भोपाल (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में किसानों से समर्थन मूल्य पर गेहूं की बंपर खरीदारी कर कमलनाथ सरकार मुसीबत में फंस गई है। केंद्र सरकार ने खरीदे गए गेहूं में से लगभग आठ लाख मीट्रिक टन कम गेहूं लेने का निर्णय लिया है। इससे राज्य सरकार पर 1,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार आने की आशंका है।
राज्य में इस बार सरकार ने किसानों से 75 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीदी की है। इसमें से केंद्र सरकार 67़.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं लेने की बात कह रही है। इससे राज्य सरकार की मुसीबतें बढ़ गई हैं। इस मसले को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गुरुवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान उठाया है।
कमलनाथ के अनुसार, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रदेश में गेहूं उपार्जन की सीमा 75 लाख टन करने का अनुरोध किया है। भारत सरकार द्वारा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रदेश में गेहूं उपार्जन पर वर्तमान में 67़ 25 लाख मीट्रिक टन की सीमा तय की गई है। इसके पहले भारत सरकार ने माह फरवरी में 75 लाख मीट्रिक टन की सीमा स्वीकृत की थी। यह सीमा पुराने चार वर्ष के उपार्जन के आंकड़ों के आधार पर तय की थी।”
ज्ञात हो कि, राज्य सरकार ने किसानों से 2000 रुपये प्रति कुंटल के हिसाब से समर्थन मूल्य पर गेंहू खरीदा है। इसमें केंद्र का 1840 रुपये समर्थन मूल्य और राज्य सरकार का 160 रुपये का बोनस शामिल है। इस बार 25 मार्च से 29 मई तक चली खरीदी में 75 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया, परंतु अब केंद्र सरकार सिर्फ 67़ 25 लाख मीट्रिक टन गेंहू ले रही है।
राज्य सरकार के जनसंपर्क मंत्री पी. सी. शर्मा ने मीडिया से बातचीत में कहा, “गेहूं खरीदी की मंजूरी देने के बाद केंद्र सरकार अब उससे पलट रही है। यह मध्यप्रदेश की सरकार का नहीं, किसानों का मामला है। निश्चित तौर पर सरकार को परेशान करने का मामला है। जो पूरा गेंहू है, उसे उसका भुगतान करना चाहिए।”
दूसरी ओर, केंद्रीय खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने नई दिल्ली में एफसीआई की समीक्षा बैठक के बाद नियम का हवाला देते हुए शुक्रवार को कहा कि “किसी भी राज्य से, वहां खरीदे गए गेहूं में से 28 लाख टन से अधिक अधिशेष गेहूं नहीं खरीद जा सकता है। हालांकि मध्य प्रदेश को एक रियायत दी गई और एफसीआई से 67़ 25 लाख टन गेहूं खरीदने के लिए कहा गया है। राज्य को इसके अतिरिक्त कोई रियायत नहीं दी जाएगी। वहां 2017-18 विपणन वर्ष में बिना बोनस दिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इतना गेहूं ही खरीदा गया था।”
सूत्रों का कहना है कि केद्र सरकार ने अगर राज्य में खरीदी गए पूरे गेहूं को नहीं लिया, तो राज्य सरकार पर 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा का अतिरिक्त भार आ सकता है। राज्य सरकार वैसे ही आर्थिक संकट से गुजर रही है और केंद्र सरकार का यह निर्णय उसके सामने नई मुसीबत खड़ी कर देगा।
किसान नेता केदार सिरोही का कहना है, “केंद्र सरकार के इस फैसले से किसानों पर दूरगामी असर पड़ेगा, क्योंकि अगर गेहूं केंद्र नहीं खरीदेगा तो आने वाले वर्षो में किसानों को लाभ नहीं मिलेगा, इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा। यह निर्णय किसानों के साथ भेदभाव वाला है। राज्य में जब भाजपा की सरकार थी तब 75 लाख टन तक गेहूं लिया गया और दो साल का बोनस दिया, मगर अब केंद्र ऐसा नहीं कर रही है।”