इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में एक ओर कोरोना पीड़ित आम मरीज ही नहीं पुलिसकर्मी तक अस्पतालों में भर्ती नहीं किए जाने के कारण तड़प तड़प कर दम तोड़ रहे हैं। पूरी दिल्ली में हाहाकार मचा हुआ है। दूसरी ओर ऐसे अमीर लोग भी है जो अपनी हैसियत/सामर्थ्य/ सुविधा के अनुसार निजी अस्पतालों में इलाज कराते हैं और फिर वहां से अपनी मर्ज़ी से सरकारी अस्पताल में भी आसानी से भर्ती/ शिफ्ट हो जाते हैं। इलाज के लिए मनचाहे अस्पताल की यह सुविधा आपको किसी विधायक/ मंत्री का जानकार/ परिचित होने पर ही मिल सकती है।
करीब 20 दिन पहले 85 साल की एक महिला को कोरोना के कारण गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां पर 15 दिन से वह वेंटिलेटर पर थी। उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। महिला के रिश्तेदार ने 11 जून को वजीर पुर क्षेत्र के आम आदमी पार्टी के विधायक राजेश गुप्ता से संपर्क किया और महिला को दीप चंद बंधु अस्पताल में वेंटिलेटर युक्त बिस्तर पर शिफ्ट कराने का अनुरोध किया।
विधायक ने कराया भर्ती-
विधायक राजेश गुप्ता ने तुरंत उस महिला को दीप चंद बंधु अस्पताल में भर्ती करा दिया। एक ओर दिल्ली के अस्पतालों में मरीज़ को भर्ती नहीं किए जाने के दम तोड़ने के मामले सामने आ रहे हैं।
अस्पताल प्रशासन पर सवालिया निशान-
ऐसे में इस तरह के मरीज़ को निजी अस्पताल से शिफ्ट करा कर दीप चंद बंधु अस्पताल में भर्ती करने से अस्पताल प्रशासन और डॉक्टरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है। इससे पता चलता है कि अस्पताल प्रशासन और डॉक्टर आम मरीजों को तो दुत्कार रहे हैं। लेकिन विधायक के कहने पर अमीर मरीजों को शिफ्ट करा कर भी भर्ती कर लेते हैं।
उल्लेखनीय है कि गंगा राम जैसे अस्पताल में तो अमीर आदमी ही इलाज के लिए भर्ती हो सकता है। अमीर आदमी की सोच भी यह होती है कि निजी अस्पतालों में ही इलाज बेहतर होता है। ऐसे में गंगा राम अस्पताल से दीप चंद बंधु अस्पताल में मरीज शिफ्ट कराने पर कई सवाल उठते हैं। जो मरीज़ गंगा राम अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं और नामी डाक्टरों के इलाज से ठीक नहीं हो रहा था तो भला दीप चंद बंधु जैसे कम सुविधा वाले अस्पताल में ठीक हो जाएगा ?
आखिर में सरकारी अस्पताल याद आता है-
असल में होता यह है कि निजी अस्पतालों में मरीज़ के जब ठीक होने की संभावना खत्म हो जाती है और वेंटिलेटर और अस्पताल का ख़र्च बढ़ने लगता है तो मरीज़ के परिवार को भी लगने लगता है कि मरीज़ के बचने की संभावना तो है नहीं ऐसे में उस पर बेकार में लाखों रुपए खर्च क्यों किए जाएं। या उसकी आर्थिक स्थिति जवाब दे जाती है। तो उसे सरकारी अस्पताल याद आता है।
दीप चंद बंधु अस्पताल के एक अति वरिष्ठ डाक्टर ने बताया कि इस मरीज़ के बचने की संभावना नहीं है। ऐसे में मरीज की मौत पर अस्पताल को उसके अंतिम संस्कार की व्यवस्था करनी पड़ेगी।
इस मामले से अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधायक राजेश गुप्ता ने ऐसे सक्षम लोगों की मदद की जिनका गंगा राम अस्पताल में इलाज किया जा रहा था। ऐसे मरीज को शिफ्ट करा कर उन्होंने असल में उस आम गरीब मरीज का हक़ मार दिया जो सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटर उपलब्ध होने का इंतजार करते हैं।
विधायक अगर इस मरीज़ को शिफ्ट करने की सिफ़ारिश नहीं करते तो अस्पताल में उपलब्ध बिस्तर/वेंटिलेटर उस मरीज के लिए उपलब्ध रहता जिसको आपातकालीन स्थिति में उसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो। दीप चंद बंधु अस्पताल के एक वरिष्ठ डाक्टर ने बताया कि गंगा राम अस्पताल में भर्ती मरीज तो पहले से वेंटिलेटर पर थी उसका इलाज चल रहा था। उसे वहां से शिफ्ट कराने का कोई औचित्य नहीं था। ऐसे में इस मरीज़ को दीप चंद बंधु अस्पताल ने क्यों ले लिया ? इस पर इस डाक्टर का कहना है कि विधायक को इंकार कैसे कर सकते हैं।
विधायक के इस कदम से लगता है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आम आदमी की सरकार होने का सिर्फ दावा करते लेकिन असल में यह अमीर आदमी की सरकार है। सच्चाई यह है कि आम आदमी के नाम पर बनी यह अमीर आदमी की ही सरकार है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं कि केजरीवाल ने तीन में से दो सीट पर राज्य सभा में दो करोड़पति व्यवसासियों/ व्यापारियों सुशील गुप्ता,एन डी गुप्ता को भेजा है। इन दोनों के जाति से बनिया होने से यह भी साबित हो गया कि अरविंद केजरीवाल भी कट्टर जातिवाद की राजनीति करता है।
5 मई को भारत नगर थाने में तैनात युवा सिपाही अमित राणा इलाज के लिए अंबेडकर और दीप चंद बंधु अस्पतालों में डॉक्टरों के सामने गिडगिड़ता रहा। लेकिन उसे भर्ती नहीं किया गया। समय पर आक्सीजन/ इलाज न मिलने के कारण सांस लेने में तकलीफ से तड़पते हुए अमित राणा ने दम तोड दिया। आईपीएस अधिकारी तो दूर एस एच ओ तक अमित के साथ अस्पताल तक नहीं गया।
दीप चंद बंधु अस्पताल में तैनात कोरोना डाक्टरों की टीम ने सिपाही को भर्ती करने की बजाए उसे गोली थमा कर अशोक विहार सेंटर में कोरोना टेस्ट के लिए भेज दिया।
अमित को लेकर उसके दोस्त सिपाही नवीन आदि अशोक विहार सेंटर में टेस्ट के लिए पहुंचे तो उनसे कहा गया है टेस्ट के लिए एक दिन के लिए तय संख्या के मरीजों के टेस्ट किए जा चुके हैं इसलिए अमित का टेस्ट नहीं किया जा सकता। मंगलवार बारह बजे बड़ी मुश्किल से उसका टेस्ट किया गया। वहां मौजूद डाक्टर से कहा गया कि अमित को यहां भर्ती कर लो।
डाक्टर ने कहा कि भर्ती तो कर लें लेकिन यहां पर कोई सुविधा नहीं है अमित को कोई खाना पीना भी नहीं खिलाएगा। उसे अपने आप खाना पीना करना होगा। नवीन ने डाक्टर से कहा कि अमित की हालात तो ऐसी है कि वह खुद दवा भी नहीं ले सकता। नवीन से कहा गया कि अमित को अपने कमरे पर ही ले जाओ,खाना पीना दो।
इलाज न करना, भर्ती करने से इंकार करना या इलाज में लापरवाही बरतना अपराध है लेकिन पुलिस अफसरों ने सिपाही अमित राणा की मौत के मामले में अस्पताल या डाक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की।
एक विधायक द्वारा अपने रईस जानकर को वेंटिलेटर उपलब्ध कराने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आईपीएस अधिकारियों ने भी अगर कोशिश की होती तो अमित को भी तुरंत वेंटिलेटर आक्सीजन उपलब्ध हो सकता था।