पटना: आज पूरे तीन साल हो गए बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू हुए। लागू होने के बाद से ही इससे जुड़ा कानून बहस का केंद्र बना हुआ है। हालांकि यह शराबबंदी कितना सफल हुआ इसका कुछ खासा प्रभाव तो नहीं दिख रहा है। अगर आंकड़ों पर गौर करे तो 16 महीने की शराबबंदी में 3 लाख 88 हजार से अधिक छापे पड़े हैं और शराब पीने के जुर्म में 68,579 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। अर्थात शराबबंदी के बाद भी सूबे में शराब आसानी से उपलब्ध हो जा रही है, जिससे पीने वाले आराम से पीते हैं। बहरहाल, शराबबंदी से राज्य सरकार को लगभग 4 से 5 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। लेकिन सरकार का मानना है कि सोशल इंपैक्ट के लिहाज से ये कदम सही रहेगा।
पहले यह पैसा शराब की बिक्री से आता था। अब इसकी भरपाई के लिए क्या करना है? यह सबसे बड़ा सवाल है। वहीं इसका खमियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। पेट्रोल-डीजल के दाम में बतहाशा हो रहे बढ़ोतरी से आम जनता परेशान है। राज्य सरकार ने पेट्रोल पर 1.5% और डीजल पर 1.0% वैट बढ़ा दिया। इस फैसले के बाद से अप्रैल 2016 में प्रति लीटर पेट्रोल की कीमत में 1 रुपया 3 पैसे का इजाफा और प्रति लीटर डीजल की कीमत में 75 पैसे की बढ़ोत्तरी हो गई।
इधर, बीजेपी का आरोप था कि शराबबंदी के कारण घटी आमदनी की भरपाई के लिए ही पेट्रोल-डीजल को महंगा किया गया। वहीं नीतीश कुमार ने शराबबंदी की नीति को हर तरह से जायज बताया था। जबकि पैसे की कमी से शिक्षकों का वेतन रुका था, सरकारी योजना का पैसा रुका था, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का 500 करोड रुपए नहीं दिया गया।
जानकारी हो कि सूबे के लोग हर साल लगभग 1410 लाख लीटर शराब पी जाते थे, इनमें 990.36 लाख लीटर देसी शराब और 420 लाख लीटर विदेशी शराब शामिल है। इसकी पूर्ति के लिए पूरे बिहार में शराब की लगभग 6 हजार दुकानें थी। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक के दौरान शराब से मिलने वाले पैसे में दस गुना बढ़ोतरी हुई थी। बता दें कि 2005-06 में सरकार को शराब की बिक्री से 295 करोड़ रुपये की आमदनी हुई थी, जो 2014 में बढ़कर तीन हजार करोड़ से ज्यादा हो गई थी। और यह बढ़ोतरी धीरे-धीरे आगे की ओर ही बढ़ रही थी।
राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार अपने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए शराबबंदी तो कर दी लेकिन इससे होने वाले राजस्व के नुकसान के बारे में नहीं सोचा। जिसकी भरपाई पेट्रोल-डीजल के दाम में हो रहे बढ़ोतरी के समीकरण से किया जा रहा है। इस घाटे को पूरा करने के लिए दूसरे चीजों पर टैक्स लगा रही है।
वर्ष 2016 में ही अगस्त महीने में वैट संशोधन बिल लाकर राज्य सरकार ने तमाम उत्पादों पर 0.5 फीसदी से 1 फीसदी तक वैट की दर में बढ़ोतरी की। एक अनुमान के अनुसार राज्य सरकार के इस फैसले से सरकारी खजाने को सालाना लगभग 250 करोड़ का फायदा होने का दावा किया जा रहा था।
सूबे के मुखिया नीतीश कुमार के शराबबंदी के फैसले से लोगों को दिक्कत नहीं हैं लेकिन लोग पेट्रोल-डीजल सहित दूसरे सामानों की कीमत बढ़ने से परेशान हैं। वहीं लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री को पहले ही सोचना चाहिए था कि शराबबंदी के फैसले से होनेवाले आर्थिक नुकसान की भारपाई कैसे करेंगे? लेकिन अब इस फैसले को देखने से ऐसा लग रहा है कि इस दिशा में उन्होंने कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई थी। जिसका खमियाजा आम लोगों को आजतक भुगतना पड़ रहा है।
बीजेपी नेता गिरीराज सिंह ने कहा था जिन राज्यों ने शराब को बंद किया उन राज्यों ने विकास के कोई आयाम को बंद नहीं किया है। वहीं नीतीश कुमार अपने शराबबंदी के फैसले को ऐतिहासिक बता रहे हैं। शुरू में बीजेपी इस फैसले से सहमत थी पर अब अपना रूख बदल रही है। उन्होंने कहा कि इतिहास में किसी ने पूरी तरह से शराबबंदी लागू नहीं की है। शराबबंदी को मेरी सनक कहना कोरी बकवास है। मैं भरोसा दिलाता हूं कि बिहार में कुछ भी आधा-अधूरा नहीं होगा।
जबकि जदयू एमएलसी नीरज सिंह ने कहा कि शराबबंदी हमारी प्रतिबद्धता और हमें जनता का समर्थन भी प्राप्त है। लेकिन, बढ़ती महंगाई के सवाल पर कहा कि महंगाई तो बढ़ेगी ही, स्वाभाविक रूप से तो हमने यह वायदा भी नहीं किया है कि हम महंगाई को कम करेंगे।