नई दिल्ली : साल 2019 के तीन महीने भी पूरे नहीं हुए हैं और जम्मू एवं कश्मीर में सुरक्षाकर्मियों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। यह हाल के समय के सबसे हिंसक दौर में से एक बन गया है।
सिर्फ सेना के ही 10 जवान शहीद हो चुके हैं जिनमें पांच की मौत पुलवामा में कार बम हमले से पहले हुई थी। पुलवामा में 14 फरवरी को हुए हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवान शहीद हो गए थे। पुलवामा हमले के बाद सेना के पांच और जवान तथा आठ अन्य सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं।
सुरक्षाकर्मियों के लिए पिछला साल सबसे खराब दौरों में से एक रहा, जब लगभग 100 सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई थी। लेकिन, इस वर्ष के पहले दो महीनों में ही यह आंकड़ा 55 को पार कर चुका है।
लेकिन, सैन्य अभियानों में आतंकवादियों की मौतों की संख्या भी बढ़ रही है। 14 फरवरी तक 28 आतंकवादियों को मारा जा चुका था और पुलवामा घटना के बाद 16 और आतंकवादी मारे जा चुके हैं।
नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर युद्धविराम के उल्लंघन की घटनाओं में तेज वृद्धि से स्थिति और ज्यादा तनावपूर्ण हो चुकी है।
14 फरवरी से पहले 267 बार युद्ध विराम का उल्लंघन किया गया और उसके बाद 228 बार युद्ध विराम का उल्लंघन किया गया। इससे यह संकेत मिलता है कि सीमा पर गोलीबारी चलती रही है।
साल 2018 में सुरक्षा बलों को आतंकवादियों के खिलाफ बड़ी सफलताएं मिलीं और उन्होंने 260 आतंकवादियों को मार गिराया जिनमें लश्कर-ए-तैयबा का प्रमुख आतंकी नवीद जाट जैसे बड़े आतंकवादी भी थे। 2018 में आतंकवादियों की मौतों का आंकड़ा पिछले आठ साल में सर्वोच्च था। इससे पहले 2010 में 270 आतंकवादी मारे गए थे।
2011 में 119, 2012 में 84, 2014 में 110, 2015 में 113, 2016 में 165 और 2017 में 218 आतंकवादी मारे गए।
2018 में 95 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे वहीं 2017 में 83 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे।
दक्षिण-एशिया आतंकवाद पोर्टल के अनुसार, इस साल जम्मू एवं कश्मीर में 56 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो चुकी है और 44 आतंकवादी मारे जा चुके हैं।