सूत्र ने कहा, हमने बैंकों के पुनर्पूजीकरण के लिए अब तक बजट में कोई पूंजी नहीं मांगी है। उनकी धन की जरूरतों की समीक्षा आमतौर पर तीसरी तिमाही में की जाती है, इसलिए हमें अब तक के आकलन का पता नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें पिछले वित्तवर्ष में केवल वित्तपोषित किया गया है और यदि आगे उन्हें धन की जरूरत है, तो हम इसे पूरक मांगों के माध्यम से उठाएंगे।
वित्तवर्ष 2018-19 में, सरकार ने सरकारी बैंकों की विनियामक और विकास पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 1.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी लगाई थी, जो अब तक उच्चतम है। यह पांच सरकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) फ्रेमवर्क से बाहर आने के लिए दी गई थी। इन बैकों को पीसीए फ्रेमवर्क में इसलिए डाला गया था, क्योंकि इनकी भारी भरकम रकम कर्ज के रूप में फंसी है, जिसकी वसूली नहीं हो पाई है और उन फंसे कर्जो को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) घोषित कर दिया गया है।
फरवरी में प्रस्तुत अंतरिम बजट ने पुनर्पूजीकरण के लिए कोई आवंटन प्रदान नहीं किया था।
आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में सालाना आधार पर ऋण वृद्धि 11.7 फीसदी बढ़ी, जो एक साल पहले समान अवधि में 10.5 फीसदी से अधिक थी।
इस साल फरवरी में, सरकार ने 12 सरकारी बैंकों में 48,239 करोड़ रुपये की पूंजी डालने को मंजूरी प्रदान की थी, जिसमें धोखाधड़ी की शिकार पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) भी शामिल हैं, ताकि इन बैंकों को पीसीए फ्रेमवर्क से बाहर निकाला जा सके।
सरकार ने इलाहाबाद बैंक में 6,896 करोड़ रुपये, यूनियन बैंक में 4,112 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 205 करोड़ रुपये, बैंक ऑफ इंडिया में 4,638 करोड़ रुपये, कॉरपोरेशन बैंक में 9,086 करोड़ रुपये और इंडियन बैंक में 3,806 करोड़ रुपये का निवेश किया।
साथ ही आंध्र बैंक में 3,256 करोड़ रुपये, सिंडिकेट बैंक में 1,603 करोड़ रुपये, पीएनबी में 5,908 करोड़ रुपये, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 2,560 करोड़ रुपये, युनाइटेड बैंक में 2,839 करोड़ रुपये और यूको बैंक में 3,360 करोड़ रुपये डाले।
दिसंबर में, सरकार ने वित्तवर्ष 2018-19 के लिए बैंक पुनर्पूजीकरण परिव्यय को बढ़ाकर 1.06 लाख करोड़ रुपये कर दिया।
–आईएएनएस