नई दिल्ली : पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रह्मण्यम ने कृषि संकट से निपटने के लिए प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 18,000 रुपये सालाना की एक अर्ध-सार्वभौमिक मूलभूत ग्रामीण आय (क्यूयूबीआरआई) का प्रस्ताव दिया है। हालांकि यह उनको नहीं दिया जाएगा, जिनकी आय अच्छी है। इसकी अनुमानित लागत 2.64 लाख करोड़ रुपये होगी।
उन्होंने यह प्रस्ताव जेएच कंसल्टिंग के निदेशक जोश फेलमन, विश्व बैंक के अर्थशास्त्री बोबान पॉल और हार्वर्ड विश्वविद्याय के पीएचडी छात्र एम. आर. शरण के साथ लिखे परचे में दिया है, जिसमें कहा गया कि ग्रामीण आबादी को करीब 18,000 रुपये सालाना या 1,500 रुपये प्रति माह के सालाना घरेलू हस्तांतरण के दायरे में देश की 75 फीसदी ग्रामीण आबादी आएगी, जिसकी कुल लागत जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का करीब 1.3 फीसदी या 2.64 लाख करोड़ रुपये होगी।
इस परचे का शीर्षक अर्ध-सार्वभौमिक मूलभूत ग्रामीण आय : आगे का रास्ता है, जिसमें सलाह दी गई है कि इस बोझ को केंद्र और राज्य सरकारों को आधा-आधा बांटना चाहिए।
यह प्रस्ताव अंतरिम बजट से कुछ ही दिन पहले आया है, जिसमें किसानों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना की घोषणा होने की व्यापक रूप से उम्मीद है।
परचे में कहा गया है कृषि संकट से उत्पन्न अवसर का लाभ एक नए आर्थिक भारत के स्तंभों के निर्माण में उठाया जा सकता है, जो अर्ध-सार्वभौमिक मूलभूत ग्रामीण आय की सुविधा पर केंद्रित होगी।
सुब्रह्मण्यम और उनके सह-लेखकों ने सिफारिश की है कि प्रति परिवार 18,000 रुपये की मुद्रास्फीति-समायोजित बुनियादी ग्रामीण आय मुहैया कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा इसका एक-तिहाई या 6,000 रुपये की बिना किसी शर्त के वित्त पोषण किया जाना चाहिए, जबकि बाकी 3,000 रुपये का वित्त पोषण केंद्र द्वारा प्रायोजित अन्य योजनाओं के मौजूदा अनुदान को मिलाकर किया जाना चाहिए।
हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि इस योजना को आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) के संसाधनों या राज्यों या केंद्र सरकार द्वारा अपने वर्तमान राजकोषीय प्रतिबद्धता को तोड़ कर नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी सलाह दी उर्वरक सब्सिडी को धीरे-धीरे तीन सालों में पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए।