प्रदीप शर्मा
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में लव जिहाद के मामले को लेकर बुलाई गई महापंचायत को हिंदुत्ववादी संगठनों ने स्थगित कर दिया है। इससे पहले ग्राम प्रधानों के एक संगठन ने पुरोला में 15 जून को महापंचायत का ऐलान किया था लेकिन पुलिस प्रशासन ने इसके लिए अनुमति नहीं दी। इसके बाद विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे हिंदुत्ववादी संगठन ने अनुमति न मिलने के बावजूद महापंचायत किए जाने की घोषणा की थी। उत्तराखंड प्रशासन ने इसे देखते हुए इलाके में धारा 144 लागू कर दिया और कोई भी कानून के विरुद्ध हरकत पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी जारी कर दी। अब हिंदुत्ववादी संगठनों ने भी महापंचायत को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया है।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी परिषद के प्रवक्ता राजपाल पवार ने कहा कि सभी संगठनों ने महापंचायत को स्थगित कर दिया है लेकिन धारा 144 के खिलाफ हम बाजार को बंद रखेंगे। उन्होंने कहा कि यह प्रशासन की दमनकारी नीति है कि उसने इलाके में धारा 144 लगा दिया है। यह 19 जून तक लागू रहेगी। वहीं पुरोला के एसडीएम देवानंद शर्मा ने बताया कि इलाके में धारा 144 का सख्ती के पालन कराया जाएगा। एडीजी लॉ ऐंड ऑर्डर ने तो अशांति फैलाने वालों के खिलाफ एनएसए लगाने का निर्देश दिया है। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भी दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की है।
उत्तराखंड में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। कथित लव जिहाद के सवाल पर जहां हिंदू संगठनों ने 15 जून को उत्तरकाशी के पुरोला में महापंचायत आयोजित करने की घोषणा की थी। वहीं मुस्लिम संगठनों ने भी मिल रही धमकियों को देखते हुए 18 जून को महापंचायत बुला ली थी। हद तो यह है कि अलग-अलग तारीख और जगहों पर बुलाई गईं ये महापंचायतें भी तनाव का कारण बन गई हैं। कुछ लोगों ने कहा है कि वे 18 जून को प्रस्तावित महापंचायत नहीं होने देंगे। हालात ज्यादा गंभीर नहीं माने जाते अगर बात सिर्फ बयानों तक सीमित रहती। लेकिन अल्पसंख्यक बिरादरी से जुड़े दुकानदारों से दुकान खाली करके चले जाने को कहा जा रहा है।
इस सबकी जड़ में पुरोला की एक घटना बताई जाती है, जिसमें एक मुस्लिम युवक के साथ एक हिंदू लड़की देखी गई। इसे लव जिहाद के नाम से प्रचारित किया गया और जगह-जगह पोस्टर लगाकर ‘बाहरी लोगों’ से इलाका छोड़कर चले जाने को कहा जाने लगा। इससे एक शांतिपूर्ण राज्य में नफरत और डर का माहौल बन गया। अव्वल तो यहां कोई भी उस अर्थ में बाहरी नहीं है, जिस अर्थ में उन्हें बताया जा रहा है। मुस्लिम आबादी भी यहां सदियों से रह रही है। बताते हैं कि उत्तराखंड के कुल 1600 गांवों में से 150 ऐसे गांव हैं, जिनकी मुस्लिम गांवों के रूप में पहचान है। वे यहां के समाज और संस्कृति में पूरी तरह घुले-मिले हैं। वे होली-दिवाली में ही शामिल नहीं होते, रामलीलाओं को समृद्ध करने में भी उनकी भूमिका होती है।
दूसरी ओर, जगह-जगह पीर बाबा की मजारों पर चादर चढ़ाने में यहां के हिंदू भी आगे रहते हैं। जाहिर है, ये सब उत्तराखंड की मिट्टी में रचे-बसे लोग हैं। लेकिन दूसरे अर्थ में देखा जाए तो यहां सभी बाहरी हैं। सभी समुदायों में ऐसे लोग हैं, जिनके पूर्वज किसी और इलाके से यहां आकर बसे। पहाड़ ने प्यार और सम्मान के साथ उन्हें स्वीकार किया। खैर, जिस घटना को मुद्दा बनाकर नफरत का तूफान खड़ा करने की कोशिश हो रही है, सबसे पहले तो उसका सच सामने लाने की जरूरत है।
लड़की और लड़के का अलग-अलग समुदायों से होना ही उन्हें गुनहगार नहीं बना देता। पहले का ट्रेंड देखें तो राजनीतिक फायदे के लिए लव जिहाद और धर्मांतरण जैसे मुद्दों को तूल दिया जाता रहा है ताकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़े। ऐसे मामलों में सरकारों की भूमिका अहम हो जाती है। उत्तराखंड में भी सरकार और प्रशासन को फौरन ऐसे तत्वों पर अंकुश लगाना चाहिए, जिनकी वजह से सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी है। इसे रोकना और शांति बनाए रखना जरूरी है, तभी ‘सबका साथ, सबका विकास’ का लक्ष्य पूरा हो पाएगा।