने वाुयसेना के पास बेहतर लड़ाकू जेट विमान नहीं होने के कारण हवाई प्रतिरक्षा की मुस्तैदी की कमियों की भरपाई करने के लिए 126 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार सत्ता में आई तो इस सौदे में संशोधन करके पूरी तरह हथियार से लैस 36 राफेल जेट हासिल करने के लिए अंतर-सरकार के बीच सौदे किए गए।
अब भारत में इस सौदे को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है वह राजग सरकार के सौदे में लड़ाकू विमान की कीमतों को लेकर है।
दिसंबर में जब राफेल का मामला सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया तो प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने पाया कि खरीद में आमतौर पर अपनाई गई पक्रिया का अनुपालन हुआ है। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि विवाद फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद द्वारा ऑफसेट पार्टनर के चयन को लेकर की गई टिप्पणी से पैदा हुआ और सिर्फ टिप्पणी को जांच का आधार नहीं बनाया जा सकता है।
हालांकि इससे राफेल खरीद विवाद पर विराम नहीं लगा और यह कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच उत्तेजक जंग का मसला बन गया।
पिछले कुछ महीनों से दोहराते हुए अब लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सरकार और खासतौर से प्रधानमंत्री पर इस मसले को लेकर हमले करने लगे हैं। पहले इस विवाद में जनता की दिलचस्पी नहीं थी लेकिन अब उनका थोड़ा झुकाव होने लगा है। यही कारण है कि कांग्रेस लगातार सभी लोकमंचों पर इस समले को उठाती रही है।
बताया जाता है कि सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के मामले को लाना अमेरकी कंपनियों के वर्तमान मामले में गुप्त योजना का हिस्सा है, जबकि राष्ट्रवादी मसला भी प्रतीत होता है। सरकार के आकलन के अनुसार, एचएएल का रिकॉर्ड बहुत खराब है और इसे लड़ाकू विमान बनाने जैसी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती है। खासतौर से रूस से खरीदे गए और एचएएल के लाइसेंस के तहत बनाए गए एमआईजी विमानों की सुरक्षा के रिकार्ड को देखते हुए। ऐसा नहीं किया जा सकता है।
भाजपा की अगुवाई में केंद्र सरकार की माने तो उसके पास इस बात के सबूत हैं कि कांग्रेस पार्टी ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि यह अमेरिका और फ्रांस के विमान विनिर्माता कंपनियों के झगड़े का हिस्सा बन गई है।
ऐसा माना जाता है कि लॉकहीड मार्टिन अमेरिका की दूसरी बड़ी विमान विनिर्माता कंपनी बोइंग के प्रति सहानुभूति दिखा रही है, जो एफ-18 विमान बनाती है। फ्रांस की कंपनी दसॉ की फ्रांस में दूसरी प्रतिस्पर्धी विमान विनिर्माता कंपनी एयरबस इंडस्ट्री है जो यूरोफाइटर की विनिर्माता बीएई की सहयोगी है। वह भी भारत के साथ लड़ाकू विमान सौदे की ताक में है।
राहुल गांधी ने अगस्त 2017 में अपने अमेरिकी दौर के बाद राफेल मसले को लेकर सरकार पर हमला करना शुरू किया। अमेरिका के इस दौरे के दौरान उनकी मुलाकात कई रक्षा लॉबिस्ट, अमेरिकी रक्षा कंपनियों के सीईओ और पेंटागन के अधिकारियों से हुई थी।
कांग्रेस पर कॉरपोरेट प्रतिस्पर्धा का मोहरा बनने का आरोप लगाने में रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण का वार कुंद रहा है। उन्होंने हाल ही में राफेल के संदर्भ में भारत के रणनीतिक हित पर आयोजित सेमिनार में उन्होंने बयान दिया।
राफेल सौदे को लेकर सरकार को निशाना बनाने के अभियान में अगुवा रहे शख्सियतों के बारे में पता लगाने की दिशा में सरकार के प्रयासों के नतीजे चौंकाने वाले हैं। सौदे में प्रधानमंत्री पर भ्रष्टचार के आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करने वाले प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के बीच अनपेक्षित जुड़ाव है।
इस जुड़ाव से कम से कम एक मामले में शौरी परिवार के सदस्यों को विमान विनिर्माता कंपनियों, हथियार डीलरों और रक्षा लॉबिस्ट के बीच गहरे संबंध का पता चलता है।
गहराई से विचार करने पर, शौरी के वित्तमंत्री बनने के सपने टूटने और एक के बाद एक मसले को लेकर प्रधानमंत्री के खिलाफ उनके विषवमन के बीच सह-संबंध देखने को मिलता है।
सरकार को भाजपा के शीर्ष नेता के दामाद और फ्रांस के विनिर्माता कंपनी के बीच संबंधों की भी जानकारी है। कहा जाता है कि दामाद राहुल गांधी को सलाह दे रहे हैं और माना जाता है कि वह राफेल के विरुद्ध अभियान के लिए उनको सरकारी दस्तावेज उपलब्ध करवा रहे हैं।
राफेल खरीद सौदे को निरस्त करने के लिए राजनीतिक गलियारे में काम करने की दिशा में लॉकहीड मार्टिन की कथित गतिविधि को बड़े रणनीति संदर्भ में देखा जा रहा है।
बताया जाता है कि ट्रंप प्रशासन भारत से नाखुश है क्योंकि मोदी की अगुवाई में राजग सरकार सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर से मजबूत संबंध बनाने में सफल रही है।